मैं उस लड़की का पीछा कर रहा था , और वो जानती थी की मैं उसका पीछा कर
रहा हूँ..मैं जितना तेज़ चलता वो भी उतनी ही तेज़ी से भागने लगती.. उसके हाथ मे एक
काला बैग था, मेरी नज़रें उसी बैग पर थी.. वो अंत तक पीछे मुड मुड कर देखती रही और
फिर अचानक अंधेरे मे कहीं गायब हो गयी.. रात के करीब 1 बज रहा था , गलियाँ सुनसान
पड़ी थी .. और दिसम्बर की कडाके की ठण्ड थी.. मैं अपने रात के कुर्ते पजामे मे था,
पेरों मे चप्पल थी, और एक स्वेटर पहना हुआ था, सर पर एक काली बन्दर टोपी थी हाथो
में एक टोर्च थी , और मुह से सिगार जेसा धुंआ निकल रहा था, मैं जिसका पीछा कर रहा
था वो लड़की लगभग 23 साल की उम्र की थी हाथो मे ऊनी दस्ताने थे, काली जीन्स थी एक सफेद
स्वेटर था और गले मे मफलर था, चेहरे से बेहद खूबसूरत थी , लाल गुलाबी गाल थे , लेह
लदाख से आये लोगो में से आई लगती थी..
मैं घर से काफी दूर आ चुका था लगभग 1 किलोमीटर आगे , दिन के समय ये
जगह इतनी खचाखच भरी रहती है , वहीँ रात में किसी का नामोनिशान नहीं था.. टोर्च की
लाइट के इलावा कुछ घरों का बाहरी बल्ब जल रहा था.. धुंध भी काफी थी और इसी धुंध और
अँधेरे का फायदा उठा कर वो लड़की रफूचक्कर हो गयी..
मैं घर की तरफ वापिस मुड चला , अभी कुछ ही दूर गया था पीछे से आवाज आई
,” श.. श.. श... सुनो ???”
मैं चौंक गया एक हक्लाती हुई आवाज में बोला ,” कोन हो तुम सामने आओं ??”
अचानक एक झरोखे के पीछे से वही लड़की बाहर निकली और इतनी मीठी आवाज़ में
बोली ,” मुझे माफ़ कर दो , चोरी नहीं की है मैने” मैं एक दम उत्साहित हो कर बोला ,”
लेकिन मैने तुम्हे खुद अपनी आँखों से मेरे घर से छुपते हुये बाहर निकलते देखा है,
बताओ क्या चुरा कर भाग रही हो?? तभी मैं तुम्हारा पीछा कर रहा था..
वो लड़की अपने हाथ मे पकडे बैग
को खोल कर दिखाती है उसमे ढेर सारे हज़ार
और पांच सो के नोट थे, लगभग 20-30 लाख की रकम थी उस बैग में, मैं इतने रूपये देख
कर डर गया, मैने शायद ही पहले कभी इतने रूपये देखे थे, मुझे यकीन था की ये चोरी
मेरे घर से तो नहीं हुई, क्यूंकि मेरे घर में शायद ही हज़ार रूपये से ज्यादा उसे
कुछ मिल पाता , पर मैं इच्छुक था ये जानने के लिए की वो लड़की इतनी रात में इतना
पैसा कहाँ ले जा रही थी , मेरे घर में क्यूँ आई थी और कहाँ से मिले या चुराए इसने
इतने पेसे..??
मैने बड़ी उत्सुकता से पुछा ,” इतनी पेसे कहाँ से चुराए तुमने सच सच
बताओ नहीं तो पुलिस को बुलाता हूँ मै “
वो धीमी से नज़रें झुकाते हुये बोली ,” ये पेसे मेरे हैं , मैने किसी
से नहीं चुराए आप मेरा यकीन कीजिये , मैं चोर नहीं हूँ”
मैने उससे फिर सवाल किया ,” तो तो मेरे घर पर क्या करने आई थी ?? बताओ
?? और मुझे रोक कर ये सब पेसे मुझे क्यूँ दिखा रही हो ???
लड़की मासूम थी वो बोली ,” ये पेसे मैने कमा कर इकठे किये हैं, और मैं
आपके घर इन्हे छुपाने जा रही थी बस..मेरा यकीन कीजिये..
मैं उसकी बात समझ नहीं पाया मैने पुछा ,” मेरे घर में , मगर क्यूँ ??
मेरा घर ही क्यूँ , क्या मेरे घर मे हाई सिक्यूरिटी मिलती है पैसों को?? लड़की
बोली,” क्यूंकि मेरे पैसों के पीछे कुछ लोग पडे थे और मुझे आपके घर के गेट पर चड़ना
आसान लगा तो मैं वहां घुस गयी , जेसे ही वो लोग वहां से चले गये मैं आपके घर से
जाने वाली थी .. सच बोल रही हूँ मैं ...और मैं ये सब कुछ आपको इसीलिए बता रही हूँ
क्यूंकि मै इस वक़्त अकेली हूँ, अनजान शहर है , अँधेरा है , शर्दी है , और ये पेसे
जिनके पीछे कुछ लोग हैं, मुझे आपकी मदद चाहिए, मुझे आज की रात अपने घर मे रहने
दीजिये , सुबह होते ही चली जाउंगी, इंसानियत के नाते, ..
मैं उसकी बातें सुन कर और ज्यादा घबरा गया मैं बोला ,” मगर मैं तुम्हे
अपने घर मे नहीं रख सकता , मेरे पास एक ही कमरा है , घर पे एक मैं ही हूँ, और कोई
नहीं हैं ,किराए का मकान है, किरायेदार ने देख लिया तो पूरे मुहल्ले मे लोग गलत
अफवाहें फैलाएंगे , मुझे माफ़ करना . तुम चली जाओ कहीं भी जाओ , पर में तुम्हे अपने
घर मे नहीं आने दे सकता,ऊपर से ये पेसे का झंझट है , क्या मालुम ये तुम्हारे हैं
या चोरी के, बहुत बहुत शुक्रिया मुझ पर विश्वाश करने के लिए मगर मुझे तुम पर जरा
भी भरोषा नहीं है”
मैं घर की तरफ वापिस चलने लगा और जब पीछे मुड कर देखा वो लड़की भी पीछे
पीछे चल रही थी..
