Sunday 5 July 2015

ख़ुफ़िया अँधेरी सुरंग


दिलकश रातें अब मुझे याद नहीं करनी..
ये घड़ियाँ अनमोल अब बर्बाद नहीं करनी...
भुलाना है वो तेरी यादो का कहर..
तुझे दिए उन वादों का ज़हर...
तेरी हसी का कोई ज़िक्र ना हो....
दिल को तेरी अब कोई फिक्र ना हो
इल पल की दीवानगी इक पल की मदहोशी
थोडा सा प्यार उम्र की बेहोशी..
आज नैना और राकेश डेट पर गए थे ...नैना वो लड़की जिससे राकेश बेहद्द प्यार करता था .. या है ..या सायद करता रहेगा ....उनकी अक्सर लड़ाई होती रहती थी ..लेकिन आज कुछ भयानक ही लड़ाई हुई उनके बीच . राकेश एक दिल्ली के चावडी बाजार में रहने वाला एक साधारण सा इंसान जिसकी आमदनी उसके खर्चो से कहीं कम है , राकेश रात के दो बजे मेट्रो स्टेशन के बाहर टुन्न पड़ा हुआ सड़क पर .. ज़िन्दगी के सारे गम मानो उसे ही लग गये हो..एक हलकी सी शायरी जो उसका मन गुनगुना रहा था.. दुनिया जहां से अकेला.. ना कोई अपना .. ना बेगाना .. अरे कोई है ??? कोई जानता है इस अधमरे इंसान को ?? पर अफ़सोस इतनी सन्नाटे में भी कोई इसकी बिलखती रूह की पुकार नहीं सुन पा रहा ...
दो बजते हैं तीन बज जाते हैं राकेश वही सड़क पर पड़ा है.. लगता है प्रेमिका छोड़ कर चली गयी... क्या करें इश्क का इन्ज़ाम कुछ ऐसा ही है... जिस चाँद की खूबसूरती को निहार वो अपनी प्रेमिका को चाँद कह कर बुलाता था.. आज वो चाँद भी उसे देख मुश्कुरा रहा है.. केसी बिडम्बना है,
अरे औ भाई कोन हो तुम ,” एक पुलिसकर्मी आता है राकेश को आवाज लगाता है, पर वो तो सड़क पर लेता हुआ भी सुनैना के ख्यालो में मुश्कुरा रहा है... इश्क मियाँ इश्क बड़ी चिपक चीज़ है इश्क..
पुलिसकर्मी राकेश को हॉस्पिटल ले जाता है, रात कट जाती है , अगला दिन बीत जाता है , फिर अगली रात आती है रात 11 बजे राकेश को होश आता है ..खुद की हालत पर पहले पहले तो हैरानी होती है , पर जब यादास्त आती है तो पछतावा और तरस आता है ....
मुझे यहाँ कोन ले कर आया... “ राकेश डॉक्टर से पूछता है.. डॉक्टर बिना उसकी तरफ देखे कड़ी आवाज में कहता है, “पुलिस वाले लाये और कोन तुम साले नशेडी घर पे रह कर नहीं पी सकते .. दिल्ली की सडको को अपनी जायदाद समझ के बेठे हो.. तुम ठीक हो हस्ताक्षर करो और चलते बनो...”
राकेश का दिमाग शांत हो चुका था .. सुनैना की याद थी मगर उस ज़हर का असर कम हो चुका था..
राकेश वापिस घर जाता है.. सुनैना की तस्वीर देखता है और रोता रहता है.. फिर हर दिल्हारे आशिक जेसे उसकी सभी तस्वीरें जला देता है... उसे हल्का महसूस होता है... दो दिन घर पर रहता है... बिस्तर पर सोया रहता है... मोबाइल फ़ोन को लॉक अनलॉक करता रहता है...
अगले दिन ऑफिस जाता है , सब लोग उससे पूछते हैं मियाँ एक हफ्ता हो गया कहाँ थे तुम... राकेश चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है, बॉस की नज़र उस पर पड़ती है , लो जी वोही तमाशा शुरू जो हर कर्मचारी और बॉस का होता है जब बिना बताये आप ऑफिस से कहीं चले जाते है.. ऑफिस का नुक्सान होता है,, पर राकेश टूट चुका था अब और टूटने को कुछ बचा ही नहीं था..बॉस चिल्लाता है पर राकेश तो बुत बन कर खड़ा था...राकेश जाता है ,... कुर्सी पर बेठता है.. और कुछ टाइप करता है...
सर ये मेरा इस्तीफ़ा में यहाँ काम नहीं करना चाहता”राकेश एक चिठ्ठी लिख कर बॉस को देता है ... बॉस चौंक जाता है और बिलकुल बिनम्र स्वभाव में कहता है  ,” लेकिन राकेश ठंडे दिमाग से सोचो भाई अगर परेशान हो कुछ दिन और छुट्टी ले लो बेशक “ पर राकेश किसी की नहीं सुनता.. इंडिया गेट के पास जा कर बैठ जात है.. सोचता है काश वो भी फौज में होता.. कितनी मौज में होता ... सरकारी नौकरी होती ..सुनैना भी तो यही चाहती है .. और उसके पिता भी ऐसा ही लड़का ढूंढ रहे हैं... और क्या होता अगर फौज में गोली भी लग जाती.. सुनैना को मेरे हिस्से की परमवीर चक्र मिलता .. यहाँ ठीक यहाँ .... इंडिया गेट की दीवार पर हाथ लगाते हुये मन ही मन सोचता है ... ठीक यहाँ पर मेरा नाम लिखा जाता... राकेश कुमार...रात हो जाती है जेब में हाथ डालता है पेसे भी नहीं हैं... कहाँ जाऊं??? काश उस समय पिता जी की बात मान ली होती ... की आवारागर्दी छोड़ दी होती और मन लगा कर पढ़ाई की होती तो आज सरकारी नौकरी हाथ में होती....पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत..

