लखनऊ
शहर में नए नए आए थे ,काम ढूंढने ,पिता जी की हालत खराब रहने लगी तो लगा जैसे अब
घर का बोझ
हम पर ही आना
था। हमे तो आप जानते ही होंगे, हम जयशंकर चतुर्वेदी, बिहार विश्वविद्यालय से पढाई
कर के नौकरी की तलाश में दर दर भटकते फिर रहे। किसी दोस्त ने कह दिया हमसे कि लखनऊ
चले जाओ,काम की कमी नही वहां । ना रहने को घर ठिकाना, जेब मे सिर्फ दस दिन के खाने
के पैसे ना जान ना पहचान, अनजान शहर, भगवान भरोसे चल दिए हम तो और अब कोई राह नही
सूझ रही जाएं तो कहाँ जाएं।
हमने सुना है लखनऊ नवाबों का शहर है, और दिखता भी है, काश हमे कोई नवाब ही मिल जाए, हम उसकी भी गुलामी कर लेते।
राह चल ही रहे थे कि एक पनवाड़ी के पास रुके, तो वो पूछने लगा हमसे,"नए हो क्या भाई लखनऊ में??
हम बोले ," हाँ भाई तुमको कैसे पता चला??
वो मुश्कुराते हुए पान चवाते हुए बोलै," मूत कर आओ भाई।
हम बोले ," हम क्यों करे मूत ,हमे आएगा तब करेंगे,तुम्हारे कहने से थोड़े करेंगे।
वो फिर पान निगल कर बोला," मुश्कुराने को कह रहे हैं ना कि मूतने को भाई, लखनऊ में हो तो मुश्कुराना पड़ता है, ऐसा काहे मुह लटकाया है वे तुमने "
हम समझे कि वो मुस्कुराने को कह रहा था,हमने उससे कहा," क्या करें भाई नया शहर , ना काम ना धंधा, ना कोई घर ना ठिकाना, जाए तो कहां जाए समझ नही आ रहा हमे"
वो बोला," अच्छा तो नौकरी पाने आए हो ?? चलो पहले पान खा लो, फिर नौकरी भी पा लोगे हा हा।"
हमने कहा," चलो बना दो भाई इतनी ज़िद्द कर रहे हो तो"
उसने पान बनाया और बहुत लज़ीज़ पान था भाई साहब, मुह में सनसनी लहर दौड़ गई का के उस पान को।
हमने कहा," वाह भाई तबियत खुश कर दी तुम्हारे पान ने बताओ कितना दें तुम्हे? "
वो बोला," भाई भी बोलते हो और पैसे भी देते हो, ये बात ठीक नही, ये पान हमारी तरफ से तुमको मुफ्त में लखनऊ की तरफ से स्वागत का तोहफा।
हम बोले ,"नही नही भाई ये पकड़ो 50 रुपये और हम चलते हैं"।
वो बोला ,"ठहरो भाई।काम चाहिए ना तुम्हे एक ठिकाना बताता हूँ ,वो सामने सिनेमा हॉल दिख रहा है, इसके बगल में एक कपड़े की दुकान है, इनको एक हिसाब किताब करने वाला आदमी चाहिए,कर पाओगे हिसाब किताब ?
हम तो हिसाब में अब्बल थे हमने कह दिया," अरे भाई बहुत भला तुम्हारा हिसाब से बढ़कर और क्या बढ़िया होगा, चलो चलो भाई थोड़ी बात करवा देते तो बढ़िया रहता।"
पिंटू पनवाड़ी बहुत नेक दिल इंसान था, वो हमे, ले गया उस बड़ी सी कपड़े की दुकान में जहां कम से कम 50 लोग काम करते थे, तो उसने सेठ से बात करवा दी और 15000 रुपये महीने में सेठ ने हमे काम पर रख लिया, और रहने का बंदोबस्त भी उसी दुकान में हो गया।
बहुत भला हो उस पनवाड़ी का जो भगवान का रूप था।
कुछ दिन बीत गए हमारा काम बिल्कुल बढ़िया चल रहा था, घर से माँ बाबू जी का फोन आया तो हमने उन्हें बताया कि नौकरी मिल गई है, और पैसे भेज दूंगा अगले महीने तनख्वाह मिलते ही।थोड़ा पैसा पिंटू से लिया तो महीना गुज़ारा हुआ।
तनख्वाह मिली ज़िन्दगी की पहली तनख्वाह भाई साहब उस तनख्वाह की खुशी की हम शब्दों में व्यान नही कर सकते।
हम गए पिंटू के पास बोले," ये लो भाई पिंटू तुम्हारे 1500 रुपये उधारी के अपना हिसाब चुकता"
वो बोला," ऐसे कैसे चुकता भाई??
हम बोले," पर हमने तो 1500 ही लिए थे?
वो बोला," ये चालिस रुपए पकड़ों पान 10 रुपए का आता है, पचास का नही हा हा। "
और फिर हम दोनों ज़ोर ज़ोर से हसने लगे।
हमे बगल के पुराने बंजर सिनेमा से नाच गाने की आवाज आ रही थी, हम पिंटू से पूछे ,"भाई कोन सी पिक्चर चल रही है भीतर?
वो बोला," इधर तो भैया हर समय डर्टी पिक्चर चलती है देखनी है क्या तो निकालो 100 रुपया ??
हम बोले ," डर्टी पिक्चर कोन विद्या वाली ??