मैने उसे भाग जाने को इशारा किया,” चली जाओ मेरा पीछा मत करो ...भागो
यहाँ से ...”
वो लड़की पीछे पीछे चलती रही , मैने टोर्च की रौशनी उसके चेहरे पर मारी
की वो भाग जाए , मगर वो धीरे धीरे चलती रही..
मैं घर पहुँच गया मेन गेट को धीरे से खोला और बंद कर दिया ,” वो लड़की
बाहर खड़ी रही मैने बाहर झाँक कर देखा तो ज़मीन पर बेठी थी गेट के सहारे , और बैग
गोद मे रखा था और आँखों में आंशू थे , मुझे तरस आ गया ..
मैने धीरे से मेन गेट खोला और उसे कहा की अन्दर आ जाए.. वो धीरे से
अन्दर आ गयी, मैं उसे अपनी गरीबो की
झोंपड़ी में ले गया, मैने दरवाज़ा बंद किया और टोर्च बंद की , कमरे की बत्ती जलाई ,
और चेहरे से बन्दर टोपी उतारी ,मैने उसे कुर्सी पर बेठने को कहा
वो अभी भी रो रही थी , मैने उससे कहा ,” क्या नाम है तुम्हारा ?? वो
नाक पोंझते हुये बोली,” जिन्घुआ” मैने चौंकते हुये पुछा ,” क्या झिन्गूरा?? “ वो
थोडे ऊंचे स्वर में बोली ,” जिन्गुआ ... “ इसका मतलब क्या होता है ??” वो बोली ,”
लीक फ्लावर्स “ मुझे ज्यादा अंग्रेजी तो आती नहीं थी मैने आगे चुप रहना ही ठीक
समझा.. मैने हीटर चला दिया ताकि ठिठुरे हुये हाथ कुछ गर्माहट पा सकें.. उसने भी दस्ताने
निकाले और बैग बगल में रख कर हाथ सेकने लगी..
मैने पुछा ,” जिन्गुरा तुम आई कहाँ से हो ?? बो बोली ,” लदाख से “
यहाँ केसे पहुँच गयी ?? ,” मैने पुछा वो नाक पोंझते हुये बोली ,” यहाँ मैं लदाख मै
रहने वाले रेफुज़ी के झुण्ड के साथ आई हूँ , वो लोग हर साल ठण्ड पडने पर नीचे कम
ठंडे इलाको में चले आते हैं, मैं वहां अपनी माँ के साथ रहती थी पिछले 23 साल से ,
पिछले ही साल वो चल बसी तो मैने हमेशा के लिए यहाँ आने के बारे में सोचा , ये पेसे
हमारी ज़मीन के हैं जिसे मैने एक स्कूल के लिए बेचा है,मेरे घर की जगह अब वहां एक
स्कूल बनेगा..
मुझे कुछ कुछ उसकी बातों पर यकीन सा होने लगा था.. मैने उसे गौर से
देखा वो हीटर से हाथ ऐसे सेंक रही थी मानो पूरी ज़िन्दगी मे पहली बार उसने हीटर
देखा हो या ऐसी गर्माहट का एहसास पाया हो, उसने मफलर उतारा और उसे भी सेंकने लगी..
वो सचमुच बहुत नाज़ुक सी और भोली भाली थी , उसके चेहरे से डर जा चुका था , वो खुद
को बेहतर महसूस कर रही थी .. उसकी आँखें ऐसे थी मानो उनमे हज़ारो राज़ कैद हों.. वो
बेहद खूबसूरत थी मानो स्वर्ग सी उतरी परी जेसे, अकेले सुनसान ज़िन्दगी मे कोई अनजान
का मिलना बहुत सुकून देता है...
क्या देख रहे हो तुम ?? वो बोली मुझसे, मैने कहा ,” कुछ नहीं तुम्हे
पढने की कोशिश कर रहा था “
आदत से लाचार खाने के लिए पूछे बिना मुझसे रहा नहीं गया ,” क्या खाओगी
?? भूख लगी है तुमको ???
वो फिर से नाक पोझती हुई बोली ,” कुछ भी खा लुंगी , बहुत भूख लगी है
..
मैने उसकी लाल नाक की तरफ इशारा करते हुये कहा ,” लगता है जुखाम हो
गया है तुम्हे , सूप पिओगी ?? और खाने में कल का बचा हुआ आलू मटर चावल है ,
खाओगी?? , उसने मुस्कुराते हुये खुशी से कहा ,” हाँ दे दो खा लुंगी , सूप तुम अभी
बनाओगे क्या ?? मैने फ्रिज से खाना निकाला और उसे गरम करते हुये उससे कहा ,” हाँ
हाँ तुम्हे जुकाम है तो सूप से तुम्हे आराम मिलेगा अभी बना दूंगा...
खाने की प्लेट जब मैने उसे दी तो उसने गरमा गरम खाने से निकलते भाप की
और देखा , उसकी आँखों मे एक अजीब सी ख़ुशी देखी मैने.. उसने खाना खाना शुरू किया और
बडे चाव से खाने लगी , मैं सूप बनाने रसोई में चला गया , देर रात ढाई बज चुके थे ,
और एक नाज़ुक सी बेहद खूबसूरत तितली जेसी लदाख से आई बिन बुलाई मेहमान मेरे कमरे
में बेठी रात का वासी खाना खा रही है , मै उसके लिए सूप बना रहा हूँ और उबलते सूप
की गुड गुड की आवाज से एक गर्माहट का एहसास हो रहा है, क्या हो रहा था कुछ मालुम
नहीं ,हस्सी आ रही थी और कुछ डर भी था और दुःख भी था , और उत्सुकता भी..
“जिन्घुआ सूप तैयार है, ये लो गटक जाओ “ उसने सूप की तरफ देखा और
चमच्च से उसे हिलाने लगी ,
ये वेज सूप है क्या?? उसने पुछा .. मैने कहा ,” हाँ , क्यूँ तुम नॉन
वेज खाती हो क्या ??” उसने कहा ,” नहीं मै
खाती हूँ मगर वेज सूप मुझे बहुत अच्छा लगता है, वो पी रही थी मैने उसके
पहला घूँट लेते ही उसके चेहरे के हाव भाव से पता लगा लिया की उसे वेज सूप अच्छा
नहीं लगता” मैने उससे कहा ,” अगर नहीं पसंद तो ज़बरदस्ती नहीं है , मैं नॉन वेज ले
आता हूँ तुम्हारे लिए ?? वो झूठी तारीफ़ करते हुये बोली ,” नहीं नहीं ये सूप बहुत
अच्छा है , मैं पूरा पी जाउंगी देखना , उसने फटाफट सारा सूप खत्म कर दिया और बाउल
नीचे रखते हुये बोली ,” इतनी रात को नॉन वेज सूप कहा से लाओगे तुम “ और फिर हसने
लग गयी.. वो बेहद खुश थी , और अपने घर जेसा सुरक्षित महसूस कर रही थी..