राकेश काफी देर तक सोचता है और फिर चलता चलता ना जाने अंधेरे में कहाँ पहुँच जाता है.. वो एक सुरंग में घुसता है, और चलता ही जाता है.. वो हैरान था की वो आखिर कहाँ आ गया .. वो ज़मीनी सुरंग थी .. जिसे राजा महाराजा युद्ध में भागने के लिए प्रयोग करते थे...वो चलता जाता है और चलता जाता है ..उसे कहीं अंत नहीं मिलता ..उसका दम घुटने लगता है , आखिर उसे रौशनी दिखती है और वो उस सुरंग से होता हुआ एक भव्य महल में पहुँच जाता है, जहाँ सब कुछ स्वर्णिम था.. सोने का महल था .. सुन्दर नृतकियां थी... मधुर संगीत था .. एक राज़ दरबार था .. राजा की गद्दी खाली थी ... दरबारियों ने ज्यों ही राकेश को देखा उन्होने उसे महाराज कह कर पुकारा और गद्दी पर विराजमान होने को कहा ... सुन्दर दासियाँ राकेश के लिए भोजन ले कर आई ... जिसमे बहुत कुछ व्यंजन थे.... वो दासी को पास बुलाता है.. उसके चेहरे से कपडा हटाता है तो सुनैना को सामने पाता है.... सुनैना एक दम खुश थी अचानक से उसे क्रोध आता है और राकेश को चांटा मारती है... राकेश को होश आता है... और देखता है की ये सब एक सपना था.. वो शराब पीना ..ऑफिस से इस्तीफ़ा .. राजा के महल में जाना सब कुछ... राकेश देखता है की आज तो वोही दिन है जब उसकी नैना के साथ डेट है.. और खुश होता है की ये सब महज़ एक सपना था.. सपने ने उसे आगाह कर दिया की नैना उसे बेशक छोड़ कर जायेगी अगर वो उसे भविष्य की सुरक्षा प्रदान करने का आश्वाशन नहीं दे पाता... उसे मेहनत करनी होगी जिससे वो अपने बुरे सपनो को सच में  बदलने से रोके और अच्छे सपनो को पूरा कर खुद को और सुनैना को पूरी ज़िन्दगी खुश रख सके.... में नहीं जानता उनकी डेट केसी जाएगी ये तो आप सभी राकेश भाइयों पर निर्भर करता है ... की इस सपने की शुरुआत को जीना चाहेंगे या अंत को... चलता हूँ आशा है आप भी अँधेरी सुरंग से बाहर ज़रूर निकलेंगे और सीधे राजा के महल में ही जाएंगे ... जहाँ बेशुमार खजाना होगा...ज़ल्द मिलूँगा एक नयी कहानी के साथ .
आपका अपना कवि

$andy poet

No comments:

Post a Comment

THE LOVE AGREEMENT

Hi friends, I want a little help from you. I have published a new book titled, "The love agreement" (एक प्रेम-समझौता).I am...

Popular Posts