वो बोला ," नही वे चल दिखाता हूँ।
वो हमसे सौ रुपए लिया, और खुद भी 100 रुपए डाल के रात 11 बजे की टिकट खरीद ली।
भाई साहब टिकट खरीद कर जैसे ही हम अंदर गए, वहां सिनेमा हॉल तो था ही नही, वहां का नज़ारा कुछ और ही था, अंदर नाच गाना चल रहा था, 10 -12 लड़कियां भड़कीले, छोटे छोटे कपड़ों में नाच रही थी, और लोग उन पर पैसा उड़ा रहे थे,और वो लड़कियां उस पैसे की बरसात में और गानों की तर्ज पे ठुमके लगा रही थी।
मैं पिंटू से पूछा," वे ये क्या चल रहा है??
पिंटू बोला," मनोरंजन चल रहा है वे और क्या ,तुम नही करते क्या मनोरंजन??
हम ठहरे चतुर्वेदी जी के बेटे,हमे वेद के इलावा कुछ और मालूम ही नही था।
वो बोला चल 100 रुपया निकाल एक और खेल दिखाता हूँ।
हमने बड़े डरते डरते पैसे निकाले और पिंटू को दिए।
उसने नोट को हवा में घुमाया और एक लड़की को इशारा किया, वो लड़की हमारी ओर आई, सौ का नोट झपटा और हम दोनों के गालों में चूम कर चली गई। लड़की बहुत ही सुंदर थी, मेरा तो दिल आ गया उसपर। वो आई और दो गिलास शराब के हमारे लिए ले कर आई। पिंटू ने हमे एक गिलास पकड़ाया और कहा मज़े कर भाई अब तो ये रात तेरी है।
हम तो शराब कभी पीते नही थे तो हमने रख दी बगल में, पिंटू नाच गाने में झूमने लगा और देखते ही देखते गायब हो गया।
हम परेशान कि अब क्या किया जाए, हम जाने लगे ही थेकि अचानक एक नाज़ुक से हाथ ने हमारी कलाई पकड़ ली। हमने पीछे मुड़ कर देखा तो ये तो वही लड़की थी, वो कुछ बोल रही थी, मगर हमे सुनाई नही दे रहा था शोर में। वो हमारा हाथ पकड़ कर हमें दूसरे माले पे ले गई, वहां शोर कम था,मगर वहां अज़ीब अज़ीब सी लोगो के कराहने की आवाजें आ रही थी, हम समझ गई वो हमें कहाँ ले आई थी। वो बोली,”क्या नाम है तुम्हारा?
हमने सुना है लखनऊ नवाबों का शहर है, और दिखता भी है, काश हमे कोई नवाब ही मिल जाए, हम उसकी भी गुलामी कर लेते।
राह चल ही रहे थे कि एक पनवाड़ी के पास रुके, तो वो पूछने लगा हमसे,"नए हो क्या भाई लखनऊ में??
हम बोले ," हाँ भाई तुमको कैसे पता चला??
वो मुश्कुराते हुए पान चवाते हुए बोलै," मूत कर आओ भाई।
हम बोले ," हम क्यों करे मूत ,हमे आएगा तब करेंगे,तुम्हारे कहने से थोड़े करेंगे।
वो फिर पान निगल कर बोला," मुश्कुराने को कह रहे हैं ना कि मूतने को भाई, लखनऊ में हो तो मुश्कुराना पड़ता है, ऐसा काहे मुह लटकाया है वे तुमने "
हम समझे कि वो मुस्कुराने को कह रहा था,हमने उससे कहा," क्या करें भाई नया शहर , ना काम ना धंधा, ना कोई घर ना ठिकाना, जाए तो कहां जाए समझ नही आ रहा हमे"
वो बोला," अच्छा तो नौकरी पाने आए हो ?? चलो पहले पान खा लो, फिर नौकरी भी पा लोगे हा हा।"
हमने कहा," चलो बना दो भाई इतनी ज़िद्द कर रहे हो तो"
उसने पान बनाया और बहुत लज़ीज़ पान था भाई साहब, मुह में सनसनी लहर दौड़ गई का के उस पान को।
हमने कहा," वाह भाई तबियत खुश कर दी तुम्हारे पान ने बताओ कितना दें तुम्हे? "
वो बोला," भाई भी बोलते हो और पैसे भी देते हो, ये बात ठीक नही, ये पान हमारी तरफ से तुमको मुफ्त में लखनऊ की तरफ से स्वागत का तोहफा।
हम बोले ,"नही नही भाई ये पकड़ो 50 रुपये और हम चलते हैं"।
वो बोला ,"ठहरो भाई।काम चाहिए ना तुम्हे एक ठिकाना बताता हूँ ,वो सामने सिनेमा हॉल दिख रहा है, इसके बगल में एक कपड़े की दुकान है, इनको एक हिसाब किताब करने वाला आदमी चाहिए,कर पाओगे हिसाब किताब ?
हम तो हिसाब में अब्बल थे हमने कह दिया," अरे भाई बहुत भला तुम्हारा हिसाब से बढ़कर और क्या बढ़िया होगा, चलो चलो भाई थोड़ी बात करवा देते तो बढ़िया रहता।"
पिंटू पनवाड़ी बहुत नेक दिल इंसान था, वो हमे, ले गया उस बड़ी सी कपड़े की दुकान में जहां कम से कम 50 लोग काम करते थे, तो उसने सेठ से बात करवा दी और 15000 रुपये महीने में सेठ ने हमे काम पर रख लिया, और रहने का बंदोबस्त भी उसी दुकान में हो गया।
बहुत भला हो उस पनवाड़ी का जो भगवान का रूप था।
कुछ दिन बीत गए हमारा काम बिल्कुल बढ़िया चल रहा था, घर से माँ बाबू जी का फोन आया तो हमने उन्हें बताया कि नौकरी मिल गई है, और पैसे भेज दूंगा अगले महीने तनख्वाह मिलते ही।थोड़ा पैसा पिंटू से लिया तो महीना गुज़ारा हुआ।
तनख्वाह मिली ज़िन्दगी की पहली तनख्वाह भाई साहब उस तनख्वाह की खुशी की हम शब्दों में व्यान नही कर सकते।
हम गए पिंटू के पास बोले," ये लो भाई पिंटू तुम्हारे 1500 रुपये उधारी के अपना हिसाब चुकता"
वो बोला," ऐसे कैसे चुकता भाई??