मैने पुछा ,” कुछ और खाओगी ??”
उसने मुश्कुराते हुये कहा ,” आपका बहुत बहुत शुक्रिया आप बहुत नेक दिल
इंसान है , आपका ये एहसान कभी नहीं भुला पाउंगी मैं “
मैने कहा ,” किस्मत मे जो लिखा हो उसे कोन टाल सकता है , आपका यहाँ
आना पहले से ही सुनिश्चित था..”
उसने मुझसे पुछा ,” आपका नाम नहीं बताया आपने ??”
मैने कहा ,” जी मेरा नाम कवि है, और मैं पेशे से भी कवि ही हूँ, एक
लेखक जो दूसरों के जीवन से प्रेरणा लेता है और उस प्रेरणा को तोड़ मरोड़ कर मसाला
लगा कर सूप बना कर आप जेसे नेक दिल लोगो के लिए पेश करते हैं..
वो हस पड़ती है और कहती है ,” तुम जानते हो तुम्हारे कुरता पाजामा पर
बने कार्टून देख कर ही मैने तुम पर विश्वाश किया था , क्यूंकि एक नेक दिल इंसान ही
ऐसे कपडे पहन सकता है , जिसमे बचपना हो ,मुझे भी सुपर मेन , बैटमैन की कहानिया
बहुत अच्छी लगती हैं..
मुझे पहली बार अपने पाजामा पर बने कार्टून देख कर हस्सी आई पहले मैने
कभी इस बात पर गौर ही नहीं किया था , मेरा बचपन अभी भी मेरे साथ था इस 23 साल की
उम्र मै भी..
मेरे पास और भी बहुत सारी चीज़ें हैं जिन्हें मैं बचपन से इकठा करता
आया हूँ , देखोगी???
उसने बड़ी ही ख़ुशी और उत्सुकता ज़ाहिर की ,” हाँ दिखाओ ना..
“ ये देखो मेरे पास लगभग 10 हज़ार से ज्यादा कॉमिक बुक्स हैं.. और ये
देखो मेरा खजाना..
मैने बिस्तर के नीचे से एक बड़ा बक्शा निकाला जो पूरा का पूरा छोटे
छोटे खिलोनो से भरा हुआ था..”
जिससे देखते ही वो आपे से बाहर हो गयी और उसमे से अपना मनपसंद खिलौना
तलाशने लगी.. उसे पसंद आया मेरा दूसरी क्लास का एक सुपरमेन का खिलौना जिसमे एक बटन
लगा था जिसे दबाते ही उसकी आँखों से लेज़र निकलती थी , मैं कई बार उसके सेल बदल
चुका था..
“ अरे वाह ये तो काम करता है , तुमने सच में इन खिलोनो को इकठा करने
में बहुत मेहनत की है कवि” वो लगभग दो घंटे तक उस बक्से मे चीज़ें देखती रही, और
मैं उसे हर खिलोने के इतिहास के बारे मैं
बता रहा था , और इसे केसे चलाया जाता है , “ वो एक खिलौना लेती तो दूसरा निकाल
लेती ,” इसे केसे चलाते हैं कवि ?? ये कहाँ से खरीदा?? हम दोनों एक जेसे ही थे, एक
अनजान लड़की और एक अनजान लड़का घनघोर रात,
ठंडी का मौसम , और देखो ना खिलोनो से खेलने में मगन हैं...
और कुछ दिखाओ ना,” वो बोली ..
मैने उसे लूडो चेस , जेसी तमाम बोर्ड गेम्स दिखाई.. हमने एक घंटा सांप
सीडी खेली, इससे पहले ये खेल इतना मजेदार नहीं लगा था कभी .. हीटर की गर्मी से
पूरा कमरा गरम हो चुका था.. सुबह के चार बजने वाले थे ..
हम बिस्तर पर थे, एक ही कम्बल था, और देखते ही देखते हमे नींद आ गयी..सुबह
हुई झिन्गुरा वही थी.. उसका नाम बड़ा अजीब था जिन्गुआ. वो बिस्तर के दूसरी तरफ मेरी
टांगों पर सर रख कर सोयी थी.. मेरे टांग का खून जम चुका था उसका सर काफी भारी था..
पर अगर मैं टांग हिलाता तो उसकी नींद खुल जाती.. घडी देखते ही मैं दंग रह गया ,
सुबह के ग्यारह बज रहे थे , मेरे ऑफिस जाने का टाइम बीत चुका था, फ़ोन में 10 मिस
कॉल्स थी.. मैने धीरे से उसे आवाज लगाईं ,” जिन्गुआ.. जिन्गुरा पर वो टस से मस नहीं हुई.. मैने धीरे से एक तकिया अपनी
टांग को हटा कर लगा दिया ताकि वो आराम से सो सके, उसे कम्बल से ढक कर मै ब्रश करने
चला गया..
नहा धो कर मैं कमरे मे गया, जिन्गुआ अभी भी सो रही थी , बिलकुल
स्नोवाइट जेसे, मैं ऑफिस के लिए पहले ही लेट हो चुका था.. तो सोचा आज का दिन नयी
मेहमान के साथ ही बिताया जाए,मैं खाना बनाने रसोई मे चला गया,सोचा आज जिन्गुआ के
लिए कुछ नॉन वेज बनाया जाए , मैने फ्रिज से चार पांच अंडे निकाले और उसका आमलेट
बनाने की सोची.. जिन्गुआ अंडे की तेज़ महक से जाग चुकी थी.. रसोई मे फ्राईपेन पर
पकते अंडे की आवाज बड़ी ही लुभावनी थी, जिससे आकर्षित हो कर जिन्गुआ आँखें मलते
मलते रसोई मे आ गयी
उसने मुझसे पुछा ,” अरे वाह सुबह सुबह खाना बनाने लग गये आप?? “ मैने
उसे घडी की तरफ इशारा करते हुये कहा ,” जिन्गुरा जी घडी देखिये 12 बज गये हैं सुबह
के, आज ऑफिस भी नहीं जा पाया”
जिन्गुआ चौंक पड़ी और कहने लगी अब उसे चलना चाहिए ,” मुझे माफ़ कर
दीजिये मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफ हुई, मैं
चली जाती हूँ अब आपका बहुत बहुत धन्यबाद,” और वो अपना सामान समेटने लगी..
