Sunday 14 September 2014

बस नंबर 143






"चलो जी चलो " बस का कंडक्टर एक तेज सीटी मारता है और हिचकोले खाती हुई, खचाखच नौजवान लड़के लड़कियों से भरी हमारी अपनी बस नंबर 143  एयरपोर्ट से धनाश के 1  घंटे के सफर मे रवाना होती थी .. बस नंबर 143  जिसे सब नौजवान आई लव यू बस के नाम से पुकारते थे.. सुबह 8:15  पर सब कॉलेज जाने वाले बच्चे बस स्टॉप पर खड़े बस का इंतज़ार करते थे.. बस आती थी वहाँ 15 मिनट रूकती थी और एक मिनट मे पूरी फुल .. ज़दोज़हत रहती थी सीट मिलने की, ज्यादातर लोग धक्का मुक्की करते थे मनचाही सीट पाने के लिए.. अब सीट मिलना भी किस्मत की बात हुआ करती थी.. और अगर सीट खिड़की के बगल हो.. और आप एक लड़की के बगल मे हो..तो मियाँ समझो आपकी लाटरी निकल गयी.. हवा के झोंके और साथ में एक सुन्दर सी लड़की..ये एक लड़के की ख्वाइस थी..ऐसा मौका बहुत कम लोगो को मिलता था.. लोग इस बस मे सफर करने के लिए मरते थे.. कुछ तो सज संवर कर तेज़ इत्र लगा कर 7:30 पर ही बस स्टॉप मे खड़ जाते थे... सुबह कॉलेज जाने की एक मात्र यही बस थी जो एयरपोर्ट चौंक से चलती थी.. बस मे सब एक साथ सफर करते थे.. लोग लटक लटक कर जाते थे.. मैं कल्पना बिष्ट पंजाब यूनिवर्सिटी मे पड़ती थी..उसी बस मे रोज सफर किया करती थी.. एक मेरे पडोसी था शैलेश आप्टे वो भी मेरे कॉलेज मे ही था.. वो हर रोज मेरे साथ उसी बस मे जाता था.. बस मे मुझे उन लोगो पर बहुत गुस्सा आता था जो खुद आराम से हवादार सीट मे बैठे रहते थे और हमारी और निहारते रहते थे.. पर शैलेश की एक अच्छाई मुझे भाती थी वो हमेशा अपनी सीट किसी बुजुर्ग के लिए या किसी महिला के लिए छोड़ देता था.. सब नौजवान यहाँ अपनी जोड़ी बनाने मे जुटे रहते थे.. कितने लोगो ने अपने प्यार का इज़हार किया उसी बस मे, कितनी ही बार उस बस मे हंगामे हुए.. पर आखिर जवान दिल जब साथ सफर करते हैं तो हंगामे तो होंगे ही.. उस बस मे एक बात सबसे अच्छी थी कभी कोई लड़का किसी लड़की के साथ बतमीजी नहीं करता था.. लड़के सब अच्छे घरों से थे.. मगर इश्क़ तो बड़े बड़ों के छक्के छुड़ा देता है, और ऊपर से चंडीगढ़ जैसा सख्त क़ानून वाला शहर.. लोग यहाँ डरते थे अपराध करने से.. मेरा पडोसी शैलेश मुझे पसंद करता था.. पर मुझे किसी और से प्यार था.. मैं उसी बस मे सफर करने वाले एक अनजान आदमी से इश्क़ करती थी.. उसका नाम नहीं मालुम था.. पर हट्टा कट्टा था चस्मा लगाता था और गाने सुनता रहता था.. बस मे अक्सर पांच तरह के लोग मिलते थे.. एक जो चुप चाप बैठे मोबाइल पे वॉट्सएप्प चलाते थे.. सबसे पकाऊ लोग.. दुसरे 30-35 साल के आदमी जो ऑफिस जाते थे.. उन्हे बस हर वक़्त बस के समय की शिकायत रहती थी .. अपनी बीवी की शिकायत, देश की राजनीती से शिकायत.. अपनी जॉब से शिकायत..अपने बॉस से शिकायत.. ऐसे लोग ज़िन्दगी से ऊब चुके होते हैं तो इन्हे हर वक़्त कोई ना कोई बात करने के लिए चाहिए.. तीसरे लोग बूढ़े दादा टाइप लोग जो हर वक़्त चंडीगढ़ का इतिहास बताते फिरेंगे..इनसाइक्लोपीडिया लोग..चौथी आंटी लोग जो ज्यादा बात तो नहीं करती थी.. पर हमेशा हुकुम देती रहती थी.. बेटी खिड़की बंद कर दे,, बेटी सीट छोड़ देगी मेरी सहेली आ रही है..मै मन ही मन कहती थी ," अरे मोटी तेरी सहेली आ रही है तो मुझे क्या अपनी गोदी मे बिठा लेना, मैं क्यों उठूँ भला?? कुछ तो रास्ता ही पूछती रहेंगी," बेटी साईं बाबा का मंदिर आ गया.. मटका चौंक आ गया.. बताओ अब मैं तुझे टूर गाइड दिखती हूँ क्या?? अगली तरह के लोग एक दम बकवास लोग.. जो बेवजह हमें निहारते रहते थे . मानो सरकार उन्हें निहारने के पैसे देती हो. और सीट के बगल मैं बैठ जाएंगे और एक टूक हो कर देखते रहेंगे की हम अपने मोबाइल मे क्या कर रहे है.. मैं तो कभी कभी गुस्से मे आकर बोल भी देती थी  ," ले भाई तू ही देख ले".. पर मुझे आखिरी टाइप के लोग अच्छे लगते थे.. बॉडी बिल्डर फॉर्मल