Wednesday 25 March 2015

HALF PLATE NOODLE(हाफ प्लेट नूडल)



गुड्डू उस्ताद नाम तो सुना ही होगा आपने .. नहीं भी सुना तो सुनो , गुड्डू उस्ताद 8 साल का लड़का , सुबह 5 बजे उठता है , उठते ही माँ के पीछे साए की तरह चल पड़ता है , पिता जी है नहीं , माँ ही माँ है , माँ ही पिता है, ना कोई भाई ना बहन , माँ घर घर जा कर सफाई करती है , झाड़ू पोंचा ,बर्तन साफ़ कर अगले घर की और निकल जाती है , 12 बजे तक उन्हे पूरे 7-8 घरो में यही काम दोहराना होता है..गुड्डू माँ के पीछे पीछे, माँ का दुपट्टा पकडे हर घर में जाता है , और छोटा मोटा काम कर देता है जेसे , झूठे बर्तन पकडाना , पोंछे वाले पानी में फिनाइल डालना , और छोटी मोटी साफ़ सफाई , इन नन्हे हाथो की इतनी मदद भी काफी होती है माँ के लिए , पर माँ- बेटे के लिए सबसे बड़ी बात तो यही की माँ की आँखों के सामने है बेटा, और बच्चे के सामने माँ ...
मीना , गुड्डू की माँ , अभी 27-28 साल उम्र , विधवा और घर की रोज़ी रोटी वोही चलाती है ,
मीना एक मालिक के घर पोंछा लगाते हुये गुड्डू को टोकते हुये बोली  ,” गुड्डू ना बाबा उधर नहीं जाने का गीला है फर्श , गन्दा हो जाएगा , ऊपर बेठो थोड़ी देर “
और गुड्डू शरीफ भोला भाला बच्चा मासूमियत भरी आँखों से माँ को देखता हुआ सोफे पर बैठ जाता है बोलता है , ‘माँ ये कुर्सी बहुत गुदगुदी है , एक तुम मेरे लिए भी ला दोगी?? “ माँ मुश्कुराते हुये अपनी गरीबी के हालात पर हस देती है और दिलाशा देते हुये कहती है ,” क्यूँ नहीं बेटा इससे भी बढ़िया कुर्सी लायेंगे हम गुड्डू आराम से सोयेगा उसमे फिर...  गुड्डू का छोटा सा दिमाग माँ के झूठे दिलासे को कहाँ समझ पाता और खुश हो जाता है .. दिन भर काम कर के शाम को दोनों घर जाते हैं ..एक टूटी सी खोली में घुसते हैं और माँ खाना बनाने में व्यस्त हो जाती है , गुड्डू उस्ताद स्कूल तो जाता नहीं था .. माँ से पुछा ,” माँ मैं बिट्टू , और छोटू के साथ खेलने जाऊं??
माँ ,” खाना नहीं खाना क्या ??”
गुड्डू अपनी प्लास्टिक की गेंद उठा कर कहता है ,” तुम मुझे आवाज लगा लेना मैं आ जाऊँगा “
गुड्डू छोटू और बिट्टू के साथ मार्किट में चला जाता है, एक मालकिन का लड़का उसे रास्ते में मिलता है , एक रेस्तरा के बाहर नूडल्स खा रहा होता है ,
गुड्डू उसके पास जाता है और उत्सुकतापूर्वक आवाज लगाता है , “रोहन भैया” ..
रोहन गुड्डू को देख मुह फेर लेता है, ..गुड्डू पास गया .. उसकी कमीज खींचता हुआ बोला ,” रोहन भैया मैं हूँ गुड्डू “ रोहन  गुस्से से बोलता है ,”ओये क्या कर रहा है .भाग यहाँ से .. गुड्डू फिर से उत्सुकतापूर्वक पुछा ,” ये क्या खा रहे हो ??? “ छी छी केंचुए ... ओये बिट्टू  ओये छोटू देख रोहन भैया केंचुए खा रहे हैं ...और उलटी करने का नाटक करता है ... रोहन को गुस्सा आता है और भरी हुई नूडल की प्लेट गुड्डू के सर पर उड़ेल देता है , बिट्टू और छोटू तो भाग खडे होते हैं , और गुड्डू अपने सर पर केंचुए जेसे नूडल देख कर डर जाता है और उन्हे झाड़ता हुआ जोर जोर से रोने लग जाता है , भागता हुआ घर जाता है , माँ की टांग से लिपट कर रोने लगता है , माँ डर जाती है
मीना ,” गुड्डू क्या हुआ बच्चे ..क्यूँ रो रहा है .. बता ना ...क्या हुआ तुझे ...??? 
गुड्डू रोते हुये सारी बात बताता है , “ केंचुए माँ केंचुए गिरा दिए रोहन भैया ने मुझ पर ...
माँ तो समझदार होती है , बच्चे भोले होते हैं और यही भोलापन माँ को हस्सी दिलाता है , ख़ुशी देता है , मीना हस पड़ती है..
और गुड्डू के गाल खेंचते हुये उसे गले लगा लेती है ,” कितना भोला है रे तू .. ज़रूर तुने ही कुछ किया होगा पहले ...
गुड्डू रोता रहा , फिर माँ ने उसके सर पर पडे नूडल्स में से एक उठाया और हाथ में लेते हुये दिखाया ,” गुड्डू ये देख ये केंचुआ नहीं है , इसे नूडल कहते हैं, ये खाने की चीज़ होती है , मीना ने उसे नूडल को मुह में डाला और सांस अन्दर खेंचते हुये गया नूडल पेट में . गुड्डू का रोना कुछ कम् हुआ ,
मीना एक और नूडल उठाती है और गुड्डू को पकडाती है ,’ चल तेरी बारी जेसा मैने किया वेसे ही करना ठीक है ,...चल एक साथ ...