मैने उसे बडे प्यार से कहा ,” अरे जिन्गुआ जी आप तो बुरा मान गयी, पर
आप अभी नहीं जा सकती..
वो चौंक कर बोली ,” नहीं मैं अब चली जाउंगी, अब और बोझ नहीं बनना
चाहती आप पर “
मैने उसे समझाते हुये कहा,” देखिये जिन्गुआ जी अभी दिन हो चुका है ,
बाहर पूरी दुनिया घूम रही है , मेरे साथ ही कम से कम 7-8 कमरे लगते हैं , जहाँ लोग
ये देखने को बेताब हैं की जो दरवाजा हर रोज़ खुला रहता था आज बंद क्यूँ है ?? नीचे
मकान मालिक का घर है , वो ये सोच कर बाल नोच रहा होगा की आज मैं ऑफिस क्यूँ नहीं
गया , कहीं मैने नोकरी तो नहीं छोड दी, उसे अपने किराए की चिंता सता रही होगी , और
अगर ऐसी परिश्थिति में अगर आप बाहर जाएंगी, निसंदेह आप मेरी यहाँ से छुट्टी
करवाएंगी..
ज़िन्गुआ की आँखें मेरे कमरे मे रखे खिलोनो पर ही थी.. वो सच मुच बच्ची
थी.. हमने आमलेट खाया .. उसे वो बहुत पसंद आया..
जिन्गुआ बड़ी ख़ुशी में बोली ,” बहुत ही अच्छा है कवि..ऐसा आमलेट कभी
नहीं खाया मैने.. थैंक यू कवि , अगर तुम ना होते तो मेरा क्या होता”..
मैने उसे मुश्कुराते हुये कहा ,” एक मेहमान की सेवा करना हम सभी का
धर्म है.. “
वो बोली ,” तो अब मैं यहाँ से
कब जाउंगी..”
मैने कहा ,” जब तुम्हारा जी चाहे.. पर दिन को नहीं रात के 1 बजे के
बाद ही जा पायेंगे , जब सब सो चुके होते हैं...
तभी मैने दरवाजे पर खटखट की आवाज सुनी , मैं बेहद डर गया था , अगर इसे
यहाँ किसी ने देख लिया मुझ पर स्यामत आ जाएगी..
मैने उसे बाथरूम में छुपने को कहा.. मैने दरवाजा थोडा सा खोला , सर
बाहर निकाल कर देखा तो पड़ोसन की लड़की चारु थी ...
वो बोली ,” क्यूँ कवि जी आज तबियत ठीक नहीं क्या?? ऑफिस नहीं गये आज
???
वो अक्सर मुझे बे मतलब तंग करती रहती है , उससे मेरी फिकर खुद से
ज्यादा रहती है..”
मैने बोला ,” जी नहीं आज मेरा पेट खराब है.. सुबह से 10 बार जा चुका
हूँ..”
उसने गन्दा से मुह बनाया और भाग गयी वहां से..
मैने कुंडी लगाईं ही थी की अचानक फिर से वहां दरवाजा खटकाया उसने..
मैने बाहर सर निकाला और पुछा ,” अब क्या है ??
वो मेरे कान के पास आकर
बोली,”बेशरम इंसान शर्म तो नहीं आती तुझे,
मुझे मालुम है,कल रात तू किसी लड़की को लाया है अपने घर.. मैने देख लिया था मैं सोई
नहीं थी तब , तेरा ही इंतज़ार कर रही थी..रुक अभी बताती हूँ सबको..
मेरी तो फट चुकी थी, ना जाने उस कमीनी को केसे पता चल गया..उसने
दरवाजे को धक्का मारा और अन्दर घुस गयी मैने फटाफट कुंडी लगाईं
चारु इधर उधर उसे ढूँढने लगी ,उसने उस का पर्स देख लिया ..
उसे खोलते ही उसमे से लड़कियों के अंदरूनी अंग वस्त्र निकले.. मैने
सोचा अब तो मै पक्का गया.. और सीधा बाथरूम में घुस गयी.. और चिलाने ही वाली थी उसे
देख कर मगर मैने उसके मुह में वो अंग वस्त्र ढूंस दिया और हाथ से उसका मुह ढक
लिया...
उसे मैने बिठा कर पूरी बात समझाई पर अभी भी उसे पूरा शक था मुझपे..
मैने चारु को समझाया ,” चारु देख चारु चाहे तू इससे पूछ ले ,..
जिन्गुआ ने कुछ नहीं कहा उसने अपने पर्स से तीन हज़ार के नोट लिए और चारु को दे
दिए.. “ ज़िन्गुआ ने कहा किसी को मत बताना और पेसे चाहिए तो बोलो “
चारु जो शोपिंग की दीवानी थी , हाथ मे इतनी पेसे देख उसके मुह से लार
टपक गयी..
चारु ने कहा ,” चलो ठीक है मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी, प्रॉमिस..
उड़ा ले मजे कवि पर हाँ एक दिन से काम नहीं चलेगा .. जितने दिन रहेगी उतने दिन पेसे
लूंगी हाँ ..
जिन्गुआ ने कहा ,” तुम और पेसे ले लेना मुझसे..
मुझे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था.. कवि का खाली खाली सा घर आज
दो लडकियों की किलकारियों से गूंझ रहा था.. हम तीनो दोस्त बन चुके थे..एक तो पहले
ही थी मगर दिमाग् खा जाती है सच में
हम अपने अतीत की बातें शेयर करने लगे..
ज़िन्गुआ ने अपनी कहानी सुनाई, फिर चारु के हज़ार बॉय फ्रेंड्स की
रोमांस की कहानिया..