हम बोले," पर हमने तो 1500 ही लिए थे?
वो बोला," ये चालिस रुपए पकड़ों पान 10 रुपए का आता है, पचास का नही हा हा। "
और फिर हम दोनों ज़ोर ज़ोर से हसने लगे।
हमे बगल के पुराने बंजर सिनेमा से नाच गाने की आवाज आ रही थी, हम पिंटू से पूछे ,"भाई कोन सी पिक्चर चल रही है भीतर?
वो बोला," इधर तो भैया हर समय डर्टी पिक्चर चलती है देखनी है क्या तो निकालो 100 रुपया ??
हम बोले ," डर्टी पिक्चर कोन विद्या वाली ??
वो बोला ," नही वे चल दिखाता हूँ।
वो हमसे सौ रुपए लिया, और खुद भी 100 रुपए डाल के रात 11 बजे की टिकट खरीद ली।
भाई साहब टिकट खरीद कर जैसे ही हम अंदर गए, वहां सिनेमा हॉल तो था ही नही, वहां का नज़ारा कुछ और ही था, अंदर नाच गाना चल रहा था, 10 -12 लड़कियां भड़कीले, छोटे छोटे कपड़ों में नाच रही थी, और लोग उन पर पैसा उड़ा रहे थे,और वो लड़कियां उस पैसे की बरसात में और गानों की तर्ज पे ठुमके लगा रही थी।
मैं पिंटू से पूछा," वे ये क्या चल रहा है??
पिंटू बोला," मनोरंजन चल रहा है वे और क्या ,तुम नही करते क्या मनोरंजन??
हम ठहरे चतुर्वेदी जी के बेटे,हमे वेद के इलावा कुछ और मालूम ही नही था।
वो बोला चल 100 रुपया निकाल एक और खेल दिखाता हूँ।
हमने बड़े डरते डरते पैसे निकाले और पिंटू को दिए।
उसने नोट को हवा में घुमाया और एक लड़की को इशारा किया, वो लड़की हमारी ओर आई, सौ का नोट झपटा और हम दोनों के गालों में चूम कर चली गई। लड़की बहुत ही सुंदर थी, मेरा तो दिल आ गया उसपर। वो आई और दो गिलास शराब के हमारे लिए ले कर आई। पिंटू ने हमे एक गिलास पकड़ाया और कहा मज़े कर भाई अब तो ये रात तेरी है।
हम तो शराब कभी पीते नही थे तो हमने रख दी बगल में, पिंटू नाच गाने में झूमने लगा और देखते ही देखते गायब हो गया।
हम परेशान कि अब क्या किया जाए, हम जाने लगे ही थेकि अचानक एक नाज़ुक से हाथ ने हमारी कलाई पकड़ ली। हमने पीछे मुड़ कर देखा तो ये तो वही लड़की थी, वो कुछ बोल रही थी, मगर हमे सुनाई नही दे रहा था शोर में। वो हमारा हाथ पकड़ कर हमें दूसरे माले पे ले गई, वहां शोर कम था,मगर वहां अज़ीब अज़ीब सी लोगो के कराहने की आवाजें आ रही थी, हम समझ गई वो हमें कहाँ ले आई थी। वो बोली,”क्या नाम है तुम्हारा?
हम बोले,”जयशंकर चुतर्वेदी और तुम्हारा ??
वो बोली,”लवीना नाम है हमारा लोग हमेलवु कह कर पुकारते हैं। चलो पांच सौ रूपए निकालो ,ज़िन्दगी के हसीन सपने देखने है तो? हम पहले ही दो सौ रुपए गवा के पछता रहे थे, और वो हम से कहने लगी पांच सौ रुपए निकालो ,भाई साहब हमे भागना था वहां से पर भाग नही पा रहे थे।
वो बोली,”लवीना नाम है हमारा लोग हमेलवु कह कर पुकारते हैं। चलो पांच सौ रूपए निकालो ,ज़िन्दगी के हसीन सपने देखने है तो? हम पहले ही दो सौ रुपए गवा के पछता रहे थे, और वो हम से कहने लगी पांच सौ रुपए निकालो ,भाई साहब हमे भागना था वहां से पर भाग नही पा रहे थे।
हमने कहा,”अरे हमे नही लेने ज़िन्दगी के हसीन सपने
हमे जाने दो यहां से” वो हमे गालियां देने लगा, “अवे ओ चूतिए, यहां क्या मरवाने आया है फिर, चल निकल ले पतली गली से पता नही कहाँ
कहाँ से चले आते हैं यहां। हमने कहा,”ज़रा तमीज़ से बात कीजिए, ।
वो बोली,”तमीज़ गई तेल लेने तू निकल यहां से नही
तो बुलवाऊं क्या सेठ को यहां”हम पतली गली से निकल लिए, मगर उसके शब्द बार बार कानों में बज रहे थे
किसी हॉर्न की तरह। जब हमे जो चीज़ नही पसंद हमे कैसे कर लेते, हम भला कैसे अपने मेहनत के कमाए पैसे
एक नचनिया पे उड़ा सकते थे। हम चले आए घर , अगली सुबह फिर काम मे व्यस्त, पिंटू तो वहां जाता ही रहता था, और हमे भी कहता था साथ चलने को मगर हम
कभी नही गए।
एक रोज़ हम सब्जी
लेने जा रहे थे तो रास्ते मे गली से एक गाड़ी गुज़री और उस गाड़ी से एक लडक़ी को धक्का
मार के बाहर गिराया और गाड़ी चली गई, वो लड़की लवीना
ही थी,
उसके कपड़ों की, और बालों की हालत से साफ पता चल रहा था
कि गाड़ी में वो क्या कर रही थी और धक्का क्यों मारा गया। वो गाड़ी की तरफ देख कर चिल्लाती है,”अवे हरामखोर मादरचोद अपनी माँ को भी
ऐसे ही ध्क्का मारना”।
हम ये सब देख
रहे थे,
उसने हमें भी
देख लिया था उसको देखते हुए, वो जहां जहां से
जा रही थी,
लोग उसे गन्दी
गन्दी बाते बोल रहे थे, और वो उन्हें
उल्टे जवाब दे रही थी। और वो सिनेमा में चली जाती है।काफी दिन बीत गए वो नज़र नही
आई,हम पनवाड़ी से पूछने चले गए ,”यार पिंटू भाई लवीना कहीं दिखाई नही
देती आजकल ??