गुड्डू का डर थोडा कम् हुआ और माँ को देखते हुये माँ पर भरोषा रखते हुये दोनों एक साथ नूडल खाते हैं ... और गुड्डू पहला नूडल खाता ही उसके स्वाद का दीवाना हो जाता है ..
गुड्डू के आंशुओ भरे गालों पर हस्सी आती है ,” अरे वाह माँ ये तो बहुत स्वाद है ..
मीना को ख़ुशी होती है की उसका बेटा कुछ नया सीखा ..अपने डर पर काबू पा सका ...
गुड्डू अब से रोज़ उसी गली से निकलता और नूडल्स की सुगंध उसे मोह लेती थी .. एक दिन वो पूछ ही बेठा..
“ अरे ओ भाई ये लूडल कितने का आता है??”
“ बोलना सीख ले पहले फिर पूछना “ रेस्तरा का बाबर्ची बोला
गुड्डू बोला ,” बताओ ना चाचा कितने का है??
नूडल वाला ,” फुल प्लेट 40 और हाफ प्लेट 20... ये देख ये छोटे वाला हाफ प्लेट और ये भरा हुआ फुल प्लेट समझा ..खाना है तो निकाल पैसा नहीं तो कट ले पतली गली से .. समझा क्या ????
गुड्डू दिमागी हिसाब किताब लगाने में व्यस्त था , गुड्डू भाग कर घर गया ,” माँ माँ 20 रुपया दो ना ...लूडल खाऊंगा “ माँ  हैरान हो गयी बेटे के मुह से ऐसी ख्वाइस सुन कर ... माँ बोली ,” बेटा ये नूडल लूडल बडे लोगो के चोचले हैं , हम तो 20 रूपये से दो वक़्त की सब्जी खरीद लेते हैं ..आज की महंगाई में 20 रूपये अमीरों के लिए तो कुछ भी नहीं पर हम जेसो के लिए तो 1000 रूपये से कम् नहीं है ... बेटा ये ले एक रुपया अभी तो मेरे पास यही है , तू कुछ और खा ले .. रामदीन चाचा की दूकान में नया चत्पताका आम पापड़ आया है जा वो ले आ ... बहुत स्वादिस्ट होता है , मुह में पटाखे फूटते हैं खाते ही ....
पर गुड्डू तो नूडल के स्वाद में इतना डूब चुका था की ठान चुका था की अब हो ना हो हाफ प्लेट नूडल तो खा कर ही छोड़ेगा...एक रुपया उसने संभाल कर रख लिया ... दिन बीतते गये ... तीन चार दिन में माँ से एक रुपया मांग लेता ,” माँ चत्पताका आम पापड़ खाऊंगा एक रुपया दो ना ..” नूडल खाने की चाह में वो इतना बेचैन हो चुका था की , माँ से छुप छुपा कर लोगो की गाड़ियों के शीशे साफ़ कर एक दो रूपये कमा लेता था ..पूरे 2 महीने लगे उसे 20 रूपये इकठा करने में , और सब एक एक रूपये के सिक्के ... गुड्डू का वो दिन बहुत ख़ुशी का दिन था .. गुड्डू रात को सो नहीं पाया की कल वो हाफ प्लेट नूडल खाएगा ... सुबह हुई ...
माँ जल्दी चलो ना आज तुम्हे काम पर नहीं जाना क्या “ पर माँ आज बीमार थी ...
मीना करहाते हुये बोली,” आज मुझे बुखार है , मै नहीं जाउंगी काम पर“
“दवाई क्यूँ नहीं ले लेती????” गुड्डू गुस्से से बोला ...
मीना को गुड्डू के ऐसे जवाव से गुस्सा आता है और वो ताना मारते हुये कहती है ,” पेसे क्या तेरा बाप देगा मुझे दवाई के लिए , एक फूटी कौड़ी भी नहीं मेरे पास , कहाँ से लाऊं दवाई मैं ??  बता ??? चुप क्यों खड़ा है ???”
वो उससे बड़ों जेसा वर्ताव कर रही थी , मानो गुड्डू 8 साल का नहीं 18 का हो .. मीना टूटी खोली में बीमार बिस्तर पड़ी है , दरवाजे से हलकी रौशनी आ रही है , और गुड्डू वहीँ खड़ा दरवाजे के पास और देखते ही देखते गायब हो जाता है , मीना करहाते हुये आवाज लगाती है ,” गुड्डू.........रुक जा कहाँ जा रहा है ??” पर गुड्डू जा चुका था ...
   हाथ में 20 सिक्के गुड्डू गहरी संकट में ,” दवाई या हाफ प्लेट नूडल ??? दवाई ले लेता हूँ माँ बीमार है , पर नूडल ..दुबारा इतना पैसा इकठा करने में बहुत समय लगेगा ..गुड्डू सचमुच 18 साल के बच्चे जेसा सोचने लगा ... आखिर वो अपना मन मनाकर एक मेडिकल स्टोर से दवाई खरीद लाता है , ये बहुत बड़ी कुर्बानी थी एक 8 साल के बच्चे के लिए ...
“ माँ देखो दवाई लाया हूँ , उठो अब तुम अच्छी हो जाओगी , लो दवाई खा लो माँ , मैं तेरे लिए लाया हूँ ...” गुड्डू पानी का गिलास भरते हुये बोलता है ...     “ पेसे कहाँ से आये तेरे पास “ मीना चौंक कर बोली ..अब्दुल चाचा से उधार लाया हूँ माँ , कहा थोडे दिन में दे देंगे पेसे..”गुड्डू सफेद झूठ बोलता है एक दम दूध जेसा ... मीना बुखार की हालत में थी कुछ बोल ना पायी और दवाई खा कर सो गयी ...