चारु पिछले कल की कहानी सुना रही थी केसे उसके बॉय फ्रेंड ने उसे
तोहफा देकर प्रोपोसे किया
“ तुम्हे पता है , ज़िन्गुआ कवि और मैं कल शोपिंग मॉल पर गये थे, मेरा
बॉय फ्रेंड अर्श जो बेहद्द ही रोमांटिक है उसने मुझे भरी भीड़ में अंगूठी दी ये
देखो..
जिन्गुआ ने अंगूठी देखी और मुश्कुरा कर कहा ,” बहुत अच्छी है , प्यारी
भी...काश मेरा भी कोई बॉयफ्रेंड होता ..
एक दम से चारु बीच में बोल पड़ी ,”अरे यार कवि वो जो तुमने कल नया
आदमखोर सा भालू वाला सॉफ्ट टॉय जीता था,
मुकाबले मै वो कहाँ है?? जानती हो जिन्गुआ कल एक मुकाबला चल रहा था मॉल में , सबसे
ज्यादा मिर्ची खाने वाले को ये भालू मिलना था.. इसने इतनी मिर्ची खाई की आखिर वो
इसे मिल ही गया...खिलोनो का दीवाना है ये .. जान से भी ज्यादा प्यारे हैं इसे ये
खिलोने..कल इतनी मिर्च खायी इसने और वहां पुलिस भी आ गयी.. उन्हे लगा की ये बंदा
सुसाइड ना कर ले कही हहहाहा..
मैने चारु को चिड़ाते हुये कहा,” वो पुलिस मेरी वजह से नहीं आई थी.. वो
तेरे उस सिरफिरे पागल आशिक की वजह से आई थी कमीनी. भरी भीड़ में भला ऐसे कोई किसी
को प्रोपोस करता है ,भला..
जिन्गुआ बोली ,” हाँ कवि ये क्या तुमने मुझे तो वो खिलौना दिखाया नहीं
रात को..
चारु हस्ती हुई बोली,” क्या पूरी रात तुम क्या खिलोनो से खेल रहे थे
क्या.. जेसा कवि वेसी कवि की दोस्त..
मैने वो खिलौना बड़ा छुपा कर रखा था..अपने पलंग के ठीक पीछे एक छोटी सी
अलमारी में ..मुझे कुछ खिलोने बहुत प्यारे थे.. थक हार कर मुझे दिखाना ही पड़ा..
मैने एक मिनट के लिए दिखाया ,” ये लो देख लिया चलो अब रख रहा हूँ
वापिस ..”
दोनों हसने लगी..
चारु ने ताना कसते हुये कहा ,” नयी दोस्त को खाना तो खिलाओ 3 बज चुके
है मेरी माँ मेरा इंतज़ार कर रही होगी..कल आउंगी बहुत अच्छे ऑफर चल रहे हैं ऑनलाइन
शौपिंग पर.. पूरे पेसे उड़ा दूंगी आज ही.. कभी कभी 5 रूपये वाले कुर्ते भी मिलते है
, ऑफर में
मैने भगवान् का शुक्रिया अदा किया ,”अच्छा हुआ बिमारी चली गयी.. अब
ज़िन्गुआ नहाना चाहती थी 3 बजे सुबह से
वक़्त ही नहीं मिला .. कई दिनों से उसने वही पुराने कपडे पहने हुये थे..
मैने जिन्गुआ से कहा ,” तुम नहाने जाओ मैं कपड़ो का बंदोबस्त करता
हूँ..
मैने चारु को फ़ोन लगाया ,” सुन अपने एक कपडे का सेट ले आ मैं उसके
बदले मे तुझे कल घुमाने ले जाऊँगा बोल शर्त मंज़ूर “
मुझे पता था वो ना नहीं कहेगी, वो कपडे ले आई .. पर इस बार मैने उसे
अन्दर नहीं घुसने दिया ..
जिन्गुआ टावल में थी .. इतनी खुशबूदार थी.. बाल भीगे हुये.. मैने
ज़ज्बातो पर काबू किया.. और उसे कपडे दे दिए .. वो अन्दर चली गयी.. कपडे पहन कर
बाहर आई.. और बेहद की खूबसूरती ने मेरे दिल मै गोली सी चला दी हो मानो..
वो हेयर ड्रायर से बाल सुखाने लगी.. उसने कहा,” कवि बाल पकड़ोगे मैं
सुखाती हूँ..मुझे थोड़ी शर्म आई पर मैने उसकी बात मान ली.. लडकियां जेसे कहें कवि
मान लेता है,.. हमने रात का खाना बनाना शुरू किया.. उसने मुझे अपने वहां का थुकपा
बनाना सिखाया..
ज़िन्गुआ बोली,” कवि तुम लाज्वाव हो मालुम है तुम्हे .. और तुम्हारे
चेहरे पे ये हल्दी और भी अच्छी लगती है, उसने अपने हाथो से मेरा चेहरा साफ़ किया..
बहुत ही नाज़ुक था स्पर्श उसका एक बच्चे जेसा.चारु की सलवार कमीज़ मे उसे देख मुझे
चारु याद आ रही थी मगर चेहरा परी का था ..चुड़ैल का नहीं ...
शाम को हमने खाना खाया और फिर मूवी चला कर सोफे पर बैठ गये, कमरा
अँधेरा था.. बाहर भी अँधेरा हो चुका था.. ठण्ड भी बढ़ चुकी थी.. कम्बल फिर से एक था..
सोफा बड़ा नेक था.. मूवी में अचानक किसिंग सीन आ गया, मुझे लगा जिन्गुआ ज़रूर मुह
फेर लेगी मगर मैने उसकी तरफ देखा तो, वो मेरे कंधे पर सर रखे सो चुकी थी.. मैने
उसे सोने दिया.. मूवी चलती रही.. सीन चलता रहा . और ज़िन्गुआ सोती रही.. रात हो
चुकी थी.. और मैने उसे बेड पर उठा कर सुला दिया.. और खुद भी सो गया.. 9 बज चुके थे
रात के .. कल तो ऑफिस भी जाना था आज भी छुट्टी मार चुका था.. मैने दीवार की तरफ
मुह किया, मैं नहीं चाहता था की वो यहाँ से जाए मुझे उससे प्यार हो रहा था ..पर
मैने उसे आवाज लगा कर पूछ ही लिया.. सुबह जाना है क्या ??
