आज से हजारों साल पहले नासरत में गेब्रियल नामक एक स्वर्गदूत ने मरियम को दर्शन दिया और कहा कि तू पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी, उसका नाम यीशु रखना। उस समय मरियम यूसुफ की मंगेतर थी। यह खबर सुनते ही यूसुफ ने बदनामी के डर से मरियम को छोड़ने का मन बनाया। लेकिन उसके विचारों को जानकर उसी स्वर्गदूत ने यूसुफ से कहा कि मरियम पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती है उसे अपने यहां लाने से मत डर। स्वर्गदूत की बात मानकर यूसुफ मरियम को ब्याह कर अपने घर ले आया। उस समय नासरत रोमन साम्राज्य का हिस्सा था। मरियम की गर्भावस्था के दौरान ही रोम राज्य की जनगणना का समय आ गया। तब नियमों के चलते यूसुफ भी अपनी पत्नी मरियम को लेकर नाम लिखवाने येरूशलम के बैतलहम नगर को चला गया। सराय में जगह न मिलने के कारण उन्होंने एक गौशाले में शरण ली। बैतलहम में ही मरियम के जनने के दिन पूरे हूए और उसने एक बालक को जन्म दिया और उस बालक को कपड़े में लपेटकर घास से बनी चरनी में लिटा दिया और उसका नाम यीशु रखा। पास के गड़रियों ने यह जानकर कि पास ही उद्धारकर्ता यीशु जन्मा है जाकर उनके दर्शन किए और उन्हें दण्डवत् किया। यीशु के जन्म की सूचना पाकर पास देश के तीन ज्योतिषी भी येरूशलम पहुंचे। उन्हें एक तारे ने यीशु मसीह का पता बताया था। उन्होंने प्रभु के चरणों में गिर कर उनका यशोगान किया और अपने साथ लाए सोने, मुर व लोबान को यीशु मसीह के चरणों में अर्पित किया। इस तरह हुआ इसाई धर्म के संस्थापक महान यशु मसीह का जनम ठीक इसी तरह उनके जनम के कई वर्ष पूर्व हुआ था जनम महान गौतम बुद्धा का । गौतम बुद्ध का जनम 563 ईसा पूर्व और मृत्यु: 483 ईसा पूर्व । इतिहास के सबसे प्रभावशाली महान एक महान व्यक्ति है तथा वे विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक बौद्ध धर्म के प्रवर्तक एवं संस्थापक थे। उनका जन्म ईसा पुर्व 563 में लुबिंनी, नेपाल में तथा महापरिनिर्वाण कुशिनगर, भारत में हुआ था। वे क्षत्रिय कुल के शाक्य राजा शुद्धोधन के घर राजकुमार के रूप में जन्में थे | सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध बन गए। आज पुरे संसार में करीब 180 करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है और विश्व की आबादी का 25% हिस्सा है। ऐसे ही महान सिख धर्म अस्तित्व में आया , महान गुरू नानक देव जी का जनम 15 अप्रैल 1469 को हुआ सिखों के प्रथम गुरु (आदि गुरु) हैं। इनके अनुयायी इन्हें गुरु नानक, गुरु नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते हैं। गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे।इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में 15 अप्रैल, 1469 में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। इनके पिता का नाम कल्यानचंद या मेहता कालू जी था, माता का नाम तृप्ता देवी था। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर ननकाना पड़ गया। इनकी बहन का नाम नानकी था।बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा। ७-८ साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्रापति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें सम्मान घर छोड़ने आ गए। तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं घटी जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य ऴ्यक्तित्व मानने लगे। बचपन के समय से ही इनमें श्रद्धा रखने वालों में इनकी बहन नानकी तथा गाँव के शासक राय बुलार प्रमुख थे।इनका विवाह सोलह वर्ष की अवस्था में गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी नामक स्थान के रहनेवाले मूला की कन्या सुलक्खनी से हुआ था। ३२ वर्ष की अवस्था में इनके प्रथम पुत्र श्रीचंद का जन्म हुआ। चार वर्ष पीछे दूसरे पुत्र लखमीदास का जन्म हुआ। दोनों लड़कों के जन्म के उपरांत १५०७ में नानक अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर मरदाना, लहना, बाला और रामदास इन चार साथियों को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़।