गुड्डू पूरा दिन सोचता रहा की उसके पेसे गये , अब दुबारा ज़दोज़हत करनी पड़ेगी ... अगले दिन मीना स्वस्थ हो जाती है , वो वापिस काम पर जाती है ..दिन बीत गये गुड्डू वोही आम पापड़ के बहाने और लोगो की गाड़ियों के शीशे साफ़ कर कर के आखिर फिर 2 महीने  में हाफ प्लेट नूडल के लिए 20 सिक्के जुटा लेता है.. आखिर वो दिन आ ही गया, वो सोया सॉस की खुसबू उसके दिल ओ दिमाग को भा चुकी थी.. माँ के साथ उसी रेस्तरा वाली गली से गुज़रा .. माँ को अब्दुल की दुकान दिखी उसे याद आया की दवाई के उधार के पेसे वापिस लौटाने हैं
“ गुड्डू माँ से हाथ छुडा कर रेस्तरा की तरफ भागने लगा , जेसे दिल वाले दुल्हनिया में शाहरुख़ काजोल की तरफ दौड़ता है ठीक उसी तरह .       
माँ बिना उसकी तरफ ध्यान दिए ,अब्दुल से जा कर कहती है ,” अब्दुल चाचा ये लो 20 रूपये 2 महीने पहले गुड्डू दवाई ले कर गया था ना “
अब्दुल हैरानी से बोला ,” पर मीना बहन वो तो पेसे दे कर ही दवाई ले कर गया था ...”
मीना ने इतना सुना ही था इससे पहले की वो कुछ सोच पाती एक तेज़ आवाज़ आती है ...और सिक्को के ज़मीन पर गिरने की आवाज आती है
मीना मुड कर देखती है तो गुड्डू एक गाड़ी से टकराकर बोनेट से उछल  कर गाडी की छत से लुडकता हुआ पीछे गिरा पड़ा होता है , सिक्के अभी भी सड़क पर लुडकते हुये जा रहे थे ..  
“गुड्डू......” मीना की एक दम से चीख निकल जाती है ...
गाडी से एक नारंगी साडी में एक औरत निकलती है, जो की किसी अमीर घराने की बहु प्रतीत होती है , भागते हुये गुड्डू के पास जाती है..
मीना ,” हे डायन ये तुने क्या कर डाला ??? मेरे गुड्डू को ...मेरे गुड्डू को गाडी से उड़ा दिया .. मीना उस अमीर औरत के बाल नोचने लग जाती है.. गाडी वाली औरत शांत स्वभाव की थी , वो कुछ नहीं बोली लोगो ने मीना को हटाया.. फटाफट गुड्डू को उठाया और गाडी में सुला दिया ..गुड्डू के पैर से लाल खून बह रहा था.. .. मैं वहां भीड़ में खड़ा उन बिखरे सिक्को में गुड्डू के हाफ प्लेट नूडल खाने के ख्वाव को बिखरा हुआ देख रहा था..मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था की उस बच्चे का सपना अधूरा ही ना रह जाए,.
मीना गाडी में बेठी .. और गुड्डू को फटाफट हस्पताल ले जाया गया ..
“कोन हो तुम मेरे बेटे को क्यूँ मारना चाहती हो “
उस औरत का नाम शकुंतला था , वो भी एक विधवा अकेली औरत थी ..पर नौकरी पेसे वाली थी ... वो बोली ,” देखिये बहन जी मेरी इस में कोई गलती नहीं आपका लड़का एक दम से मेरी गाडी के सामने आ गया .. और में उसे देख नहीं पायी .. मुझे माफ़ कर दीजिये..और वो फूंट फूंट कर रो पड़ी “
डॉक्टर आते हैं ,”गुड्डू की हालत नाज़ुक है काफी खून बह चुका है टांग से , और फ्रैक्चर भी हो चुकी है टांग ..” मीना इतना सुनते ही सकुन्तला पर टूट पड़ी ,” सुन अगर मेरे गुड्डू को कुछ हुआ ना मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगी” मीना और शंकुतला तीन चार दिन तक लगातार हस्पताल में ही रहे .. चोथे दिन डॉक्टर आया ,” बच्चे की हालात में सुधार आया है , पर वो कुछ खा नहीं रहा, आईये आप मिल सकते हैं उससे ,
गुड्डू अब ठीक था पैर पर प्लास्टर था और ठुड्डी पर भी चोट थी ..नन्ही आँखें एक टुकुर देख रही थी.. मीना प्यार से पुचकारती है , और सर पर हाथ फेरते हुए पूछती है ,” क्या खाएगा गुड्डू?? “ चावल ??? सब्जी ?? तू कहे तो आम पापड़ लाऊ तेरे लिए .. गुड्डू ने सर हिलाते हुए अपनी चोट लगी ठुड्डी से हलकी आवाज में बोला ,” हाफ प्लेट नूडल “ सब के चेहरे पर मुस्कान आ गयी .. शकुन्तला ने फ़ौरन हाफ प्लेट नूडल गुड्डू के लिए मंगवाए और आखिरकार .. वो सपना उसके सामने था ..माँ ने खुद उसे अपने हाथो से हाफ प्लेट नूडल खिलाया ,वो सोया सॉस की महक उसके मुह से होते हुये दिल में उतर गयी .. उसे वो स्वाद बहुत भा चुका था.. वो बात अलग थी की वो हाफ प्लेट का आधा हिस्सा भी नहीं खा  पाया ..पर सपना तो सपना था..