उसने नींद मे ही कहा ,” 3 बजे का अलार्म लगा लो.. सुबह स्टेशन छोड़
देना मुझे..”
मैने तीन बजे का अलार्म लगाया और सो गया..घडी में अभी शायद 9:30 हुये
थे रात के और देखते ही देखते नींद आ गयी...
कहानी अब नया मोड़ लेती है, नरेटर बदल चुका है.. अब कवि सो चुका था ,
और कहानी की मुख्य भूमिका ज़िन्गुआ निभा रही है, अब वो आगे का मजेदार हिस्सा अपने
नज़रिए से सुनाएगी ..कवि चुका था, उसके शरीर की गर्मी से सारा कम्बल गरम था, शर्दी
के मौसम मे भी गर्मी का एहसास था,, मै जिस काम के लिए आई थी यहाँ वो अभी पूरा नहीं
हुआ था.. मैं ज़िन्गुआ .मैं दरअसल लेह से आई कोई गरीब लड़की नहीं थी जिसकी माँ मर
चुकी थी और घर को बेच कर पेसे इकठे किये हो.. मै चिन्ग्लास्तून गेंग की एक सदस्य
हूँ.. जो भारत आया हुआ था पिछले कुछ महीने से एक नायाब हीरे की खोज में, ये हीरा
40 करोड़ का था.. और हमारा मकसद था इसे चुरा कर अपने देश ले जाना..यम्जिन जो की
चिन्ग्लास्तून गेंग के मुखिया का दाहिना हाथ था.. मै उसके लिए ही काम करती हूँ..
ये हीरा हम तीन दिन पहले चुरा चुके थे , हमारी गेंग के एक सदस्य के धोखे की वजह से
ये हमसे छीन गया था.. मुझे खबर मिली थी की ये हीरा वो एक खिलोने भालू के अन्दर
छुपा कर विदेश में भेजने वाला था.. शोपिंग मॉल का जो किस्सा चारु ने सुनाया वो
मेरे नजरिये से ऐसा था की , हमारे गेंग ने उस धोखेबाज को पकड़ लिया था .. और उसका
खेल खत्म कर हम भालू तक पहुँचने ही वाले थे मगर पुलिस के आने से हमे ये थोडे से
पेसे ही नसीब हो पाए जो मेरे हाथ में थे उस रात.. भालू किस्मत से कवि को मिल गया
मुकावले में , मैंने कवि का पीछा किया और उसके घर तक पहुंची.. मेरे गेंग वालो का
इरादा था की उसे मार कर हम वो भालू और हीरा उससे ले लेंगे, पर मुझे कवि को पहली नज़र
में देखते ही एक प्यार का एहसास हुआ, हज़ारो खून करने वाली ज़िन्गुआ आज कवि को देख
ठंडी पड़ चुकी थी , मैने अपनी गेंग से वादा
किया की दो दिन के भीतर में उन्हें हीरा वापिस ला कर दूंगी..उन्होने मुझे दो दिन
का वक़्त दिया..में रात को कवि के घर घुस कर उस नाटक के लिए तैयार थी जो मैने सोचा
हुआ था.. कवि को मैने झूठी कहानी सुना कर उसके ज़ज्बातो से खेली मै , मुझे मालुम था
वो एक अच्छा इंसान है, ये सारा नाटक था .. पर कवि की जान बचाने का यही तरीका था..
मैने उसके सारे खिलोने देखे मगर मुझे वो नहीं मिला जिसे मैं ढूँढने आई थी .. आज
दोपहर चारु की मदद से उस खिलोने का ठिकाना पता चला.. अब बस वो हीरा ठीक मेरे नीचे
पड़ा था जहाँ मै सोई हुई थी .. मैने देखा वो सो चुका था..मैने घडी का अलार्म बंद
किया जो कवि सोने से पहले लगा चुका था.. मैने बिस्तर के नीचे से खिलौना निकाला और हीरा वहीँ था, अपने पर्स में हीरा डाल कर मुझे लगा की मैने सब कुछ
पा लिया मगर अभी एक चाह जो मुझे यहाँ खींच लाइ थी वो अधूरी थी...कवि ..उसे मैं कुछ
तोहफा दे कर जाना चाहती थी.. और उससे कुछ लेना चाहती थी.. मेरी हवस का पारा चढ़
चुका था.. मुझे बस कवि का स्पर्श चाहिए था.. जो मैने उसे पिछली रात भी लेना चाहा..
सुबह नहाते हुये भी लेना चाहा, बाल सुखाते हुये , चेस खेलते हुये , हाथ सेकते हुये
, सोफे पर भी लेना चाहा, रसोई में भी .. मगर हर बार नाकामयाब रही.. वो कुछ ज्यादा
ही सीधा था.. ये आखिरी मौका था कुछ घंटे बाकी थे.. और मुझे कवि से वो स्पर्श लेना
ही था वैसे भी कल की सुबह उसका ये चेहरा
मुझे दुबारा देखने को नहीं मिलने वाला था.. वो रात ही हम दोनों के बीच थी.. जेसे
उसने मुझे प्यार दिया शायद ही कभी मुझे ऐसा प्यार मिल पाया था..मिला जो प्यार जोर
ज़बरदस्ती का था .. मै उस रात को सबसे हसीं बनाना चाहती थी..मैने उसके दिल मे देख
लिया था की वो मुझे एक रात मे ही चाहने लगा था.. पर मुझे अच्छा महसूस करवाने के
लिए वो मेरे करीब नहीं आया..
मैं जाते जाते उसकी ये ख्वाइश पूरी करना चाहती थी..और अपनी भी.. मैने
धीरे से कम्बल से खुद को बाहर निकाला, मैने चारु के दिए कपडे उतार कर उसके सोफे पर
फैंक दिए.. मेरे अन्दर एक आग सी लग चुकी थी.. कमरा अँधेरा था , अगर उजाला होता तो
मुझे खुद को ही देख कर शर्म आ जाती.. मैं फटाफट कम्बल मे घुस गयी ठंडी बहुत थी ,
बिना कपड़ो के तो आप समझ ही सकते हैं कितनी ठण्ड लगती है..
