Sunday, 14 September 2014

बस नंबर 143






"चलो जी चलो " बस का कंडक्टर एक तेज सीटी मारता है और हिचकोले खाती हुई, खचाखच नौजवान लड़के लड़कियों से भरी हमारी अपनी बस नंबर 143  एयरपोर्ट से धनाश के 1  घंटे के सफर मे रवाना होती थी .. बस नंबर 143  जिसे सब नौजवान आई लव यू बस के नाम से पुकारते थे.. सुबह 8:15  पर सब कॉलेज जाने वाले बच्चे बस स्टॉप पर खड़े बस का इंतज़ार करते थे.. बस आती थी वहाँ 15 मिनट रूकती थी और एक मिनट मे पूरी फुल .. ज़दोज़हत रहती थी सीट मिलने की, ज्यादातर लोग धक्का मुक्की करते थे मनचाही सीट पाने के लिए.. अब सीट मिलना भी किस्मत की बात हुआ करती थी.. और अगर सीट खिड़की के बगल हो.. और आप एक लड़की के बगल मे हो..तो मियाँ समझो आपकी लाटरी निकल गयी.. हवा के झोंके और साथ में एक सुन्दर सी लड़की..ये एक लड़के की ख्वाइस थी..ऐसा मौका बहुत कम लोगो को मिलता था.. लोग इस बस मे सफर करने के लिए मरते थे.. कुछ तो सज संवर कर तेज़ इत्र लगा कर 7:30 पर ही बस स्टॉप मे खड़ जाते थे... सुबह कॉलेज जाने की एक मात्र यही बस थी जो एयरपोर्ट चौंक से चलती थी.. बस मे सब एक साथ सफर करते थे.. लोग लटक लटक कर जाते थे.. मैं कल्पना बिष्ट पंजाब यूनिवर्सिटी मे पड़ती थी..उसी बस मे रोज सफर किया करती थी.. एक मेरे पडोसी था शैलेश आप्टे वो भी मेरे कॉलेज मे ही था.. वो हर रोज मेरे साथ उसी बस मे जाता था.. बस मे मुझे उन लोगो पर बहुत गुस्सा आता था जो खुद आराम से हवादार सीट मे बैठे रहते थे और हमारी और निहारते रहते थे.. पर शैलेश की एक अच्छाई मुझे भाती थी वो हमेशा अपनी सीट किसी बुजुर्ग के लिए या किसी महिला के लिए छोड़ देता था.. सब नौजवान यहाँ अपनी जोड़ी बनाने मे जुटे रहते थे.. कितने लोगो ने अपने प्यार का इज़हार किया उसी बस मे, कितनी ही बार उस बस मे हंगामे हुए.. पर आखिर जवान दिल जब साथ सफर करते हैं तो हंगामे तो होंगे ही.. उस बस मे एक बात सबसे अच्छी थी कभी कोई लड़का किसी लड़की के साथ बतमीजी नहीं करता था.. लड़के सब अच्छे घरों से थे.. मगर इश्क़ तो बड़े बड़ों के छक्के छुड़ा देता है, और ऊपर से चंडीगढ़ जैसा सख्त क़ानून वाला शहर.. लोग यहाँ डरते थे अपराध करने से.. मेरा पडोसी शैलेश मुझे पसंद करता था.. पर मुझे किसी और से प्यार था.. मैं उसी बस मे सफर करने वाले एक अनजान आदमी से इश्क़ करती थी.. उसका नाम नहीं मालुम था.. पर हट्टा कट्टा था चस्मा लगाता था और गाने सुनता रहता था.. बस मे अक्सर पांच तरह के लोग मिलते थे.. एक जो चुप चाप बैठे मोबाइल पे वॉट्सएप्प चलाते थे.. सबसे पकाऊ लोग.. दुसरे 30-35 साल के आदमी जो ऑफिस जाते थे.. उन्हे बस हर वक़्त बस के समय की शिकायत रहती थी .. अपनी बीवी की शिकायत, देश की राजनीती से शिकायत.. अपनी जॉब से शिकायत..अपने बॉस से शिकायत.. ऐसे लोग ज़िन्दगी से ऊब चुके होते हैं तो इन्हे हर वक़्त कोई ना कोई बात करने के लिए चाहिए.. तीसरे लोग बूढ़े दादा टाइप लोग जो हर वक़्त चंडीगढ़ का इतिहास बताते फिरेंगे..इनसाइक्लोपीडिया लोग..चौथी आंटी लोग जो ज्यादा बात तो नहीं करती थी.. पर हमेशा हुकुम देती रहती थी.. बेटी खिड़की बंद कर दे,, बेटी सीट छोड़ देगी मेरी सहेली आ रही है..