1 हफ्ते बाद गुड्डू को हॉस्पिटल से छुट्टी मिली , शंकुंतला चाहती थी की उसका अकेलापन दूर हो जाएगा अगर गुड्डू और मीना उसके साथ उसके घर पर रहे ..पहले तो मीना मना करती रही ,लेकिन गुड्डू से पुछा तो उसने कहा ,” अगर रोज़ हाफ प्लेट नूडल खिलाओगी आंटी तभी चलूँगा तुम्हारे घर “ शंकुतला आखों में अंशु और चेहरे पे मुस्कान लिए गुड्डू को गले लगाते हुये कहती है ,” प्रॉमिस जितना चाहे उतना नूडल खाना हम घर पर ही बनाया करेंगे ..
अब मीना शंकुतला के घर का काम करती है , और कहीं नहीं जाती .. साथ ही शकुन्तला उसे सिलाई का काम सिखा रही है , जिससे वो उसके कपडे के शोरूम में काम कर सके... गुड्डू उस्ताद अब स्कूल जाता है , लंच बॉक्स में अधिकतर नूडल ही ले कर जाता है और बडे चाव से खाता है , खुसबू लेता हुआ ...तो दोस्तों ये थी कहानी हाफ प्लेट नूडल , जिसमे संघर्ष था हाफ प्लेट नूडल खाने का , कुर्बानी थी सपने की , और एक 8 साल के बच्चे की मानसिकता थी.. आप भी सपने देखिये , अपने दिल के करीब लोगो के लिए कभी सपनो का त्याग भी करना पड़ता है , और खाश बात नूडल ज़रूर खाएं ...एक हाफ प्लेट नूडल आपको स्वर्ग जेसी ख़ुशी दे सकता है , एक हाफ प्लेट नूडल ऑफिस से थके हारे इंसान की भूख शांत कर सकता है , एक हाफ प्लेट नूडल से आप अपनी महबूबा को खुश कर सकते हैं और सबसे बड़ी बात एक हाफ प्लेट नूडल आपको आशावादी बना सकता है , केसा लगा मेरा बनाया हाफ प्लेट नूडल कमेंट ज़रूर करें ..पड़ते रहिये मेरी कहानियां ऐसी ,कहानियाँ जो आपको जीना सीखाती हैं प्यार करना सीखाती हैं ...

आपका अपना कवि
$andy poet  


Saturday 21 March 2015

कहानी का लेखक कोन??

           
प्रीतम लाल बिहारी रोज़ की तरह सुबह सवेरे अपनी पत्नी के हाथो टिफिन ले कर हड़बड़ी में घर से निकलते हैं और अपने पुराने जान से प्यारे बजाज स्कूटर पर सवार हो कर बेरंग पुराना हेलमेट लगा कर निकल पड़ते हैं ऑफिस की ओर, घर से निकले ही थे की पीछे से श्रीमती पारवती लाल बिहारी की तीखी आवाज ,” शाम को आते हुए आम का अचार लेते आना बिहारी जी, अम्मा का आचार खाने का मन हो रहा था“ बिहारी जी माथे में सिकज कसते ही ताना मारते हैं मन ही मन ,स्कूटर चलाते चलाते ,” सबको बता दे चीख चीख के की अबकी बार अम्मा फिर दादी बनने वाली है, आचार ले आना.. सरफिरी औरत....बिहारी जी की नोक झोक अक्सर श्रीमती से हो जाती है , और होनी भी चाहिए येही तो मज़ा है विवाहिक जीवन का.. बिहारी जी स्कूटर की फटफटी आवाज बजाते हुए चोराहे में पहुंचते हैं , लाल बत्ती पे रुक जाते हैं , बगल में देखते हैं तो चौबे जी अपनी बाइक पर ठीक उसी तरह माथे में सिकज लिए रुके हुए हैं लाल बत्ती पे , साथ ही अपनी मारुती में ब्रिजेश पाण्डेय जी उसी बत्ती पे , तीनो एक दूसरे को देख बनाबटी हस्सी हस देतें हैं I बिहारी जी को जलन है चौबे जी की बाइक से , तो वहीँ चौबे जी की पत्नी बार बार पाण्डेय जी की नयी नवेली मारुती की तारीफ कर कर के चौबे जी का भेजा नौचती रहती है I पांडये जी मारुति से पान थूकते हुये इशारा करते हैं और बिहारी जी पर व्यंग्य कसते हुये कहते हैं ,” का हुआ बिहारी जी तनिक मुस्कुरा दीजिये, लगता है भोजाई ने आज फिर सुताई की है जम के’ चौवे जी भी खिल खिला उठे , बत्ती हर्री हुई और लो जी अभी चलने ही वाले थे की एकाएक सामने से तेज़ ट्रक भागता हुआ दाहिनी और से निकला और एक साइकिल पर जाते हुये युवक को कुचलता हुआ आगे निकल गया , भीड़ इकट्ठी हो गयी , पाण्डेय जी तो गाडी से उतरने में संकोच करते हुये निकल लिए पतली गली से , वहीँ बिहारी और चौबे जी ने अपनी इंसानियत दिखाते हुये अपने वाहन बगल में खडे किये और भीड़ में शामिल हो गये.. कुछ पल शौंक व्यक्त किया और पुलिस के आते ही वो दोनों भी ट्रक वाले को दो चार गाली सुना अपने ऑफिस के लिए रवाना हो गये..