पिंटू हमे ही
चिढ़ाने लग गया,”अबे तू कब से लवीना को ढूंढने लग गया
वे उस दिन तो भाग आया था । और वो हमारा मज़ाक उड़ाने लगा।हम वहां से चले आए। अगले दिन फिर में अल्फ़ाज़ भाई के यहां
चाय पी रहा था,
एक स्कूटर से एक
लड़की उतरी और सिनेमा में चली गई।ध्यान से देखा तो लवीना ही थी। हर रोज हम चाय की दुकान पर शाम को
बैठते तो कोई गाड़ी वाला या स्कूटर वाला, उसे छोड़ कर जाता
था।
ऐसे ही एक दिन
शाम को हम बैठे थे तो दो लड़के आए, लवीना गुज़र रही
थी बगल से तो उसको यहां वहां हाथ लगाने लगे, हम समझ गए अब इन लड़कों की खेर नही, मगर उस रोज वो उन्हें कुछ नही बोली और
चुपचाप अंदर चली गई।
मैंने पूछा
अल्फ़ाज़ भाई से ये कौन हैं चाचा लड़के,?? वो बोला,”नवाब साहब के रिश्तेदार हैं हवेली के
मालिक हैं वो जो सामने दिखती हैं ना। हवेलियों से
अक्सर लड़कियां निकलती थी रात के वक़्त और सिनेमा में घुस जाती थी।
हमारा काम बढ़िया
चल रहा था ,मालिक ने तनख्वाह बढा कर 20 हज़ार रुपए
कर दी। दीवाली का त्योहार था, हम कुछ कपड़े
लत्ते ले कर अपने घर चले गए बरेली। पिता जी को बहुत खुशी हुई कि बेटा कई दिनों बाद
लौट कर आया है ,कुछ पैसे इक्कठे किए थे तो उनका हमने
माँ बाबू जी के लिए एक टीवी खरीद लिया। पिता जी की आंख में आँशु आ गए कि उनका बेटा
अब सही मायने में बड़ा हो गया है जो घर की चीज़ें जोड़ने लगा है। तो अब दिनभर मां सास
बहू के सीरियल देखती है और पिता जी कभी खबरें तो कभी मैच। दीवाली खत्म हुई, हम घर से जाने लगे तो सब भावुक हो गए। हमने माँ बाबू जी से कहा,”कि हम जल्द लौटेंगे तुम्हारी बहु के
साथ ,
नए साल पर, उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई।माँ बोली,”लड़की देखी है क्या लला??” हम बोले ,”हाँ माँ लाएँगे तुमसे मिलवाने”
और हम वापिस
लखनऊ के लिए चल दिए। 6 घण्टे के सफर के बाद हम पनवाड़ी पिंटू से मिले,“क्यों भाई पान नही खिलाओगे दस रुपए
वाला” पिंटू हमे देख खुश हो गया और बोला ,”अबे आ गए तुम बहुत लंबी उम्र हो तुम्हारी
तुम्ही को याद कर रहे थे।मुह मीठा करवाओ तो खुशी की बात सुनाएं
तुम्हे”
हम बोले, “क्या हुआ भैया भाभी पेट से हैं क्या
फिर छठी दफा”।वो बोला, “साले ससुर के
नाती हमारी बजाते रहो तुम, अपनी काहे नही
सोचते।जाओ अल्फ़ाज़ भाई से 4 लड्डू ले कर आओ तो बताएं तुम्हे खुशी की बात” हम फटाफट चार लड्डू ले आए और वो बोला कान में हमारे, “उ आई थी, तुमको ढूंढती हुई? हम बोले, “कौन” वो बोला, “वही कोठे वाली”, हम उस पे चिल्लाए, “तमीज़ से बात कर साले नाम ले कर बोल लवीना नाम
है उसका”।
वो बोला, “कोठे वाली को कोठे वाली ही बोलेंगे और
क्या बोलेंगे वे मादरचोद” हमने उसको कॉलर
से पकड़ लिया और बोले,
“सुन वे हलकट
प्यार करते हैं हम उससे तमीज़ से बात कर”
वो बोला , “जा जा मादरचोद औकात दिखा दी तूने एक
कोठे वाली के लिए दोस्त की कॉलर पकड़ ली, प्यार करते हैं , लोग थू थू करेंगे तुझ पे अगर किसी को
मालूम पड़ा कि तू ऐसा कहता है, हरामखोर भूल गया
हमने तुझे नौकरी दिलवाई इतना काबिल बनाया और आज हमारी कॉलर पकड़ता है, जा जा मर उसके पीछे, हमे ना बुलाना आज के बाद।
हमें एहसास हुआ
कि हमने गलत किया पिंटू की कॉलर पकड़ कर हमने उससे माफी मांगी और कहा उसे , “देख पिंटू भाई मैं जानता हूँ तूने
मुझपे बहुत उपकार किये हैं , मैं तेरा एहसान
कभी चुकता नही कर सकता, मगर ये भी सच है कि मैं उस लड़की से मोहबत करने
लगा हूँ,
उसके ज़िस्म से नही, उसकी रूह से मोहबत हो गई है मुझको, उसकी आँखों मे एक अलग सी बेबसी दिखती
है मुझे ,एक मायूसी उसके सख्त मिज़ाज के पीछे
दिखती है मुझे,
क्यों भला लोग
मुझे थू थू करेंगे,
जब उन्हें उस के
साथ सोने में ऐतराज़ नही तो मेरे इश्क़ करने में क्या ऐतराज़ होगा उन्हें भला, इतना कहते ही मैं कमरे में चले गए।
पिंटू आँखे बड़ी बड़ी कर के मुझे देखता रहा।
शाम को 8 बजे का
वक़्त था,वैसे ही मैं अल्फ़ाज़ भाई की दुकान पर
चाय पी रहा था,
एक गाड़ी आई और