मै मन ही मन कहती थी ," अरे मोटी तेरी सहेली आ रही है तो मुझे क्या अपनी गोदी मे बिठा लेना, मैं क्यों उठूँ भला?? कुछ तो रास्ता ही पूछती रहेंगी," बेटी साईं बाबा का मंदिर आ गया.. मटका चौंक आ गया.. बताओ अब मैं तुझे टूर गाइड दिखती हूँ क्या?? अगली तरह के लोग एक दम बकवास लोग.. जो बेवजह हमें निहारते रहते थे . मानो सरकार उन्हें निहारने के पैसे देती हो. और सीट के बगल मैं बैठ जाएंगे और एक टूक हो कर देखते रहेंगे की हम अपने मोबाइल मे क्या कर रहे है.. मैं तो कभी कभी गुस्से मे आकर बोल भी देती थी  ," ले भाई तू ही देख ले".. पर मुझे आखिरी टाइप के लोग अच्छे लगते थे.. बॉडी बिल्डर फॉर्मल ड्रेस मे शांत स्वभाब के लड़के.. कभी कभी वो मेरे बगल मे बैठते थे तो मैं तो बस कान मे ईयरफोन लगा कर कोई मस्त सा पंजाबी रोमांटिक गाना चला देती थी.. और आवाज इतनी की उसे भी सुन जाए, बेशक मेरे कान के परदे ही फट जाए,, आप सोचेंगे बड़ी अजीब लड़की है, पर मैने कहानी की शुरुआत मे ही कहा था ना इश्क़ बड़े बड़ो के छक्के छुड़ा देता है.. जब लड़के आई लव यू बस मे अपना जीवन साथी ढून्ढ सकते हैं तो हम लडकिया क्यों नहीं.. मैं अक्सर घर से निकलते हुए बाल बाँध कर आती थी पर बस स्टॉप पर खुले बाल रखती थी क्यूंकि एक दिन उसने मुझे कहा था तुम खुले बालों मैं ज्यादा अच्छी लगती हो , मैने शैलेश को कहा हुआ था की वो किसी तरह हम तीनो के लिए धक्का मुक्की कर सीट बचा कर रखा करे..शैलेश बेचारा मेरे इश्क़ मे मारे मेरी हर बात मानता था.. वो उस लड़के.. मेरे लिए और अपने लिए सीट बचा लेता था.. वो लड़का खिड़की के बगल मे बैठता था.. मैँ बीच मे और शैलेश मेरे बगल मे.. मैने एक दिन उस लड़के से नाम पुछा.. नाम बताया उसने," समर्थ आहूजा " समर्थ रास्ते मे ही उतर जाता था.. और बचते थे मैं और शैलेश ..शैलेश मेरे लिए बहुत कुछ करता था..करना भी चाहिए प्यार करने के लिए बहुत पापड बेलने पड़ते हैं.. समर्थ और मेरी कहानी अब धीरे धीरे बढ़ रही थी.. हम वॉट्सएप्प पे चैट करते थे दिन रात.. वो मुझे प्यार भरे मैसेज भेजता था.. शैलेश भी मुझे वॉट्सएप्प करता था पर मैं बहुत कम् उसका जवाव देती थी.. आखिर मैं प्यार समर्थ से करती थी.. एक दिन समर्थ का कोई मैसेज नहीं आया.. अगले दिन वो बस मे भी नहीं आया.. मैं अपना सारा गुस्सा शैलेश पर उतारती थी.. ना मुझे उसका घर मालुम था ना ये की वो काम कहाँ करता था.. मैं तो बस उसकी सूरत पे फ़िदा थी.. एक हफ्ता बीत गया वो नहीं आया वॉट्सएप्प पे हज़ारो मैसेज किये समर्थ नहीं आया.. मैं टूट चुकी थी.. पर साया बन के शैलेश मेरे साथ था.. उसने मुझे समझाया.. और हसाने की कोशिश की.. मैं समर्थ को भुला देना चाहती थी.. और सामने शैलेश था.. वही बुधु डफर आशिक़ मेरा पडोसी ... मुझे रोना आ गया.. और शैलेश ने मुझे गले लगा लिया ये कहते हुए कि, " लड़के और बसें आती रहेंगी.. एक ना तो दूसरी सही.. ये ज़िन्दगी बस के सफर जैसी है, कई मुसाफिर आते हैं चले जाते हैं, कुछ दिल छु जाते हैं कुछ जख्म दे जाते हैं.. पर ये सफर कभी रुकता नहीं चलता रहता है.. चलती का नाम ज़िन्दगी.. साथ रहता है तो यादें सुनहरी यादें..और हाँ कुछ शैलेश जैसे कमीने चिपकू आशिक़.. आज मैं और शैलेश शादी शुदा हैं 1  साल  हो गया अपनी शादी को, मैं शैलेश के साथ बहुत खुश हूँ.. शैलेश बेशक समर्थ जैसा नहीं दिखता, पर उसका दिल सोने का है...मैं कल्पना फकर से कहती हूँ कि मुझे भी मेरा जीवन साथी बस नंबर 143  मे ही मिला..मैं अक्सर शैलेश से पूछती रहती हूँ कि जब मैं उसे समर्थ और अपने लिए सीट रोकने को कहती थी तो उसे जलन नहीं होती थी... तो उसका हर बार एक ही जवाव होता है कि ," कल्पना तुम्हारी ख़ुशी के आगे मेरी जलन फीकी पड़ जाती थी".. .. मुझे अब इन बॉडी बिल्डर इंसानो से नफरत हो गयी है..आज भी मैं और शैलेश 143  बस मे घूमते हैं और अपने कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं..

तो ये थी कहानी कल्पना शैलेश और समर्थ के प्रेम त्रिकोण की.. प्रेम त्रिकोण बड़ी ही भयानक और अनसुलझी पहेली जैसा होता है, पर अंत मे सच्चे प्यार की जीत होती है.. चलता हूँ आशा करता हूँ आपको कहानी अच्छी लगी होगी.. कहानियाँ ऐसी जो आपको जीना सीखाती हैं आपको प्यार करना सीखाती हैं..मिलेंगे अगले रविवार एक नयी कहानी के साथ ...