चौबे जी ,” क्या बताएं बिहारी जी भरी जवानी में एक नौज़बान लड़का  मारा गया, बहुत दुःख होता है ऐसी खबरें सुन कर, देख कर” बिहारी जी उदास चेहरा बनाते हुये ,” जीवन है चौबे जी मृत्यु का कोई अनुमान लगा पाया है आजतक “
शाम को बिहारी जी घर पहुंचते हैं हाथो मे आम का आचार , “ पार्वती... अम्मा ... कहाँ हो भई.. ये लो आचार आ गया ...
पार्वती, “ हाये गज़ब हुई गवा अम्मा , हमार मंगवाई पहली चीज़ लायें हैं आज बिहारी जी “ ..
वहीँ चौबे जी घर जाते ही बीवी रेशमा को आते ही सुबह की सड़क दुर्घटना बताते हैं और लो जी शुरू हो गया लेक्चर ,” तभी तभी... चौबे जी आपको हम रोज़ रोज़ समझाते हैं की गाडी ले लीजिये दुपहिया बाहन में जान का खतरा होता है, देखा नहीं पाण्डेय जी कितने आराम से मारुति में जाते हैं ... वहीँ गाडी से आराम से सफ़र कर पाण्डेय जी घर पहुंचते हैं, और गेट पर हॉर्न बजाते हैं ,बेटा हितेश दरवाजा खोलता है और गाडी पार्क कर घर में प्रवेश करते हैं , पत्नी शर्मीली है , मेरा मतलब नाम शर्मीली है ,वेसे तो बहुत खूंखार है ..भागते हुये शर्मीली आती है और तपाक से बोल उठती है  “ पाण्डेय जी खबर सुनाते हैं आपको , त्रिलोकीनाथ का छोटा भाई अनिरुध आज साइकिल से जा रहा था और एक ट्रक वाले ने उसे ........
पाण्डेय जी ,” मालूम है , भेजा ना चाटो भाग्यबान खाना लगाओ..”
“पतिदेव क्रोधित काहे होते हैं, लगाते हैं .. हाथ मुह धो लीजिये “शर्मीली बात काटते हए बोली.. रात हो गई सब के सब आराम से चैन की नींद सो गये पर प्रीतम लाल बिहारी कुछ परेशान थे , बगल में सोयी पारवती पूछती है , “ क्या हुआ जी आज बहुत खामोश से लग रहे हैं ??” “ कुछ नहीं पारवती सोच रहे थे की ज़िन्दगी का कोई भरोषा नहीं है , कब खत्म हो जाए ,” पार्वती , प्रीतम के मुह पे हाथ रखते हुये बोल उठती है ,” केसी बातें कर रहे हैं बिहारी जी ,मरे हमारे दुश्मन, सो जाईये सुबह ऑफिस नहीं जाना है का “
चारो तरफ अँधेरा और अम्मा के खर्राटो की आवाज ओर भी खौफ़नाक, रात के 12 बज चुके हैं और प्रीतम लाल बिहारी भी आखिर सो ही गये, एकाएक सामने वाले घर से कुछ आवाजें आने लगती हैं ,
“ पारवती ...अरी ओ सुनती हो क्या .. उठो .. पाण्डेय जी के घर से कुछ आवाजें आ रही हैं , पर कुम्भकरण की नींद सोयी हुई थी पारवती तो ...
चप्पल पहन कर प्रीतम खुद ही जा पहुँचता है अकेले पाण्डेय के घर.. पाण्डेय के घर की बत्ती जल रही थी , दरवाजा खटकाया तो बेटा खोलता है , ,” क्या हुआ बेटा सब ठीक तो है ,
हितेश ,” अंकल अच्छा हुआ आप आ गये देखिये ना पापा को क्या हो गया , नींद में थे और एक दम से उठे और स्टडी टेबल पर बैठ कर कागजों पर लिखते जा रहे हैं .. हमारी बात सुन ही नहीं रहे ..”
 शर्मीली भागती हुई आती है , “ देखिये ना बिहारी जी आधी रात को पाण्डेय जी को क्या शौंक चढ़ा है लिखने का , सुन ही नहीं रहे हमारी बात ...बिहारी अन्दर गया पाण्डेय लगातार कागज़ पर लिखता जा रहा था .. वो ये सब देख कर चौंक गया .. उसने डरते हुये , पाण्डेय को छुआ ,” पाण्डेय भाऊ , ठीक तो हो ना क्या हुआ , तनिक बताओ तो .. “ मगर पाण्डेय भाऊ तो देखते ही देखते पांच पेज लिख गये ... बिहारी जी बोले इन्हे लिखने दीजिये अन्दर बंद कर दीजिये आप सब बाहर सो जाईये सुबह ही अब बात हो पाएगी भाऊ से , लगता है बहुत परेशान हैं आज ... परिवार उन्हे अकेला छोड़ कर बाहर सो जाता है और कमरे को कुंडी लगा देते हैं .. बिहारी उन्हे दिलाशा देते हुये घर जा कर सो जाता है , सुबह होती है तीनो पडोसी फिर वहीँ ट्रैफिक लाइट्स पर मिलते हैं , पाण्डेय जी पान थूकते हुए वोही अंदाज़ में , “ क्या हुआ बिहारी बीवी से सुताई.... चौबे जी बात काटते हुये बोल उठे ,” अरे बिहारी को छोड़िये आप बताइये आपको क्या हुआ था कल रात ??? पाण्डेय जी,” कुछ भी तो नहीं, हमे क्या होगा हर कोई हमसे सुबह से यही पूछे जा रहा है “ अरे भाई कल रात हम आराम की नींद सोये , हमे कुछ नहीं हुआ था..