फिर उस दिन की तरह पिछली सीट से लवीना को ध्क्का मार कर एक अमीरजादा अपनी हवश दूर
कर के उसे कचरे की तरह फेंक गया, लवीना इतनी
कमज़ोर हो चुकी थी कि उसके अंदर उठने की हिम्मत भी नही रह गई थी, वो सड़क पर पड़ी थी, लोग उसे ताने दे रहे थे, और उसे छेड़ रहे थे, और वो मानो तक हार कर गिर चुकी थी, धरती माँ की गोद मे सोना चाहती हो।
हम आज गए उस के
पास, हमने हाथ बढ़ाया और उसे अपने साथ अल्फ़ाज़
भाई की दुकान में ले गया। वो मायूस हो चुकी थी ,हमने अल्फ़ाज़ भाई को कहा दो गर्मा गर्म अदरक
इलाइची वाली चाय बनाने को, अल्फ़ाज़ भाई दिल
का नेक था बिल्कुल पिंटू की तरह, उसने फटाफट चाय
बनाई और हमारे लिए ले आया, मैंने एक गिलास
लवीना को दिया और एक खुद पिया। लवीना चुप चाप चाय की चुस्कियां ले रही थी और बाहर
की भगदड़ को देख रही थी, मानो समझना
चाहती हो कि आखिर ये क्या हो रहा है मेरे साथ ये क्यों हो रहा है मेरे साथ।
देखते ही देखते
उसकी आँखों से एक आँशु की बूंद टपक कर चाय में गिरी, और वो फिर भी पीते जा रही थी, हमने उसे कुछ नही पूछा, क्योंकि हम जानते थे कि उसके भीतर कैसा
बवाल मच रहा था। उसका गिलास खाली हुआ और वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगी, लगातार रोती रही, बहुत देर तक रोई।
हमने भी उसे
रोने दिया ये आंशू कई सालों से उसने शायद अपने अंदर कैद कर के रखे थे, जो आज बह गए।
अब वो हल्का
महसूस कर रही थी,
उसने हमसे पूछा , “जयशंकर चुतुर्वेदी यही नाम है ना
तुम्हारा??
हमने कहा, “हाँ एक साल पहले मिले थे हम, सिनेमा हॉल में”
उसने मेरी तरफ
देखा और कुछ देर देखती रही और फिर ज़ोर ज़ोर से हसने लगी। जितनी ज़ोर से रोइ थी, उतनी ही ज़ोर से हसने लगी। फिर जब उसकी
हँसी रुकी तो बोली,
“क्या इंसान हो
तुम जयशंकर चुतुर्वेदी”
मतलब ऐसे कौन
करता है,
एक लड़की तुम्हे
अपने जिस्म को छूने को कह रही है और तुम भाग जाते हो, मना कर देते हो। और उसकी बात सुन कर हमें भी हँसी आ गई। वो बोली, “अच्छे इंसान हो तुम जयशंकर,चाय के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
तुम्हारा,
अच्छा तो मैं
चलती हूँ,
आना कभी सिनेमा
हॉल में।
हमने उसे
मुस्कुराकर अलविदा कह दिया।अब हर रोज़ शाम को जबलवीना किसी गाड़ी से उतरती तो मुझे
चाय की दुकान पर बैठा देख कर चली आती थी। आज उसने कहा, “आज की चाय मेरी तरफ से चतुर्वेदी जी। और अब हर
रोज़ चाय पर वो मुझे अपनी नीजि जिंदगी बताने लगी, बताया कि उसके पिता को कैंसर था, जिन्हें बचाने के लिए उसने अपना जिस्म
तक बेच डाला पर पिता को बचा ना सकी, माँ का भी आधा
शरीर काम नही करता,
उनकी देखभाल
करती है,
चार तक पढ़ने के
बाद वो आगे पढ़ नही पाई थी, जिसकी वजह से
उसे कुछ काम धंधा आता भी नही, अपनी सहेली के
कहने पे 18 साल की उम्र में उसने कोठे पे जिस्मफरोशी करना शुरू कर दिया। पिछले चार
साल से वो यही काम दिन रात करती है ।
वो हमसे कहने
लगी ,
“शुरू में डर
लगता था,
तबमज़बूरी से
करना पड़ता था,
फिर आदत पड़ गई, मज़बूरी में भी मज़ा आने लगा, लेकिन हद तो तब हो गई, जब ज़िन्दगी ज़लील होने लगी, इज्जत की धज्जियां उड़ने लगी,तो खुद से नफरत होने लगी, इस जिस्म से नफरत होने लगी, अपनी खूबसूरती से नफरत होने लगी, हवेलियों में बैठे अमीरों के लड़के, मुह बोली रकम दे कर , सिनेमा घर से लड़कियां ले जाते है और
उनके जिस्म को बोटियों की तरह चबाते हैं, उनसे नँगा नाच
करवाते हैं,
उनके कपड़े तो
फटते ही हैं उनकी चमड़ी भी शरीर छोड़ने को चीखने लगती है, शराब के तलाबों में नहाते हैं हमारे साथ और कुत्ते
और भेड़ियों की तरह सारी रात हमारे शरीरों को भोगते हैं वो लोग।
इतना सुनते ही
हमारी रूह कांप उठी और हमने लवीना से कहा, “कि ये धंधा छोड़ क्यों नही देती, हम तुम्हे काम दिलवाएंगे, ।उसने चाय का गिलास रखते हुए कहा,”इतना आसान नही है चतुर्वेदी जी इन
दल्लों के चंगुल से छूटना, ये आपको कभी सुख
की सांस नही लेने देते, आपको रातों को
सोने नही देते।