आपका अपना कवि
$andy poet  

Sunday, 31 August 2014

" इक छोटी सी मदद "

 
 
भानूदास गोखले बी.ऐ की पढ़ाई पूरी कर अब और पढ़ना नहीं चाहता था, देहरादून मे घंटा घर बाजार के पास वो अपने माता पिता के साथ एक छोटे से घर मे रहता था. भानू का सपना था कि वो लेखक बने पर घर के हालात , घर कि समस्या के बीच , गरीबी कि ज़ंज़ीरो से जकड़ा भानू लिखने का वक़्त ही नहीं निकाल पाता था बात है 11  नवम्बर 2007 की जब वो देहरादून की घाटिओं को छोड़ कर जा बसा सपनो के शहर मुंबई मे, भानुदास को वहां उसके एक दोस्त अनवर ने बुलाया था. भानू दास स्वभाव का बड़ा ही भोला भाला इंसान था. ना तो नौकरी थी ना ही अभी शादी हुई थी.. कोरा कागज़ था भानू.. किस्मत की कलम अब इस कोरे कागज़ पे कुछ लिखने को बेचैन थी. भानू अनवर के कहने पे काम की खोज मे मुंबई चला आया. मुंबई आ कर मालूम हुआ अनवर मिया  की कबाड़ की दुकान है यहाँ तो. भानू पढ़ा लिखा था कुछ लिखने पढ़ने का काम करना चाहता था..वो लेखक बनना चाहता था.. पर दो चार दिन अनवर मियाँ की छाया मे रहा तो भानू दास रोक ना पाया खुद को कबाड़ी बनने से.. धंधा अच्छा है शहर को साफ़ सुथरा रखना.. भाई कोई साफ़ सफाई करने वाला भी तो होना चाहिए. 1  साल  बीत गया  भानू अनवर का धंधा अच्छा चल रहा था.. अनवर की बीवी रज़िया , उसके बच्चे भी इसी धंदे मे थे.. रोज कबाड़ इकठा करते, बोतले, अखबार, प्लास्टिक का सामान, लोहा, एल्युमीनियम सब कुछ शहरों से इकठा कर के शाम को रीसायकल फैक्ट्री मे बेच आते.. एक दिन यूहीं भानू चौपाटी से गुज़रता हुआ घरों से कबाड़ इकठा कर रहा था कि अचानक एक घर मे पहुंचा आवाज आई ," अरे भैया रुकना ज़रा.... भानू साइकिल रोक कर ऊपर की ओर देखा," जी बताइये मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ ??? आवाज आई ,"  अखबार कैसे लगाया ??" भानु बोला ," 15 रूपये किलो " आवाज आई ," अरे 18  देते हैं हम तो, थोड़ा ठीक ठीक लगा ले " भानू थोड़ा मुँह बनाता हुआ मुस्कुरा के बोला ," अरे ताई 17 लगा दूंगा.. आ जाऊं ऊपर?? " आवाज आई ," आ जाओ "
भानू अपना तराजू ले कर ऊपर पहुंचा, दरवाजे से आवाज आई ,"आधिरा बिटिया अखबार वाला आया है देख ज़रा बाहर, ठीक से तुलवाना ,बड़े घोटाले बाज होते हैं ये रद्दी वाले ..भानू ऊपर आया ,आधिरा कमरे से बाहर निकली, भानू तराज़ू ले कर बरामदे मे बैठा ही था उसकी नज़रें आधिरा के पैरों पर पड़ी.. धीरे धीरे उसकी नज़रें ऊपर जाती गयी, उसकी नज़रें ज्यों ही चेहरे पर पड़ी, भानू को मानो अपना खोया हुआ कुछ मिल गया हो.. उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना था.. भानू उत्साहित हो कर एक लम्बी सांस लेते हुए आधिरा से बोला ," आधिरा... मैं भानू पहचाना मुझे" आधिरा एक 21 साल की सुन्दर सी कन्या ,जिसके काले घने बाल घुटनो तक लम्बे थे, और चेहरा बिलकुल चाँद जैसा गोल मटोल जैसा नाम वैसा चेहरा..आधिरा हैरान चेहरे से मुस्कुराते हुए बोली ," भानू दास गोखले ?? " भानू ," हाँ हाँ आधिरा मैं भानू दास गोखले तुम्हारा आठवी कक्षा का दोस्त"
आधिरा के चेहरे से कुछ पल के लिए मुस्कान चली गयी.. वो बोली ," भानू ये तुम यहाँ इस हाल मे कैसे ?? "  भानू थोड़ी शर्मिन्दगी महसूस करता हुआ बोला ," मैं यहाँ काम की तलाश मैं आया था आधिरा , कुछ काम मिला नहीं तो अब इसी काम से पेट भरता हूँ, पूरे 500 रूपये का मुनाफा होता है रोज.. "  आधिरा की आँखों से आंशू बह आये और उसने भानू को अंदर आने को कहा.. "भानू अंदर आओ माँ बाबू जी से मिलोगे मेरे?? " भानू के फटे पुराने कपड़े ,जिन्हे पहन कर वो किसी आलिशान घर मे जाना नहीं चाहता था..