मैं उसके बगल में सो गयी , मुझे डर था की मुझे छूते ही उसकी क्या
प्रतिक्रिया होने वाली थी ,
उसके और मेरे बीच बस उसका सुपरमैन वाला कुरता पजामा ही था.. मैने उसके
चेहरे के पास जा कर उसकी गरम साँसों को अपने होंठो मे कैद करने की कोशिश की, मगर
इससे पहले की मै उसके होंठो तक पहुँच पाती, उसका हाथ मेरी नगन कमर पर था, मुझे ऐसा
लग रहा था की मानो वो जाग चुका था, सोने का नाटक कर रहा था, मेरा दिल जोर जोर से
धड़क रहा था.. मैने धीरे से अपने पैर के अंगूठे से उसका पाजामा सरकाने की कोशिश की,
और मैं कामयाब हुई , उसके कुर्ते के बटन खोलते ही अब सारे रूकावटे दूर हो चुकी थी
, अब मिलन का समय आ चुका था .. मेरा शक बिलकुल सही था , वो सोया नहीं था.. और वो
जो चाहता था उसे वो मिल चुका था, उसने अपने कपडे उतार फैंके , और अब मै कुछ नहीं
कर रही थी , जो भी कर रहा था सिर्फ वोही, उसके शरीर से जेसे ही मेरा शरीर छुआ मै
मदहोश हो चुकी थी , उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया ,ये पल बहुत ही हसीन होता है,रात गरमा चुकी थी , मुझे
कोई होश नहीं थी अब , उसकी गरम जीभा का स्पर्श ही मुझे बस याद था,कभी होंठो पर कभी
नाज़ुक अंगो पर कभी पेट पर उसने हर जगह का स्वाद लिया .. उसका हर स्पर्श मुझे एक
मीठी सी ख़ुशी का एहसास दे रहा था,
मैने उसके कान मे कहा ,” गुदगुदी हो रही है ,यहाँ मत छुओ ..इतनी गहराई
मे जाओगे तो डूब जाओगे..
उसने बस इतना कहा,” अब तुमने ही मुझे धक्का दिया है, अब डूब जाने दो
मुझे इस सागर में , तुम हो ना साथ मेरे ...
मैने एक आह भरते हुये कहा ,” मै
तुम्हारे साथ हूँ कवि “ ( और मन ही मन कहा , “ और हमेशा रहूंगी “)
और उसने वहीँ बार बार छुआ, वो पेरों तक जा पहुंचा .. वहां से उसने
चूमना शुरू किया और फिर टांगो पर , फिर
किसी ख़ास जगह पर चूमा , फिर पेट पर फिर जो चीज़ उसे सबसे अधिक पसंद थी वहां चूमा,
और वहां उसने काफी समय बिता दिया , आप तो समझ ही चुके होंगे , वो जगह आपकी भी
पसंदीदा रही होगी, अक्सर पुरुषों को हम लड़कियों के शरीर का वो हिस्सा बहुत लुभाता
है , आकर्षित करता है, कारण इसका शायद पुरुषो का बचपन से ही उस अंग से लगाव होता
है ,जब से वो माँ का दूध पीते आये हैं .. ऐसा मै नहीं कहती साइंस कहती है .. पुरुष
चाहे कितना भी भोला भाला क्यूँ ना हो , एक नर भावना जहाँ आ जाती है , वहां मादा की
तरफ आकर्षित होना स्वभाबिक था , और ये समय वो नर था मैं मादा , और इसके इलावा कोई
सामाजिक , विज्ञानिक तथ्य नहीं था ..
उसके होंठो की गर्मी से मेरा अंग अंग गरमा उठा था , और एक वो था ज़ालिम
जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था .. पर जो भी था शानदार था, एक लड़की होना आज
मुझे अच्छा लग रहा था.. क्यूंकि आज कोई था जो अपने जोश की प्रदर्शनी कर मुझे लुभाने की कोशिश कर
रहा था.. पर अभी तो बहुत समय बाकी था , वो रात का आनंद अभी काफी लम्बा चलने वाला
था ...किसी तरह अब उसके होंठ मेरे होंठो पर थे दो शरीर एक हो चुके थे , एक पुरुष
से योन सम्बंध बनाना एक लड़की के लिए बहुत ही मुश्किल कार्य हो सकता है , पर मेरे
लिए उसने ये कार्य काफी सरल बना दिया था.. हालाकि कमरे मे खामोशी थी , मगर मेरे
कानो मे एक संगीत सा सुनाई दे रहा था,संगीत बड़ा मधुर था.. वो काफी समय तक अंगों को
सहलाता रहा मानो अब जंग की घोषणा होने ही वाली थी.. जंग ही तो है , एक अनजान से
युद्ध करना , प्रेम का युद्ध , जिसमे उसे ये दिखाना है , की मै कितना शक्षम हूँ ,
कितना बलबान हूँ, जंग की शुरुआत हो चुकी थी, पलंग की चरमराहट बढती जा रही थी ,पड़ोसियों
के जागने के लिए वो आवाज काफी थी .. मेरे मुह से आवाजों का सिलसिला जारी था.. आग
लग चुकी थी बदन मे , और बुझाने का मन भी नहीं था..
आखिरकार उसकी आवाज सुनने को मिली वो बोला ,” चलो मेरे साथ स्वर्ग में चले ..
मैने पुछा ,” इससे बड़ा स्वर्ग कहाँ होगा कवि ..”
वो पलंग से उतरा और बाथरूम में गीजर आन कर के आ गया .. मैं उसके इरादे भांप चुकी थी..मैने सोचा भी नहीं था एक
सीधा सादा दिखने वाला इंसान इतना रोमांटिक हो सकता है..