इतना कह कर
लवीना चली गई,
हम हर रोज़ उसे
काम के बाद मिलते,
और हमे उससे और
लगाव हो जाता,
हम उसके प्यार
में पूरी तरह खो चुके थे, हमे किसी तरह
उसे उस रास्ते से दूर ले कर जाना था।
अगले दिन हम
उसकी अम्मा से मिलने गए, अम्मा बोली , “घर पर ये सब नही चलेगा बाहर तू चाहे जो
मर्जी कर,पर घर पर नही” हमने अम्मा से कहा, “घबराइए नही अम्मा हम लवीना के मित्र हैं , हम सिर्फ आपका हाल चाल जानने आए हैं, उसकी अम्मा की आंखों में आँशु आ गएवो
बोली,
“बेटा ले जा इसे
भगा कर कहीं दूर जहां ये दल्ले इसे ढूंढ ना पाएं मुझे रहने दे, मैं तो दो दिन की मेहमान हूँ,मैं तो चाहती हूं कि कब मुझे मौत आए औऱ
मेरी बेटी को शांति मिले ज़िन्दगी में, इसका बाप मर गया, मैं भी मर जाउंगी, मगर एक ख्वाइश अधूरी रह जाएगी जो हर मा
बाप का सपना होता है,
अपनी बेटी को
व्याहने का। पर इस कोठे वाली से अब व्याह भी कौन करेगा। बेटा इसे ले जा यहाँ से। “
इतना कहते ही
अम्मा खामोश हो गई सदा के लिए। ऐसा लगता था मानो वो हमारा ही इंतेज़ार कर रही थी, और अपनी ज़िम्मेवारी पूरी कर अम्मा
स्वर्ग सिधार गई।उस रात कोई एक जन भी उस बूढ़ी अम्मा की मौत का दुख ज़ाहिर करने नही
आया, घर पर सिर्फ मैं, लवीना, अल्फ़ाज़ भाई, पिंटू भाई और हमारी दुकान के सेठ साहब ही थे।अम्मा
की मौत से पहले अम्मा एक बात मेरे कान में कह गई थी,जो अम्मा की मौत से भी ज्यादा दुखदायी थी,मगर हमने किसी तरह खुद को संभाला रोती
बिलखती लवीना को संभाला ,वो जितनी बार
अपनी माँ के बेजान शरीर को देखती थी, अपनी मृत माँ के
खुले मुह और आंखों को देखती थी वो उस से लिपट जाती थी और लगातार रोती रहती थी,हमने उसे जीवन चक्र समझाया और बताया कि
मृत्यु हर मनुष्य को आती है, कल को हम भी
मरेंगे तुम भी मरोगी,
तो क्या इस गम
में हम ज़िन्दगी जीना छोड़ दे क्या ?? ज़िन्दगी कभीं नही थमती,अगली सुबह हमने अम्मा का दाह संस्कार
किया और अब लवीना एक दम तन्हा हो चुकी थी, वो कई बार आत्म हत्या करना चाहती थी, मग़र भगवान हमे हमेशा उसकी मदद के लिए
भेज देता था ,
कुछ दिनों बाद
हमने देखा एक सुबह चार बजे हमने देखा लवीना को एक मोटरसाइकिल पर बैठा लड़का सिनेमा
के पास छोड़ कर जाता है, अब तक तो कमबख्त
आदत थी,
उसे इस तरह
देखने की मगर जब से ये प्यार का कीड़ा हमे लड़ा था, हमसे देखा नही जाता था, दिल मे क्रोधाग्नि उठती थी, दिल करता था कि उस इंसान की जान ले ले। ये प्यार का मर्ज बहुत बुरा है, यहां गिरना आसान है, मगर इस दलदल से ऊपर उठना बहुत ही कठिन
है, लोग इस दलदल में धसते ही चले जाते हैं
और फिर घुट घुट कर मर जाते हैं।
काफी समय बीत
गया, हम उसे कहते रहे कि ये काम छोड़ दे, हमने उसके लिए एक सिलाई करने के लिए एक
दुकान भी खोल दी,
मग़र उसके अंदर
वेश्या उसे सही मार्ग पर जाने नही दे रही थी, वो दिन भर काम करती दुकान पर दलाल उसका पीछा
नही छोड़ता था,
वो उसे हर रात
नई जगह का पता दे देता और वो चली जाती।
एक रोज हमने पूछ
ही लिया ,
“आखिर कब तक ये
चलेगा लवीना,
ये जिस्म का
धंधा छोड़ दे,
चल हम शादी करके
बरेली चले जाते हैं ।
वो हसने लगी,“एक वेश्या से शादी करोगे चतुर्वेदी जी, दुनिया थूकेगी तुम पर जैसे मुझ पर
थूकती है,
हमने
कहा, “हमसे नही देखा जाता तुम्हे यूँ किसी और
मर्द के साथ जाना,
रात बिताना, हमारा कलेजा फटने को आता है, कल तुम बिहारी के यहां गई थी, हमने देखा सब कुछ खिड़की से झांक कर, माँ कसम रो रो कर हमारा कलेजा फटने को
हो गया था,
क्यों करती हो ये सब, क्या सूकून मिलता है तुम्हे ये सब करने से, हम तुमसे मोहबत करते हैं तुम हमारे साथ
रहो।
वो बोली, “चतुर्वेदी जी मोहबत और हमसे, मजाक कर रहे हो क्या, ऐसा आज तक हमने किसी के मुह से नही
सुना,
एक वेश्या से
कौन मोहबत करता है भला??हमसे आज तक किसी ने मोहबत नही की, सिर्फ हवस ही दिखी हर जगह हमे, तुम चले जाओ चतुर्वेदी,हमारी फिक्र ना करो।
हमने लवीना का
हाथ पकड़ा और उससे कहा, “वेश्या तुम नही