भानू बोला ," नहीं नहीं मैं फिर कभी आऊंगा आधिरा" आधिरा ," अरे शर्माते क्यों हो?? आओ अंदर आओ " आधिरा उसे अंदर ले गयी उसने उसे अपने माता पिता से मिलवाया,उसके माता पिता हैरान थे कि आधिरा ऐसे लड़के को घर के अंदर उनसे मिलवाने ले आई जो पेशे से कबाड़ी था.. आधिरा के माता पिता को आधिरा का ऐसा व्यवहार अच्छा नहीं लगा और भानू के जाने के बाद उसे खूब डांटा कि दुबारा कभी वो उस लड़के से ना तो मिलेगी और ना ही उसे घर पे बुलाएगी.. आधिरा भानू की स्कूल के दिनों मे बहुत अच्छी दोस्त थी वो 4 साल तक एक ही स्कूल मे पढ़े थे.. आधिरा के पिता एक  बैंक मे कर्मचारी थे उनका तबादला देहरादून से मुंबई 7 साल पहले हुआ था.. भानू खुश था, भानू वापिस अपने चौल मे पहुंचा, लोगो से खचा खच भरे मकान, पुराने मकान जिनके रंग फीके पड चुके हैं, बच्चे भीड़ भरी गलियों मे खेल रहे हैं, तेज आवाज मे रेडियो चल रहा है, रहीम चाचा की कपड़े की दुकान, बगल मे केशरी लाल हलवाई जलेबियाँ बना रहा है, और बीचो बीच गली मे एक टूटी लकड़ी के दरवाजे वाला कमरा जहां अंदर कबाड़ और बोतले पड़ी हैं और एक खाली बिस्तर और उसके ठीक ऊपर एक मंदिर जिसके धूप अगरबत्ती के धुंए से छत काली हो चुकी है, एक दूसरा कमरा जिसका रास्ता भानू के कमरे से निकलता है वहाँ अनवर अपनी बीवी और बच्चो के साथ रहता है.. अनवर अकेला था परेशान था कुछ.. भानू, " अनवर भाई जान क्या हुआ बड़े परेशान लग रहे हो ?? अनवर माथे से पसीना पोंछते हुए ," क्या बताऊँ यार रज़िया अभी तक वापिस नहीं आई.. उलेमान और शकीना भी उसके साथ ही थे..रज़िया अनवर की बीवी और उलेमान, शकीना और सलमान ये तीनो उसके बच्चे हैं.. उलेमान 6 साल का शकीना 12  साल की, और सलमान 8  साल का है.. भानू," अरे 8 हो रहे हैं भाभी अभी तक आई क्यों नहीं ?? रज़िया लोहा और एल्युमीनियम के सामान को फैक्ट्री तक पहुंचाती है और हर रोज पेसे लेकर शाम 5 -6 बजे तक घर पहुँच जाती थी.. पर आज वो लौट के वापिस नहीं आई, छोटा सलमान माँ के इंतज़ार मे है तो अनवर अपनी बीवी के लिए परेशान है.. भानू जो आधिरा के मिलने पे खुश था, उसकी ख़ुशी गम मे बदल गयी की उसके जिगरी यार के बीवी बच्चे कहीं खो गए हैं.. अनवर फैक्ट्री के एक कर्मचारी को फ़ोन करता है , पता चलता है रज़िया 5 बजे ही यहाँ से निकल गयी थी.. भानू, अनवर और सलमान तीनो अपने कबाड़ वाली रेहड़ी मे फैक्ट्री की तरफ निकल पडे.. फैक्ट्री बंद हो चुकी थी वो दीवार के ऊपर से अंदर चले गए.. उन्होने यहां वहाँ रज़िया... शकीना.. उलेमान.. के नाम से पुकारा पर कोई आवाज नहीं आई.. भानू अनवर से कहता है , " हमे पुलिस मे रिपोर्ट लिखवानी चाहिए अनवर.." अनवर कहता है , " हाँ ठीक कहते हो ,चलो ,चल सलमान बेटा.." वो निकल ही रहे थे की अचानक पीछे से आवाज आई," अब्बु..." अनवर की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, " शकीना...भानू सुना शकीना की आवाज थी ये तो " वो यहीं कहीं है, सलमान बेटा " भानू इधर उधर ढूंढ़ता है तो उसे एक टीन के नीचे से आवाज आती है वहां शकीना और उलेमान छुप कर बैठे थे और रज़िया ज़मीन पर बेहोश थी जिसके सर से बहुत ज्यादा खून बह रहा था..