वो मुझे उठा कर बाथ टब में ले गया , जहाँ गीजर से निकलते गरम पानी के
फुवारे से एक दम बदन में सनसनी लहर सी दौड़ गयी .. बाथ टब पर झाग ही झाग भर चुकी थी
, नगन अवस्था में एक लड़का लड़की साथ साथ एक दूसरे को सीने से लगाए एक दूसरे के
होंठो को चूम रहे हों तो , ऐसी कल्पना भी इंसान के भीतर योन सम्बंध की इच्छा जगा
देती है , मैं तो इस कल्पना की पात्र थी..एक खुशबू वाला तेल जिसका उसने मेरे पूरे
शरीर पर लेप किया , सर से पेरों तक ,उसकी उँगलियों के स्पर्श मुझे जादुई से मदहोशी
दे रहे थे ,वो खो चुका था मेरे अन्दर , और मैं भी तो.. आधी रात को नहाना, कुछ इस
तरह नहाना , फिर वापिस पलंग पर चले जाना , और इस समंदर में डूबते ही चले जाना ,
साथी का साथ निभाना ,और फिर चरम सीमा का वो सुखद एहसास और आखिर मै बाहों में बाहें
डाल कर सो जाना , यही है , वो एहसास जिसे कोई भी वंचित नहीं है आज के जीवन मे ,
यहीं तो जीवन का आधार है ,पर गुप्त रखा जाता है , क्यूंकि इसे गुप्त ही रहना चाहिए..
वो रात हसीन थी , कवि एक दिलचस्प आदमी था
.. एक दिल से नरमदिल , दिमाग से बच्चा , मगर उसके पास एक नर सा जोश था , जो किसी
भी लड़की को मदहोश कर सकता था.. मैने अपने मोबाइल को उठाया और देखा सुबह के चार बज
चुके थे , मेरे जाने का समय था .. मै जिस काम से आई थी वो काम पूरा हो चुका था .. या
यूँ कह लीजिये पूरे हो चुके थे मैने पर्स से क्लोरोफॉर्म निकाली, कवि को बेहोश कर
कपडे पहने , अपना सामान उठाया , कीमती सामान भी ,और सोये कवि को चूमते हुये दरवाजे
से बाहर अँधेरे मे निकल गयी.. मैं छुपते छुपाते..किसी तरह रेलवे स्टेशन पहुंची , ट्रेन
पकड़ कर सीधा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे गयी जहाँ पर इंतज़ार करती अपनी गिरोह के वही
पुराने दोस्तों के साथ मिल गयी.. हमारा भारत आने का मकसद पूरा हो चुका था.. 40
करोड़ के इस हीरे ने मुझे ज़िन्दगी में प्यार का अर्थ समझा दिया ,यम्जिन ने मुझसे वो
हीरा लिया और उससे जांचने के बाद उसने पाया की हीरा असली है , उसने मुझे मेरे काम
के लिए बधाई और इनाम दिया.. याम्जिन मेरे पांचो दोस्त और में अपने देश के लिए
रवाना हो चुके थे , कवि भी जाग चुका होगा.. खुद को अकेला पायेगा.. मगर बहुत ज़ल्द
उसके जीवन में एक लड़की आएगी .. जो उसे बेहद प्यार देगी.. एक पत्नी वाला प्यार.. और
मैं जानती हूँ वो उसे हमेशा खुश रखेगा..
मेरे साथ हर बार गिरोह में असहमति से योन सम्बंध बनाया जाता रहा है..
पर पहली बार एहसास हुआ जब नर और मादा दोनों की सहमति हो तभी उन्हें स्वर्ग के जेसा
सुख जेसा एहसास होता हैं...
कवि का क्या हुआ .. अरे कवि
तो अभी क्लोरोफॉर्म के असर से बाहर निकला है, बिस्तर उलझा हुआ , नगन अवस्था में
कवि, सोफे पर चारु के कपडे , और सामने उसका आदमखोर भेडिया खिलौना जिसके गले पे एक
लडकियो का अंग वस्त्र जो कवि को हमेशा जिन्गुआ की , और उस हसीं रात की याद दिलाता
रहेगा..कवि ने देखा ज़िन्गुआ गायब थी.. उसका पैसों भरा बैग भी गायब था .. आदमखोर
भेडिये के पेट से रुई निकली पड़ी है, कवि सर खुजलाता हुआ देखता है , घडी में 10 बज
चुके हैं.. उसका जिन्गुरा आसमान में उड़ चुका था.. चारु दरवाजा खटका रही थी .. कपडे
पहन कर वो दरवाजा खोलता है , चारु अन्दर आती है..और
चिल्लाती है,” मेरे कपडे केसे फैंके हुये हैं .. कहाँ गयी वो चुड़ैल ??
कवि कुछ समझ नहीं पा रहा था उसने नीचे गिरा अंग वस्त्र उठाया, और उसकी
खुशबू सूंघ कर कहा ,” तेरा तो ये हो नहीं सकता चुड़ैल ज़रूर वही छोड़ गयी होगी, ये खुशबु मे अच्छे से
पहचानता हूँ...
चारु चिडाते हुये बोली ,” मैं ऐसी रंगीन पहनती भी नहीं.. कुत्ते
,अच्छा हुआ वो चुड़ैल चली गयी.. पता नहीं क्या क्या कर के गयी है तेरे साथ.. इन
कपड़ो को धो के सुखा के प्रेस कर के देना मुझे नहीं तो सबको बता दूंगी साले की क्या
क्या करता है इस कमरे में, समझा ना ...
कवि मुश्कुराते हुये कहता है ,” जा मेरी माँ धो के दूंगा .. बीमारी
कहींकी.. और बताया ना किसी को तो तेरे बॉयफ्रेंड को तेरे पिछले सारे काण्ड बता
दूंगा ..
चारु जीभ चिडाते हुये चली जाती है.. और इस तरह कवि को जीवन का पहला
सुखद एहसास करवा जाती है ज़िन्गुआ .. और कवि पहली बार ये जान गया की, “ प्यार तोहफे
देने , आँखों में निहारने आई लव यू कहने और कवितायें लिखने तक ही सीमित नहीं
है.असली हकीकत तो उससे भी जादुई है..पर गोपनीय है , इसे राज़ ही रखना चाहिए ..
क्यूंकि हम सभ्य हैं .. दुनिया की सबसे समझदार प्रजाति है , और हमे इस एहसास को
पाने के लिए कवि जेसे मौके नहीं मिलते ये एहसास शादी के बाद ही नसीब होता है , जो
कवि ने इन दो रातो में अनुभव कर लिया.. उसके लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत है. .. चलता
हूँ एक नयी कहानी के साथ आऊंगा फिर अगली बार .. तब तक प्यार कीजिये ,प्यार लीजिये.
, पर जो कवि ने किया उसे सिर्फ साथी की सहमति से ही कीजिये , जोर ज़बरन करने वालो
के लिए कानून के हाथ बहुत लम्बे हैं.. ...
आपका अपना कवि
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