नानक सर्वेश्वरवादी थे। मूर्तिपूजा को उन्होंने निरर्थक माना। रूढ़ियों और कुसंस्कारों के विरोध में वे सदैव तीखे रहे। ईश्वर का साक्षात्कार, उनके मतानुसार, बाह्य साधनों से नहीं वरन् आंतरिक साधना से संभव है। उनके दर्शन में वैराग्य तो है ही साथ ही उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थितियों पर भी नजर डाली है। संत साहित्य में नानक उन संतों की श्रेणी में हैं, जिन्होंने नारी को बड़प्पन दिया है।इनके उपदेश का सार यही होता था कि ईश्वर एक है उसकी उपासना हिंदू मुसलमान दोनों के लिये है। मूर्तिपुजा, बहुदेवोपासना को ये अनावश्यक कहते थे। हिंदु और मुसलमान दोनों पर इनके मत का प्रभाव पड़ता था। लोगों ने तत्कालीन इब्राहीम लोदी से इनकी शिकायत की और ये बहुत दिनों तक कैद रहे। अंत में पानीपत की लड़ाई में जब इब्राहीम हारा और बाबर के हाथ में राज्य गया तब इनका छुटकारा हुआ।महान धर्म संस्थापको में एक नाम आता है महान हज़रत मुहम्मद काहज़रत मुहम्मद "मुहम्मद इब्न अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल मुत्तलिब" का जन्म सन ५७० ईसवी में हुआ था। इन्होंने इस्लाम धर्म का प्रवर्तन किया। ये इस्लाम के सबसे महान नबी और आख़िरी सन्देशवाहक माने जाते हैं जिन को अल्लाह ने फ़रिश्ते जिब्रईल द्वारा क़ुरआन का सन्देश' दिया था। मुसलमान इनके लिये परम आदर भाव रखते हैं। ये इस्लाम के आख़री ही नहीं बल्कि सबसे सफल संदेशवाहक भी माने जाते है। मुहम्मद वह श्ख़स हैं जिन्होने हमेशा सच बोला और सच का साथ दिया। सूची में एक महान नाम है मूसा का मूसा यहूदी, इस्लाम और ईसाई धर्मों में एक प्रमुख नबी (ईश्वरीय सन्देशवाहक) माने जाते हैं। ख़ास तौर पर वो यहूदी धर्म के संस्थापक और इस्लाम धर्म के पैग़म्बर माने जाते हैं। कुरान और बाइबल में हज़रत मूसा की कहानी दी गयी है, जिसके मुताबिक मिस्र के फ़राओ के ज़माने में जन्मे मूसा यहूदी माता-पिता के की औलाद थे पर मौत के डर से उनको उनकी माँ ने नील नदी में बहा दिया। उनको फिर फ़राओ की पत्नी ने पाला और मूसा एक मिस्री राजकुमार बने। बाद में मूसा को मालूम हुआ कि वो यहूदी हैं और उनका यहूदी राष्ट्र (जिसको फरओ ने ग़ुलाम बना लिया था) अत्याचार सह रहा है। मूसा का एक पहाड़ पर परमेश्वर से साक्षात्कार हुआ और परमेश्वर की मदद से उन्होंने फ़राओ को हराकर यहूदियों को आज़ाद कराया और मिस्र से एक नयी भूमि इस्राइल पहुँचाया। इसके बाद मूसा ने इस्राइल को ईश्वर द्वारा मिले "दस आदेश" दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है।इतिहास में एक महान पात्र जो अक्सर मुझे प्रेरणा देता है वो है कृष्णा,कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार हैं। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। जब-जब इस पृथ्वी पर असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं। वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक तेईस अवतारों को धारण किया। इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण को ही माने जाते हैं। गौतम बुद्ध भी उनका ही एक अवतार हैं , श्री कृष्ण का जन्म यदुवंशी क्षत्रिय कुल में राजा वृष्णि के वंश में हुआ था ।
सन्देश में एक ही बात दोहराई जाएगी
1. सभी मनुष्यों का आज से एक धर्म होगा
2. सभी मनुष्य एक इश्वर की अराधना करेंगे
3. इंसान खुद को एक आत्मा के रूप में जानेंगे
4. कोई इंसान छोटा बड़ा नहीं होगा
5. हर मनुष्य को रहने खाने ,सोने , पढने , प्रेम करने , और खुश रहने का अधिकार होगा
6. हर मनुष्य बराबर काम करेगा
7. पूरी धरती पर एक देश होगा
8. पूरी धरती एक ही धर्म ग्रन्ध को मानेगी, जिसे सभी धर्मो के ग्रंथो से मिला कर बनाया जाएगा
9. आने वाले समय में मनुष्य बाहरी दुनिया से मिलेगा , तो उसे एक जुट होना होगा
10. कोई मनुष्य किसी मनुष्य के प्रति नीच भाव नहीं रखेगा ,प्रेम का प्रसार ही मुख्य कार्य होगा
एक नया मानव धर्म की स्थापना होगी और धरती पर शान्ति और प्रेम का प्रसार होगा.. वो जल जो इश्वर ने सभी एक एक इंसान को पिलाया वो जल क्या था , उसे पिलाने के पीछे इश्वर का क्या मकसद था वो आप जानेंगे इस कहानी के दुसरे हिस्से में ..
आपका अपना कवि
$andy poet