ज़मीन पर घसीटने के निशाँ थे .. भानू चिलाया," अनवर मुझे वो लोग मिल गए, अनवर भागता हुआ आया और रज़िया की ऐसी हालत देख चिल्ला उठा, या अलाह ये क्या हो गया, बच्चे डरे हुए थे, रज़िया की सांसें चल रही थी.. भानू," अनवर तुम एम्बुलेंस को फ़ोन करो .." अनवर ," यार मे जल्दबाजी मे फ़ोन घर ही भूल आया " भानू ,"तो फिर यही रुको मैं एम्बुलेंस बुला कर आया.. भानू भागता हुआ गया और किस्मत से आधिरा का घर भी ठीक फैक्ट्री के साथ ही था, अनजान शहर मे भानू भागता हुआ दुबारा आधिरा के घर चला गया.. आधिरा के पिता जी इस बार गुस्सा हो उठे," अरे बड़े बेशरम किसम के लड़के हो तुम हमारी बेटी ने तुम्हे अंदर क्या आने दिया तुम अब रात रात को यहाँ आओगे क्या?? निकल यहां से.. आधिरा भागती हुई बाहर आई , " भानू तुम यहाँ ?? " भानू ," आधिरा मेरे दोस्त की बीवी के सर से बहोत खून बह रहा है वो यही रीसायकल फैक्ट्री मे बेहोश पड़ी है , तुम्हारा बहुत  भला होगा अगर एम्बुलेंस बुला दोगी.." आधिरा ने फ़ौरन एम्बुलेंस को फ़ोन किया और बिना पूछे घर से भानू के साथ फैक्ट्री चल पड़ी.. आधिरा के पिता पीछे से उसे रोकते रहे लेकिन वो नहीं रुकी.. ऊपर से आवाज लगा कर उसके पिता चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे के दुबारा वो यहाँ वापिस आने की भी ना सोचे.. और आधिरा भानू का हाथ पकड़ कर भागती हुई फैक्ट्री पहुँच गयी.. आधिरा की माँ ," आधिरा ..आधिरा .. पुकारती हुई खामोश हो गयी ..." एम्बुलेंस आती है,  आधिरा, भानू,अनवर और उसके बच्चे एम्बुलेंस मे बैठ जाते हैं और रज़िया को स्ट्रेचर मे उठा हस्पताल की तरफ रवाना हो जाते है, एम्बुलेंस किसी लाल बत्ती पर नहीं रूकती, ट्रैफिक मे भीड़ मे लोग एम्बुलेंस को जाने का रास्ता बनाते हैं, ट्रैफिक पुलिस एम्बुलेंस को बिना किसी रुकावट के हस्पताल पहुंचाने मे मदद करते हैं.. इसे देख कर लगता है की आज भी इंसानियत बाकी है इस जहां मे, लोग माना की प्यार महोबत्त भूल चुके हैं पर आज भी उनके अंदर दूसरे का दर्द समझने की अच्छाई मौजूद है.. वो हस्पताल पहुंचते हैं भागते हुए रज़िया को सभी स्ट्रेचर मे डाल कर इमरजेंसी वार्ड मे ले जाते हैं.. सभी परेशान थे, अनवर उलेमान और शकीना से पूछता है तो जो कुछ वो बताते हैं, तो अनवर के पेरो से ज़मीन खिशक जाती है,
शकीना बताती है ," अब्बु हम चार बजे फैक्ट्री पहुंचे थे, फैक्ट्री मे पहुंचते ही फैक्ट्री के एक कर्मचारी ने हमे बुलाया और मुझे और उलेमान को बाहर रुकने को कहा , और माँ को अपने कमरे मे ले गया, हम एक घंटे तक इंतज़ार करते रहे लेकिन माँ लौट कर नहीं आई, मैने उलेमान को वहीँ इंतज़ार करने को कहा, फैक्ट्री के सारे कर्मचारी  जा चुके थे,  मैने  दरवाजे के चावी के छेद से अंदर झाँक कर देखा तो अंदर माँ ज़मीन पर बेहोश पड़ी थी उनके सर से खून निकल रहा था, और वो कर्मचारी कुर्सी पर बैठा सिगरेट पी रहा था, मैं डर गयी अब्बु, मैने उलेमान को छुपा दिया और एक लोहे की छड़ी हाथ मे पकड़ ली , मैने दरवाजा खटकाया और ज्यों ही वो बाहर निकला मैने लोहे कि छड़ी से उसके सर मे मारा और वो वहीँ बेहोश हो गया , मैं और उलेमान किसी तरह घसीटते हुए माँ को बाहर ले कर आये और टीन की चादर के नीचे छुप गए जब मैने आपकी आवाज सुनी तो मे पहले तो डर गयी थी पर बाद मे पहचान गयी की आप ही हो.. "   अनवर शकीना को गले लगाता है और उसे अपनी बेटी की बहादुरी पे नाज होता है , आधिरा बोलती है ,: अनवर भाई आपको पुलिस को फ़ोन करना चाहिए हो सकता है, वो कर्मचारी अभी भी वहीँ बेहोश पड़ा हो, उसका पकड़ा जाना बहुत ज़रूरी है " भानू ," मैं हस्पताल के फ़ोन से फ़ोन करता हूँ, इनका फ़ोन जल्दबाजी मे घर ही रह गया.. आधिरा ," भानू तुम्हारे पास फ़ोन नहीं है क्या??  भानू बोलता  है, " उसे आज तक इसकी ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई " भानू पुलिस को फ़ोन करता है, पुलिस को मौके से कुछ वरामत नहीं होता ..मुज़रिम भाग चुका था ..