बिहारी और चौबे जी हैरान ... ऑफिस का वही थकान भरा दिन , शाम को बीवी की कहा सुनी.. और फिर रात ढल आई ... अबकी बार 12 बजे तक सब ठीक था .. बिहारी जी खिड़की से बाहर देखते रहे आज कुछ नहीं हुआ .. कुम्भकरण बीवी सो चुकी थी .. अम्मा की खर्राटे की आवाज़ ..और देखते ही देखते सुबह हो गयी .. बिहारी जी उठते हैं बीवी को उठाते हैं .. और चाय बनाते हैं ... और एकाएक उनकी नज़र स्टडी टेबल पर गयी , देख कर चौंक जाते हैं , पारवती सुस्ताते हुये बोली ,” बिहारी जी ई का कल रात आप पढ़ाई कर रहे थे का ... क्या गंदगी मचा रखी है स्टडी टेबल पर ... टेबल पर ढेरो कागज़ पडे थे , लिखे हुये जिनमे नीले रंग के पेन से हिंदी भाषा में लिखा गया था , लिखाई देखी तो बिहारी जी चौंक गये , ये तो उनकी ही लिखाई थी .. अब तो बात परेशानी की थी .. वोही लाल बत्ती पर .. पाण्डेय जी व्यंग्य कसते हैं .. और इस बार चौबे जी बिहारी का चेहरा देख कर ही हस देते हैं ... बिहारी का चेहरा मुरझाया सा .. पुराने हेलमेट में मानो गोभी का फूल रखा गया हो ..जो काला पड़ चुका हो ... अगली रात यही घटना चौबे जी के साथ घटती है , .. वोही रात 12 बजे के बाद ना जाने क्या हो जाता था की , वो तीनो खुद ब खुद उठ कर लिखने लग जाते थे ,हर  तीन दिन के अंतराल पर ये घटना तीनो में से किसी एक के साथ घटती, घर वाले परेशान हो गये थे तीनो के , मानो उन्हे लिखने का दौरा पड़ता हो हर रात .. घर वाले चुप थे उन्हे नहीं मालुम था की ये घटना और किसी के साथ भी घटती है , उन्हे लगा के घर के बडे मर्द हैं , हो सकता है , कुछ ऑफिस का काम करते होंगे रात को ... पर काम एक दिन का होता है दो दिन का .. एक महिना हो गया .. कागजों के ढेर लग गये.. एक दिन पारवती शर्मीली , और रेशमा तीनो ने घर के मर्दों का राज़ एक दूसरे से खोल ही डाला ..
रेशमा चौंकते हुये बोली ,” क्या कहा पाण्डेय जी और प्रीतम जी दोनों भी ... ??? “
शर्मीली अपनी नोकझोक भरे अंदाज़ में बोली , “ दीदी लगता है किसी ने हमारे मर्दों पे टूना टोटका कर दिया है “ पारवती ,” नहीं नहीं मुझे इन तीनो की मानशिक हालत ठीक नहीं लगती ,आदमी तभी लिखता है जब वो किसी से दिल की बात ना कह पाए , वो कलम को अपना साथी मानने लगता है फिर ..हमे किसी मनोविज्ञानिक को बुलाना चाहिए ...
वहीँ कोने में बेठी मुरझाई हुई अम्मा बीच में बोल उठती है ,” साया है साया काला साया किसी आत्मा का .. मेरी बात मानो .. तांत्रिक बाबा को बुला लाओ सबकी अकाल ठिकाने आ जाएगी “
पारवती नए ख्यालो की थी ,” अम्मा तुम तो चुप ही करो “
शर्मीली ,” कभी तुमने पढने की कोशिश की वो लिखते क्या हैं ???
रेशमा एकदम से बोली ,” अरे सारे कागज़ बंद अलमारी में रख कर जाते हैं पढेंगे केसे ..???
तीनो मर्द एक बार फिर ट्रैफिक लाइट्स पर मिलते हैं ,”
बिहारी जी,” चौबे जी वंदना की निकुम्भ से शादी हो गयी आगे, पर आगे क्या हुआ मालूम है ???
पाण्डेय जी,” अरे क्या बात कर रहे हो ?? वंदना की शादी हो गयी निकुम्भ से ??? कब केसे ??  
चौबे जी एकाएक बोल उठे ,” उसका दो महीने का लड़का भी हो चुका है पाण्डेय जी बिहारी जी ...”
पाण्डेय बिहारी एकाएक फिर चौंके ,” अरे कमाल करते हो यार बताया नहीं तुमने ... अब बता रहे हो .. वो वापिस वोही हस्सी मजाक कर रहे थे .. और मज़ाक में बात चल रही थी उस कहानी की जिसे वो तीनो मिल कर पूरा कर रहे थे , दरअसल उन तीनो को एहसास हो चुका था की जो वो हर रात को लिखते हैं अनजाने में असल में वो एक ही कहानी है .. जिसकी शुरू का हिस्सा पाण्डेय जी लिख रहे हैं .. मध्य का प्रीतम लाल बिहारी जी और आखिर का हिस्सा चौबे जी के हाथ लगा है , उन तीनो को बिलकुल भी एहसास नहीं की ये कहानी कोन उनसे लिखवा रहा है ,केसे उनके दिमाग में ये कहानी आई .. पर इतना तो मानना पड़ेगा तीनो आनंद से इस कहानी को बिना डरे लिख रहे हैं... पूरे चार महीने बाद चौबे जी ने कहानी का अंत सुनाया मगर कहानी तो लगभग 900 पेज लम्बी बन चुकी थी.. अब तीनो में घमंड आने लगा की तीनो के पास कहानी के एक तिहाई हिस्से हैं पर लेखक का नाम तो एक ही होगा .. या तो ब्रिजेश पाण्डेय ..प्रीतम लाल बिहारी .. या अखिलेश चौबे ... बड़ी समस्या हुई ..मुद्दा कचहरी तक चला गया की कहानी का लेखक कोन होगा ... आखिर तीनो के पास एक तिहाई हिस्सा था ... कोर्ट का फैसला हुआ की तीन किताबें छपवाई जाएँ वॉल्यूम 1 वॉल्यूम 2 और वॉल्यूम 3 तीनो के लेखक अलग अलग होंगे.. तीनो ने कुछ दिन तक विचार विमर्श किया  और निर्णय लिया.. की कोर्ट का फैसला माना जाए ... किताब छपने को गयी प्रिंटिंग प्रेस में ना जाने रातो रात क्या कुछ हुआ .. किसी को नहीं मालुम .. किताब का पहला एडिशन छपा पूरी कहानी 900 पेज की .. और पूरी दुनिया देख कर दंग रह गयी ..लेखक का नाम देख कर .. लेखक का नाम ना तो ब्रिजेश पाण्डेय था .. ना ही प्रीतम लाल बिहारी और ना ही अखिलेश चौबे ....लेखक का नाम था ..