हो , अगर इस धंधे से तुम्हे अलग कर दिया जाए
तुम भी एक साधारण लड़की बन जाओगी। उस दिन तुमने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा आज
मैं तुम्हे अपनी और हाथ पकड़ कर खींचता हूँ चलो मेरे साथ लवीना।
लवीना इतना
सुनते ही ज़ोर जोर से रोने लगी और हमारे सीने से आ लिपटी, भरे बाज़ार के बीचों बीच लवीना और हम एक दूसरे
के भीतर खो चुके थे मानो, हमे पहली दफा
एहसास हुआ कि हमारे दिल को यही लड़की सूकून दे सकती है, वो हमारे कंधे पर टप टप आँशु बहा रही थी, जिससे हमारा कंधा बारिश में भीगा हुआ प्रतीत
होने लगा,
उसे मानो
ज़िन्दगी में सहारा मिल गया था, और हमे हमारा
प्रेम। कुछ देर यूँही खड़े रहने के बाद जब हमे होश आया
तो देखा लोगों का झुंड हमारे आस पास खड़ा था और हम पर हस रहा था, दलाल केवड़ा सेठ लवीना के हाथ खींच रहा
था, और कुछ लोग हम पर टमाटर और अंडे फेंक
रहे थे।
लवीना के हाथ को
दलाल के हाथ से छुड़ा कर हमने उसे परे झटक दिया, मगर लोग हमारा मजाक बना रहे थे।
पिंटू और अल्फ़ाज़
भाई मेरा हाथ खींच कर ले जाने लगे थे, वहीं दलाल फिर
से लवीना को पकड़ने लगा, लोग इस नौटंकी
को देख कर हस रहे थे।हमने उन सब को पीछे हटाया और कहा, “काहे हस रहे हो वे, क्यों अब्दुल भाई, हँसी आ रही है अपने एक हफ्ते पहले वाली
रात पे,
या तुझे राजेश
अपने एक महीने पहले वाली रात पे, या उन सब लोगों
को जो इस कोठे में हर रात जा कर ना जाने कितनी लड़कियों के साथ मुह काला करते हैं, क्या ये सब तुम्हारी माँ बहनो के साथ
हो तो तुम सह लोगे क्या ?? क्या तुम्हारी
हवस तुम पर इतनी हावी हो चुकी है कि तुम सही गलत की समझ खो बैठे हो, एक कराहती लड़की की चीख तुम्हे मज़ेदार
लगने लगती है,
तुम्हारी
मर्दानगी जाग जाती है , तुम हवसी बन
जाते हो,
क्या होगा अगर
यही सब कुछ तुम्हारी माँ बहनों के साथ किया जाए।हमे सिर्फ वही इंसान रोके जो आज तक
इस कोठे में एक बार भी ना गया हो”।
सब के मुह झुके
थे , बिल्कुल भी शोर ना था, हम अपनी दुकान में गए और सेठजी,अल्फ़ाज़ भाई, और पिंटू को अलविदा कहा,हमने पिंटू से कहा, “बहुत अच्छा सफर था भाई यहां तक
तुम्हारे उस पहले पान की मिठास आज भी हमारे मुह में घुली हुई है, वो इतना सुनते ही हमसे लिपट कर रो पड़ा।
वो हमसे कहता भाई माफ कर दे , जो भी हमने भला
बुरा कहा,
अपना और भाभी का
ध्यान रखना और फोन करना भाई पहुंच कर। हमने कहा, “बिल्कुल मेरे भाई हम लखनऊ भूल जाए पर पिंटू
पनवाड़ी को कभी नही भूलेंगे साले”। अल्फ़ाज़ भाई ने कहा, “चतुर्वेदी साहब चाय पीने ज़रूर आना फिर कभी”
हमने कहा, “बरेली से स्पेशल चाय पीने आएंगे भाई
तुम्हारी दुकान पर।। चलते हैं फिर मिलेंगे।
सब लोग जाने लगे
और पनवाड़ी पिंटू और अल्फ़ाज़ ट्रैन तक हमे छोड़ने आए और फिर अलविदा कह दिया सदा के
लिए।खुशी हमे इस बात की थी कि लवीना उस कीचड़ से बाहर निकल चुकी थी, और अब वो खुश थी हमारे साथ थी, और खुद को महफूज़ महसूस कर रही थी, रास्ते मे हमने चाय पी और पकोड़े खाए, उसने मुझे बताया कि बचपन मे मां प्याज
के पकोड़े बनाती थी रविवार को तो हम सब मिल कर खाते थे।
मैंने उसे बताया
कि , “तुम्हारे नए माता पिता तुम्हारा
इंतेज़ार कर रहे हैं”
वो मायूस हो गई
और बोली ,
“अगर उन्हें पता
चला मेरी असलियत तो वो मुझे कभी अपने घर मे नही रखेंगे”
हमने कहा, “तुम बेफिक्र रहो, वो हमेशा तुम्हे अपनी बेटी की तरह
रखेंगे”
वो फिर बोली , “चतुर्वेदी जी आप बहुत नेक दिल हैं आपने
मुझे उस दलदल से निकाल कर मेरी ज़िंदगी बचा ली, मगर हम आपसे एक राज़ की बात बताना चाहते हैं जो
कि बहुत ज़रूरी है।
हमने उसके होंठो
पर उंगली रखी और उसे चुप रहने को कहा, “की हमे कोई राज़
नही सुनना,
तुम जैसी हो हमे
पसंद हो”।
हम घर पहुंच गए,हमने अपने माता पिता को उनकी बहू से
मिलवाया हमने कहा,
“क्यों माँ कहा
था ना नए साल पर बहु ले कर आऊँगा”
माँ ने नई बहु
की आरती उतारी और कहा, “इस से सुंदर
लड़की मैंने आज तक नही देखी, पूछा तुम्हारा
नाम क्या है बेटी??