डॉक्टर बाहर आते हैं, " और शक्क पक्का करते हैं की बलात्कार किया गया है और फिर किसी भारी चीज से सर पे मारा गया है जान लेने के लिए , पर सही वक़्त पर हस्पताल पहुंचाया गया नहीं तो वो मर चुकी होती. अभी कुछ कह नहीं सकते काफी खून बह चुका है भगवान से दुआ कीजिये कि वो बच जाए , आधिरा शकीना के गाल चूमती है और उसकी बहादुरी के लिए उसे शाबाशी देती है , आखिर वो भी अपनी माँ को बचाने मे बराबर की हकदार है.. आधिरा ऐसा लगता था अपना घर बार छोड़ कर भानू के पास चली आई थी.. चार दिन से आधिरा भानू दास गोखले की झोपडी मे कबाड़ के बीच उसके साथ थी कभी हस्पताल कभी चौल, कभी चौपाटी तो कभी जुहू.. आधिरा भानू की कबाड़ वाली साइकिल मे खुश थी.. वो जहाँ भी जाती भानू की साइकिल मे ही जाती थी.. भानू तो बचपन से ही उससे प्यार करता था.. भानू और आधिरा ने एक अनजान शहर मे अनवर और रज़िया का पूरा साथ निभाया.. देर रात तक हस्पताल मे रुकना.. रज़िया के लिए खाना लाना, पेसे का बंदोबस्त करना ..ये सब एक सच्चा दोस्त ही कर सकता है... आधिरा खुद अनवर के बच्चो के लिए खाना बनाती और अपने हाथो से खिलाती थी.. अनवर अकेला पड चुका था पर भानू और आधिरा यानी खुद भानू अर्थात सूर्य और आधिरा मतलब चाँद उनके जीवन मे प्रकाश बन कर आये थे.. अनवर को मदद की जरूरत थी, और आधिरा और भानू ने पूरी मदद की, एक रात हस्पताल मे आधिरा और भानू एक साथ बैठे थे , अंदर अनवर और बच्चे रज़िया के साथ थे ,भानू आधिरा से पूछता है की वो उसके लिए अपना घर छोड़ कर क्यों चली आई , आधिरा मुस्कुराते हुए कहती है , देखो भानू तुम मेरे बचपन के दोस्त हो , मैं ये देख कर नहीं आई की तुम कबाड़ का काम करते हो , मैं तो उस भानु के लिए आई हूँ जो दुनिया मैं सबसे अच्छा इंसान है ...दुनिया मे हर किसी को मदद की ज़रूरत होती है, तुम्हे काम नहीं मिल रहा था तो अनवर ने तुम्हारी मदद की आज तुम अनवर की मदद कर रहे हो, मैं तुम्हारी मदद कर रही हूँ तो हो सकता है तुम मेरी मदद कर रहे हो.. ये दुनिया भानू बड़ी ही मतलबी है , यहाँ तुम्हे कोई ऐसा नहीं मिलेगा जो बिना स्वार्थ के किसी की मदद करे, पर फिर भी देखो ना सुबह किसान खेती करता है तो मंडी मे बेचता है , मंडी से उसे पैसा मिलता है , वही सामान ट्रको मे भर कर शहरों मे पहुंचता है तो ट्रक वाले को भी पेसे मिलते है, फिर वही आनाज हम खरीदते हैं , तो हम पेसे देकर दुकानदार की मदद करते  हैं , इसलिए ना चाह कर भी हम इंसान एक दूसरे की मदद कर रहे हैं.".  भानू आधिरा की बातें सुन कर हैरान हो जाता है और आधिरा की आँखों मे देखता रहता है , आधिरा उसके गालों पे हाथ फेरती है और उसके गाल चूम लेती है , " भानू जीवन मे मैने तुम्हे खो कर बहुत बड़ी भूल की थी, तुमसा निस्वार्थी इंसान ज़िन्दगी मे मुझे कहीं नहीं मिला भानू..आज हर कोई जिस्म देखता है , हम लड़किओं की इज़्ज़त से खेलता है , केसा महसूस होता है मालूम है तुम्हे जब बीच बाज़ार मे सब मर्द हमे भूखे शेरो की तरह निहारते हैं, उनका बश चले तो हमे भरे बाजार मे बेईजत्त कर दे.." तुम जैसे लोग खुदा ने बहुत कम बनाये हैं भानू, और मुझे फकर है की मे तेरी दोस्त हूँ, और आज की इस दुनिया मैं हम जैसी लडकिया सिर्फ तुम जैसे लोगो से ही मदद की आस रख सकती हैं.."इसीलिए मैं तेरी मदद कर रही हूँ ताकि कल तू मेरी मदद कर सके.. भानू आधिरा की बातें सुन कर रो पड़ा और उसे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं था कि आधिरा सच मे उसके सामने बैठी है, पर कहते हैं ना किस्मत बहुत देर तक मेहरबान नहीं होती, हस्पताल मे अचानक देर रात 10  बजे पुलिस आ पहुंची.. पुलिस अफसर कड़कदार आवाज मे बोला ," भानू दास गोखले कौन है यहाँ ?? भानू घबराया सा ," जी मैं हूँ" पुलिस अफसर ," तुम्हारे खिलाफ हमारे पास वारंट है गिरफ्तारी का ,!!!"