“अनिरुध एक आजाद अमर लेखक”  अनिरुध त्रिलोकीनाथ का छोटा भाई जो सड़क दुर्घटना में मारा गया था .. एक लेखक बनने का सपना लिए ही एक नौज्बान जिसकी वक़्त से पहले ही सपने पूरे करने से पहले ही उसकी मौत हो जाती है .. अनिरुध की आत्मा भटकती रही ... पाण्डेय जी चौबे जी .. और बिहारी जी के शरीर का सहारा ले कर अपना अधूरा सपना पूरा कर गयी ....किताब का सच पूरे जहां को पता चलता है , की केसे इस किताब को लिखा गया .. हाथ बेशक पाण्डेय ,चौबे और बिहारी के थे ,लेकिन उनके अन्दर रूह अनिरुध की थी ,सोच अनिरुध की थी , और आखिर किताब पूरे विश्व में छपी, बहुत लोकप्रिय हुई ,बेस्ट ऑथर अवार्ड भी दिया गया ,तीनो लेखक किताब ले के त्रिलोकीनाथ के घर गये,किताब देखते ही उनकी आँखों से अनिरुध का नाम पड़ते ही अश्रु बह आये ... और इस तरह एक लेखक अमर हो गया . ..सपने देखिये ..और लगातार उन्हे पूरा करने का प्रयतन करते रहिये ...आपकी किस्मत आपको उन सपनो से ज़रूर मिलवाएगी ....वेशक मौत भी क्यूँ ना आ जाए ..आशा है आपको कहानी अच्छी लगी होगी .चलता हूँ जल्द ही  लौटूंगा एक नयी कहानी के साथ ...कहानिया ऐसी जो आपको जीना सिखाती हैं I
आपका अपना कवी..
$andy poet         

        

Saturday 7 March 2015

ईश्वरीय उपहार- एक महिला का प्यार

सैंडी पोएट लाया है एक नयी कहानी इस महिला दिवस पर , कहानी है दो दोस्तों ध्रुव और चेतन की , ध्रुव और चेतन का जनम एक ही दिन हुआ था ,उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव में , ध्रुव और चेतन का घर पास पास ही था , एक घर से बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी सिर्फ, जबकि चेतन के घर से लोगों के रोने की आवाज भी आ रही थी , चेतन पैदा हुआ , लेकिन पैदा होते ही माँ चल बसी , एक बच्चा जिसकी माँ जनम के समय ही उसका साथ छोड़ जाए , वो दुनिया का सबसे बदकिस्मत बच्चा होगा I ध्रुव की एक बड़ी बहन भी थी , जबकि चेतन अकेला लड़का था घर में , चेतन के घर पिताजी थे दादाजी , बस इनकी देखरेख में वो बड़ा हुआ, जबकि ध्रुव को माँ का ,बहन का , दादी का दादा का , पिताजी सबका प्यार मिला I दोनों बच्चे बडे हुए , विद्यालय गये , ध्रुव दोस्ताना स्वभाव का था , सबसे प्रेम से बात करता था , विपरीत इसके चेतन बहुत ही गुस्सैल था, सबसे मारपीट करता था,आखिर प्यार शब्द उसने कभी जीवन में सुना ही नहीं था, वो तो एक माँ या बहन ही सीखा सकती थी , जिससे वो वंचित था I कुछ और बडे हुए तो दोनों गाँव से निकल कर शहर की तरफ गये ,शहर में जाकर दोनों नोकरी ढूँढने निकले , ध्रुव जो की शांत स्वभाव का था आसानी से नोकरी मिली, गाँव में माँ को खुशखबरी दी , माँ बहुत खुश हुई आखिर हर माँ को अपने बच्चे की कामयाबी पर गर्व होता है , चेतन जहाँ भी नौकरी के लिए जाता , कटु स्वभाव के कारण कहीं नोकरी नहीं मिली , अंत में वो ध्रुव को कहता है की वो यहाँ से जा रहा है , अब वो और उसके साथ नहीं रह सकता, ध्रुव ने उसे बहुत समझाया की रुक जा , पर चेतन नहीं माना , और शहर की भीड़ में कहीं खो गया , ध्रुव अपनी ज़िन्दगी में नाम कमाने में व्यस्त हो गया , ऑफिस में ध्रुव को सलोनी नाम की एक लड़की पसंद आ गयी , सलोनी बहुत खूबसूरत थी , सलोनी को ध्रुव का मधुर स्वभाव अच्छा लगा वो , वो उससे प्यार करने लगी , और जब एक लड़का लड़की प्यार के बंधन में बंध जाते हैं , सब कुछ अच्छा लगने लगता है , जीवन सकारात्मक सोच से भर जाता है , ज़िन्दगी को मकसद मिल जाता है , सपनो को पूरा करने का हौंसला मिल जाता है , और आपका साथी भी आपको उन सपनो को पूरा करने की पूरी प्रेरणा देता है, ध्रुव की जल्द ही सलोनी से शादी हो गयी , दोनों बहुत खुश थे , एक औरत के आने से जीवन