उसने कहा,”जी लवीना”मां ने कहा “बहुत ही प्यारा नाम है,।पिता जी को भी अपनी बहू पसंद आई, और जल्द ही हम दोनों की शादी हो गई,शादी के फेरे लेने से पहले लवीना फिर
हमसे बोली कि हमे एक राज़ की बात कहनी है तुमसे इससे पहले की देर हो जाए।
हम उसे मण्डप से
दूर ले गए और बोला,
“घबराओं नही मैं
तुम्हारे सब राज़ जानता हूँ , तुम्हारी माँ ने
मुझे मरने से पहले बता दिया था कि तुम “एड्स की मरीज़ हो” और तुम्हारे पास लगभग दो
साल का वक़्त है।
वो ज़ोर ज़ोर से
रोने लगी और कहने लगी, “जब सब कुछ जानते
हो तो हमसे शादी क्यों कर रहे हो ?”
हमने कहा , “क्योंकि हम तुमसे मोहबत करते हैं लवीना
,हम तुम्हारे जिस्म से नही तुम्हारी रूह
से प्रेम करते हैं।
लवीना हमे गले
लगाती है और मानो हमे हमारी मंज़िल मिल गई हो, डर था सिर्फ उसे खो देने का, जो दिन रात हमे परेशान कर रहा था। कुछ
ही देर में हमारी शादी हो गई और सारा परिवार खुश था।
शादी होने के
बाद हमने बरेली में ही अपना खुद का कपड़े का धंधा शुरू कर लिया, लवीना भी दिन रात हमारे साथ रहती थी और
हम दोनों खूब पैसे कमाते थे, हमने उन पैसों
से नया घर बनवाया,
भारत भृमण पर गए।
ज़िन्दगी के हर मजे ले लिए, सिनेमा देखने
जाना,
महंगे होटलो में
खाना खाना,
और दूर दूर तक
हम अपने स्कूटर पर घूमें। लवीना को हर तरह के आयुर्वेदिक दवाइयों से हमने उस रोग
से लड़ने की शक्ति दी,
जिंदगी के हर वो
चीज़ जो लवीना करना चाहती थी, खाना चाहती थी, पहनना चाहती थी, वो सब उसने की आखिर वो दिन आ ही गया जब
उसे हमसे दूर जाना था, क्योंकि ये
बीमारी लाइलाज है,इससे बचना सम्भब नही था।
मुझे बहुत गहरा
दुख था,
मगर लवीना हर वो
चीज़ कर पाई जो उसे करना था ज़िन्दगी में मुझे इस बात की खुशी थी। 3 साल तक लवीना
हमारे साथ रही और तीसरे साल के अंत मे अब वो हमें अलविदा कह कर चली गई, माँ पिता जी को उसकी मौत का राज़ कभी
पता नही चल सका,
बूढ़े हो चुके मा
बाप की हमने बहुत सेवा की , मगर धीरे धीरे
सब हमे अकेला छोड़ कर जाते गए,पहले माँ फिर
पिता जी। घर पर हम अकेले ही रह गए थे, मन नही लगता था, तो हमने सोचा ये कहानी लिख डालें, ताकि हमारी एक वेश्या से प्रेम गाथा को
पूरा जग सुन पाए,आपको हम पर तरस खाने की ज़रूरत नही है
कि हम अकेले रह गए हैं ,ऐसा नही है, हमने अपनी लवीना से वादा किया था कि हम
भी जल्द ही तुम्हारे पास आएंगे, ये फैसला हमने
सुहागरात वाले दिन ही ले लिया था, मुझे आसा है आप
समझ गए होंगे,
जल्द ही हमारा
वो सुनहरा दिन निकट आ रहा है, माँ पिता जी और
लवीना हमारा इंतज़ार कर रही है। चलता हूँ अपना ख्याल रखिए, मोहबत कीजिए, हवस के पुजारी मत बनिए, सच्चा प्यार कीजिए।
written by-
$andy
poet
(The Poet of Love, Romance, Spirituality, Motivation,&
Science fiction)
No comments:
Post a Comment