आधिरा और अनवर बाहर निकलते हैं और पूछते है ," किस बात का वारंट अफसर ??? पुलिस अफसर बोलता है," इसके खिलाफ अनवर कुरैशी कि पत्नी रज़िया कुरैशी के बलात्कार और हत्या करने कि कोशिश का आरोप है , हमारे पास सबूत भी हैं और गवाह भी है.. तो कृपया बहश करने का समय नहीं है हमारे पास , इससे चुप चाप यहाँ से ले जाने दीजिये.. आधिरा कटाक्ष अक्षरो मैं अफसर को समझाती है कि भानू वारदात होने के समय उसके साथ था उसके घर पे , और उसी ने रज़िया को बचाने मे अनवर कि मदद कि है ..अनवर भी गुस्से मे आकर झगड़ने लगता है और ," चिल्ला चिल्ला कर कहता है कि उसका दोस्त ऐसा नहीं कर सकता, उसे भानू पर पूरा विशवास था, वो शकीना को कहता है कि बताये अफसर को सच क्या है ... पर पुलिस किसी कि बात सुनने को राज़ी नहीं थी.. पुलिस जांच पड़ताल करती है उन्हे भानू का आई कार्ड मौके से मिलता है ,पुलिस का कहना है कि भानू अनवर कि बीवी से काफी दिनों से सम्बन्ध बना रहा था , क्यूंकि वो एक ही घर मे रहते थे , और कुछ कहा सुनी होने पर एक दोस्त ने दूसरे दोस्त कि बीवी को मारने कि कोशिश की.. भानू को विश्वाश नहीं था की कैसे कोई उसके खिलाफ ऐसी झूठी कहानी बना के फंसा सकता है , अखबारों मे रोज इस खबर का ज़िकर था.. जब डिफेन्स के वकील को रखा गया तो वहां आधिरा के माँ बाप भी ये मानने से मुकर गए की वारदात के समय भानू उनके घर पे था ... शकीना का व्यान को झूठा साबित ठहराया गया क्यूंकि बारदात पे कोई लोहे की छड़ी नहीं मिली..और रज़िया तो बेहोश हस्पताल मैं थी.. असली मुज़रिम फरार था ,,जिसे सिर्फ ओर सिर्फ शकीना और उलेमान ने देखा था .. शक्क की हर सुई भानू दास गोखले पे आ पहुंची.. आधिरा और अनवर ने हर प्रयास किया भानू को सही साबित करने का , पर इस सब के पीछे किसी बड़े आदमी का हाथ था..एक हफ्ते बाद मालूम हुआ कि रज़िया कि मौत हो चुकी है..अनवर टूट कर बिखर गया ..उसकी सांसें रुक सी गयी थी उससे एक आस थी कि रज़िया बच जाएगी पर किस्मत उसके साथ नहीं थी ..तीन बच्चो को अकेला छोड़ उनकी माँ अब हमेशा के लिए जा चुकी थी..उलेमान और सलमान हर रोज माँ के नाम से रोते हैं और शकीना अपने पिता का हौंसला बढ़ाती है, ये कह कर कि अम्मी ज़रूर वापिस आएगी..इस केस कि सबसे एहम गवाह अब इस दुनिया मे नहीं रही ..भानू के बचने कि आशा और कम् हो गयी ..3  महीने केस चला और भानू को जान बूझ कर झूठे केस मे फसाया गया भानू को उम्र कैद हो गयी.. बिना भानू के गरीब चौल मे रहने वाला अनवर बिना पेसे के अकेला पड गया था.. आधिरा जहाँ काम करती थी वहां से एडवांस पेसे लेकर वो केस लड़ रही थी.. उधर रज़िया के इलाज़ मे अनवर सब कुछ गवा बैठा था.. पाई पाई कर उसने जो बचाया था सब लग गया ..फिर भी वो रज़िया को बचा ना पाया.. भूखे बच्चो का पेट भरे तो कैसे जब ना कबाड़ मिलेगा ना पैसा आएगा.. रहीम चाचा और केशरी लाल हलवाई ने कुछ पेसे मदद के तौर पे अनवर को दे दिए.. ये एक बहुत बड़ी मदद थी.. उन पेसो से 5  भूखी जानें बच रही थी.. आधिरा की हर कोशिश बेकार गयी.. एक दिन आधिरा चौल मे भानू के कमरे मे थी ..ना जाने कहाँ से उसके माता पिता आ गए .. ," उससे समझा बुझा कर घर ले गए " भानू जेल की काल कोठरी मे बंद था ..उसे अपने माँ बाप की चिंता सताने लगी.. वो जेल मे हर दम आधिरा , अनवर, उसके परिवार और अपने देहरादून मे बैठे बूढ़े माँ बाप के बारे मे सोचता रहता था की क्या बीतती होगी उनपर जब उन्हे २ महीने से पेसे नहीं मिले होंगे , पता नहीं कैसे गुजारा कर रहे होंगे.. माँ बाबू जी मे तुम्हारी और मदद नहीं कर पाउँगा ..अब मुझे खुद मदद की ज़रूरत है .. वहां आधिरा को एक दिन मालुम चलता है की फैक्ट्री का मालिक ,कर्मचारी और उसके पिता ये सारा सडयंत्र इन तीनो का ही रचा है , आधिरा के पिता नहीं चाहते थे कि आधिरा एक कबाड़ी वाले के साथ कोई रिश्ता रखे.. उन्हे समाज मे अपनी इज़्ज़त कि परवाह थी. जिसके लिए उन्होने एक औरत कि इज़्ज़त लूटने वाले को बचा लिया और भानू जैसे नैक दिल को जेल कि सलाखों मे पहुंचा दिया.. ..आधिरा हफ्ते मे एक बार भानू से छुप छुप कर मिलने आती थी.. वो उसके लिए खाना .. और कागज़ कलम लाती थी ताकि वो इस समय मे अपने अंदर के लेखक को जगा सके और इस समय को बर्बाद ना करे.. भानू के लिए यही सबसे बड़ी मदद थी ..