ड्रेस मे शांत स्वभाब के लड़के.. कभी कभी वो मेरे बगल मे बैठते थे तो मैं तो बस कान मे ईयरफोन लगा कर कोई मस्त सा पंजाबी रोमांटिक गाना चला देती थी.. और आवाज इतनी की उसे भी सुन जाए, बेशक मेरे कान के परदे ही फट जाए,, आप सोचेंगे बड़ी अजीब लड़की है, पर मैने कहानी की शुरुआत मे ही कहा था ना इश्क़ बड़े बड़ो के छक्के छुड़ा देता है.. जब लड़के आई लव यू बस मे अपना जीवन साथी ढून्ढ सकते हैं तो हम लडकिया क्यों नहीं.. मैं अक्सर घर से निकलते हुए बाल बाँध कर आती थी पर बस स्टॉप पर खुले बाल रखती थी क्यूंकि एक दिन उसने मुझे कहा था तुम खुले बालों मैं ज्यादा अच्छी लगती हो , मैने शैलेश को कहा हुआ था की वो किसी तरह हम तीनो के लिए धक्का मुक्की कर सीट बचा कर रखा करे..शैलेश बेचारा मेरे इश्क़ मे मारे मेरी हर बात मानता था.. वो उस लड़के.. मेरे लिए और अपने लिए सीट बचा लेता था.. वो लड़का खिड़की के बगल मे बैठता था.. मैँ बीच मे और शैलेश मेरे बगल मे.. मैने एक दिन उस लड़के से नाम पुछा.. नाम बताया उसने," समर्थ आहूजा " समर्थ रास्ते मे ही उतर जाता था.. और बचते थे मैं और शैलेश ..शैलेश मेरे लिए बहुत कुछ करता था..करना भी चाहिए प्यार करने के लिए बहुत पापड बेलने पड़ते हैं.. समर्थ और मेरी कहानी अब धीरे धीरे बढ़ रही थी.. हम वॉट्सएप्प पे चैट करते थे दिन रात.. वो मुझे प्यार भरे मैसेज भेजता था.. शैलेश भी मुझे वॉट्सएप्प करता था पर मैं बहुत कम् उसका जवाव देती थी.. आखिर मैं प्यार समर्थ से करती थी.. एक दिन समर्थ का कोई मैसेज नहीं आया.. अगले दिन वो बस मे भी नहीं आया.. मैं अपना सारा गुस्सा शैलेश पर उतारती थी.. ना मुझे उसका घर मालुम था ना ये की वो काम कहाँ करता था.. मैं तो बस उसकी सूरत पे फ़िदा थी.. एक हफ्ता बीत गया वो नहीं आया वॉट्सएप्प पे हज़ारो मैसेज किये समर्थ नहीं आया.. मैं टूट चुकी थी.. पर साया बन के शैलेश मेरे साथ था.. उसने मुझे समझाया.. और हसाने की कोशिश की.. मैं समर्थ को भुला देना चाहती थी.. और सामने शैलेश था.. वही बुधु डफर आशिक़ मेरा पडोसी ... मुझे रोना आ गया.. और शैलेश ने मुझे गले लगा लिया ये कहते हुए कि, " लड़के और बसें आती रहेंगी.. एक ना तो दूसरी सही.. ये ज़िन्दगी बस के सफर जैसी है, कई मुसाफिर आते हैं चले जाते हैं, कुछ दिल छु जाते हैं कुछ जख्म दे जाते हैं.. पर ये सफर कभी रुकता नहीं चलता रहता है.. चलती का नाम ज़िन्दगी.. साथ रहता है तो यादें सुनहरी यादें..और हाँ कुछ शैलेश जैसे कमीने चिपकू आशिक़.. आज मैं और शैलेश शादी शुदा हैं 1  साल  हो गया अपनी शादी को, मैं शैलेश के साथ बहुत खुश हूँ.. शैलेश बेशक समर्थ जैसा नहीं दिखता, पर उसका दिल सोने का है...मैं कल्पना फकर से कहती हूँ कि मुझे भी मेरा जीवन साथी बस नंबर 143  मे ही मिला..मैं अक्सर शैलेश से पूछती रहती हूँ कि जब मैं उसे समर्थ और अपने लिए सीट रोकने को कहती थी तो उसे जलन नहीं होती थी... तो उसका हर बार एक ही जवाव होता है कि ," कल्पना तुम्हारी ख़ुशी के आगे मेरी जलन फीकी पड़ जाती थी".. .. मुझे अब इन बॉडी बिल्डर इंसानो से नफरत हो गयी है..आज भी मैं और शैलेश 143  बस मे घूमते हैं और अपने कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं..

तो ये थी कहानी कल्पना शैलेश और समर्थ के प्रेम त्रिकोण की.. प्रेम त्रिकोण बड़ी ही भयानक और अनसुलझी पहेली जैसा होता है, पर अंत मे सच्चे प्यार की जीत होती है.. चलता हूँ आशा करता हूँ आपको कहानी अच्छी लगी होगी.. कहानियाँ ऐसी जो आपको जीना सीखाती हैं आपको प्यार करना सीखाती हैं..मिलेंगे अगले रविवार एक नयी कहानी के साथ ...

आपका अपना कवि
$andy poet  

THE LOVE AGREEMENT

Hi friends, I want a little help from you. I have published a new book titled, "The love agreement" (एक प्रेम-समझौता).I am...

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