खुशिओं से भर जाता है यकीनन , अब ध्रुव को एकेले खाना नहीं बनाना पड़ता था , सलोनी उसके लिए सुबह शाम खाना बना कर देती थी , और उसके साथ ही ऑफिस जाती थी , जल्द ही उन्होने अपनी कमाई को जोड़ कर एक गाडी खरीद ली , और अगले ही वर्ष सलोनी और ध्रुव के घर एक नन्ही परी आई , सलोनी ने एक बहुत ही प्यारी सी लड़की को जनम दिया , ध्रुव बहुत खुश था , लड़की की देखरेख के लिए गाँव से दादी और माँ भी शहर आ गये , अब आप ही बताईये एक आदमी  जिसे  एक नहीं दो नहीं , जबकि चार चार महिलाओं का प्यार मिले ,तो यकीनन उसकी ज़िन्दगी में खुशिओ की कोई कमी हो ही नहीं सकती .. एक दिन ध्रुव अपनी माँ , दादी , सलोनी और बेटी को ले कर , शोपिंग करने गाडी में ले कर गया ,ध्रुव  एक अच्छा और ईमानदार लड़का , एक अच्छा बेटा, एक अच्छा पति , और एक अच्छा पिता .. वो सब मायने में बेहतर था क्यूंकि वो महिलाओं के साये में पला बड़ा था.. शोपिंग करने के लिए जेसे ही वो सब गाडी से उतरे , सलोनी के हाथ एक झटका सा महसूस हुआ , और देखते ही देखते सलोनी का पर्स गायब हो चुका था , एक भागता हुआ आदमी मुह पे कपडा लपेटे , फटी हुई शर्ट , तेज़ी से सलोनी का पर्स ले कर भागने लगता है , ध्रुव उसका पीछा करता है , और एक दम अचानक से चोर के चेहरे से कपडा उतर जाता है , और जब वो पलट कर देखता है पीछे ध्रुव की तरफ तो , एकाएक दोनों चौंक जाते हैं , वो भागता हुआ चोर और कोई नहीं चेतन ही था .. अच्छी परवरिश ना होने के कारण चेतन का स्वभाव बिगड़ता गया , और कहते हैं ना जिसका आचरण स्वभाब अच्छा है वोही ज़िन्दगी में अच्छाई की राह पर चल सकता है , जो की चेतन को नसीब नहीं हो पाया था , ध्रुव जो की एक  ज़िम्मेदार पति होने का फ़र्ज़ निभाता हुआ भाग रहा था चोर के पीछे , जब उसने देखा की भागता हुआ चोर तो उसके बचपन का दोस्त चेतन है तो उसके कदम धीरे पडने लगे , मानो दोस्ती के प्यार ने उसके कदमो को जकड लिया हो , चेतन पीछे देखता हुआ भागता रहा और कहीं दूर निकल गया , ध्रुव वापिस लौट आया , सलोनी ने पूछा ,” पर्स मिला ?? “  ध्रुव बोला , “ अब शायद  ही वो कभी मिले , चोर को हमसे ज्यादा उसकी ज़रूरत है “
सलोनी ध्रुव के इस जवाव को समझ नहीं पायी ..लेकिन सलोनी ये कभी समझ नहीं सकती की आज जो ध्रुव ने एक चोर को जाने दिया वो विनम्रता उसके ही दिए हुए प्रेम का नतीजा है ,ज़िन्दगी में आपको ध्रुव जेसे लोग भी मिलेंगे और चेतन जेसे भी , अंतर सिर्फ उनकी परवरिश में है , इंसान बुरा नहीं होता उसके हालत उसे बुरा बनने पर विवश करते हैं , और यकीन मानिए ये जो में आपको प्रवचन दिए जा रहा हूँ वो भी मैने एक कोमल हृदय वाली महिला से ही सीखें हैं ,ऐसे लोगो को प्यार चाहिए , प्यार किसी को भी बदल सकता है , जीवन में औरत का योगदान सिर्फ जनम देने तक ही सीमित नहीं , औरत जीवन में प्यार का श्त्रोत है ,वो प्यार एक बहन के रूप में, एक माँ के रूप में ,एक दादी के रूप में , एक पत्नी के रूप में, एक दोस्त के रूप में वो हमे दे सकती है , वोही हमे जीना सीखाती है , उसके बिना ज़िन्दगी में कामयाब होने का ख्वाव देखना भी आपके वश की बात नहीं .. इसीलिए औरतों को सम्मान दीजिये , उनके प्यार को ग्रहन कीजिये और उस प्यार को अपने जीवन में उतारिये , ताकि आपकी ज़िन्दगी ध्रुव जेसी हो , ना की चेतन जेसी ....चलता हूँ फिर मिलेंगे एक नयी कहानी के साथ ,कहानियाँ जो आपको जीना सीखाती हैं , प्यार करना सिखातीं हैं..
आपका अपना कवि
$andy poet    

THE LOVE AGREEMENT

Hi friends, I want a little help from you. I have published a new book titled, "The love agreement" (एक प्रेम-समझौता).I am...

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