भानू कागज़ और कलम देख कर  इतना खुश था मानो उसे एक नयी ज़िन्दगी मिल गयी हो.. उसने रोते हुए आधिरा से कहा कि उसने उसे ज़िन्दगी दे दी है, अब वो चाहे पूरी उम्र यहाँ रह सकता है बंद दीवारो मे.. क्यूंकि एक लेखक सिर्फ कागज़ और कलम से ही पूरी दुनिया घूम आता है ..इन्ही मे उसके प्राण होते हैं .. वो कहता है अगर हो सके तो हर महीने उसके माता पिता को कुछ पेसे भेज दिया करे इस पते पर.. आधिरा ने उसे भरोषा दिलाया कि वो जल्द ही बाहर होगा और वो उससे ही शादी करेगी. २ साल बीत गए आधिरा हर महीने खुद देहरादून जा कर उसके माँ बाप को महीने का खर्च दे कर आती थी ..  २ साल मे वो लगातार भानू से मिली.. भानू अपनी जीवनी पे उपन्यास लिख रहा था.. वो उसे प्रोत्साहित करती थी लिखने के लिए.. भानू खुश था कि कोई तो उसके साथ है.. वो अनवर और उसके बच्चो से मिलती रहती है.. अनवर अब कमाने लगा है ..बच्चो का पेट भरता है ऐसे तैसे.. शकीना छोटे बच्चो को पढ़ाती है,, और कुछ पेसे कमाती है..उलेमान ओर सलमान स्कूल से आ कर कबाड़ इकठा करने चले जाते हैं.. आखिर एक सदस्य और एक कमाने वाला सदस्य जो नहीं रहा.. तो कमी तो उसकी खलेगी ही.. आधिरा जो हो सके अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अनवर को दे देती है.. आखिर एक छोटी सी मदद भी काफी होती है. आधिरा चुप थी उसे सुराग कि तलाश थी जो असली गुनहगारो को पकड़वा सके.. पूरे 3 साल बाद शकीना को वही शक्श दुबारा दिखा जिसने उसकी अम्मी के साथ दुष्कर्म किया था.. उसने आधिरा को बताया.. आधिरा फ़ौरन आ गयी और उसका पीछा किआ.. और भेष बदल कर उससे मिलने गयी साथ मे एक हिडन कैमरा भी ले गयी.. उसने उसकी तस्बीर खींची और पुछा कि वो कहाँ काम करता है , उसने कहा कि वो पहले रीसायकल फैक्ट्री  मे काम करता था लेकिन अब उसकी अपनी दुकान है.. आधिरा को गुनेहगार कि तस्वीर मिल चुकी थी.. और अब उसे सबसे बड़ा काम करना था अपने बाप कि घिनोनी हरकत को दुनिया के सामने लाना.. 22 अक्टूबर 2011 केस फिर खुला और आधिरा ने सब सबूत जुटा लिए थे.. और अपने बाप फैक्ट्री के मालिक , और उस कर्मचारी का तीन साल बाद पड़दाफास हुआ.. भानू दास को बरी कर दिए गया.. और कर्मचारी मोहन पाण्डेय को फांशी और फैक्ट्री के मालिक और आधिरा के पिता को 10  साल कि सजा हुई ... आधिरा को किसी बात का दुःख नहीं था.. उसे दुःख था तो भानू को मिली सजा का.. और रज़िया जैसी माँ कि मौत का.. और समाज मे फैली इस दरिंदगी का.. आधिरा और भानू एक हो गए.. यूँ तो भानू यानी सूर्य की रौशनी से आधिरा यानी चाँद जगमगाता है, पर आज आधिरा ने भानू को एक नव जीवन दिया..आधिरा ऊंचे ख्यालो की लड़की थी..उसकी सोच महान थी.. वो हमेशा मानव कल्याण का सोचती थी.. वहीँ भानू एक भोला भाला लड़का जिसके अंदर समाज की बुराई को लिख कर ज़ाहिर करने की काबिलियत थी.. रज़िया को इन्साफ मिला.. भानू ने जेल मे तीन साल के अंतराल मे जो उपन्यास लिखा वो बहुत प्रसिद्ध हुआ.. उपन्यास का नाम रखा गया " एक छोटी सी मदद " भानू लेखक बन गया.. अब वो आधिरा के पिता से भी ज्यादा कमाता है.. आधिरा देहरादून मे उसके माता पिता के साथ रहती है.. अनवर अपने बच्चों के साथ देहरादून वापिस आ गया.. जहाँ अब वो अपनी किराने की दुकान चलाता है.. भानू आधिरा को सारी दुनिया पहचानती है.. आधिरा का संघर्ष और भानू का धैर्य और सत्यता.. और ये सब मुमकिन हो पाया एक छोटी सी मदद के बदौलत... फिर मिलेंगे एक नयी कहानी के साथ.. कहानियां जो आपको जीवन मे कभी हार ना मानने की सीख देती है, आपको सबकी मदद करने की सीख देती है.. आपको जीना सीखाती है,, आपको प्यार करना सीखाती है.. चलता हूँ भानू और आधिरा हर रोज्ज आसमान मे आपको मिलते रहेंगे... और मैं ??? मैं तो कवि हूँ एक लेखक हूँ इन्ही कहानिओं के ज़रिये आपके दिल ओ दिमाग मे ज़िंदा रहूँगा हमेशा..
आपका अपना कवि
$andy poet  


THE LOVE AGREEMENT

Hi friends, I want a little help from you. I have published a new book titled, "The love agreement" (एक प्रेम-समझौता).I am...

Popular Posts