प्रीतम लाल बिहारी रोज़ की तरह सुबह सवेरे अपनी पत्नी के हाथो टिफिन ले कर हड़बड़ी में घर से निकलते हैं और अपने पुराने जान से प्यारे बजाज स्कूटर पर सवार हो कर बेरंग पुराना हेलमेट लगा कर निकल पड़ते हैं ऑफिस की ओर, घर से निकले ही थे की पीछे से श्रीमती पारवती लाल बिहारी की तीखी आवाज ,” शाम को आते हुए आम का अचार लेते आना बिहारी जी, अम्मा का आचार खाने का मन हो रहा था“ बिहारी जी माथे में सिकज कसते ही ताना मारते हैं मन ही मन ,स्कूटर चलाते चलाते ,” सबको बता दे चीख चीख के की अबकी बार अम्मा फिर दादी बनने वाली है, आचार ले आना.. सरफिरी औरत....बिहारी जी की नोक झोक अक्सर श्रीमती से हो जाती है , और होनी भी चाहिए येही तो मज़ा है विवाहिक जीवन का.. बिहारी जी स्कूटर की फटफटी आवाज बजाते हुए चोराहे में पहुंचते हैं , लाल बत्ती पे रुक जाते हैं , बगल में देखते हैं तो चौबे जी अपनी बाइक पर ठीक उसी तरह माथे में सिकज लिए रुके हुए हैं लाल बत्ती पे , साथ ही अपनी मारुती में ब्रिजेश पाण्डेय जी उसी बत्ती पे , तीनो एक दूसरे को देख बनाबटी हस्सी हस देतें हैं I बिहारी जी को जलन है चौबे जी की बाइक से , तो वहीँ चौबे जी की पत्नी बार बार पाण्डेय जी की नयी नवेली मारुती की तारीफ कर कर के चौबे जी का भेजा नौचती रहती है I पांडये जी मारुति से पान थूकते हुये इशारा करते हैं और बिहारी जी पर व्यंग्य कसते हुये कहते हैं ,” का हुआ बिहारी जी तनिक मुस्कुरा दीजिये, लगता है भोजाई ने आज फिर सुताई की है जम के’ चौवे जी भी खिल खिला उठे , बत्ती हर्री हुई और लो जी अभी चलने ही वाले थे की एकाएक सामने से तेज़ ट्रक भागता हुआ दाहिनी और से निकला और एक साइकिल पर जाते हुये युवक को कुचलता हुआ आगे निकल गया , भीड़ इकट्ठी हो गयी , पाण्डेय जी तो गाडी से उतरने में संकोच करते हुये निकल लिए पतली गली से , वहीँ बिहारी और चौबे जी ने अपनी इंसानियत दिखाते हुये अपने वाहन बगल में खडे किये और भीड़ में शामिल हो गये.. कुछ पल शौंक व्यक्त किया और पुलिस के आते ही वो दोनों भी ट्रक वाले को दो चार गाली सुना अपने ऑफिस के लिए रवाना हो गये..
चौबे जी ,” क्या बताएं बिहारी जी भरी जवानी में एक नौज़बान लड़का मारा गया, बहुत दुःख होता है ऐसी खबरें सुन कर, देख कर” बिहारी जी उदास चेहरा बनाते हुये ,” जीवन है चौबे जी मृत्यु का कोई अनुमान लगा पाया है आजतक “
शाम को बिहारी जी घर पहुंचते हैं हाथो मे आम का आचार , “ पार्वती... अम्मा ... कहाँ हो भई.. ये लो आचार आ गया ...
पार्वती, “ हाये गज़ब हुई गवा अम्मा , हमार मंगवाई पहली चीज़ लायें हैं आज बिहारी जी “ ..
वहीँ चौबे जी घर जाते ही बीवी रेशमा को आते ही सुबह की सड़क दुर्घटना बताते हैं और लो जी शुरू हो गया लेक्चर ,” तभी तभी... चौबे जी आपको हम रोज़ रोज़ समझाते हैं की गाडी ले लीजिये दुपहिया बाहन में जान का खतरा होता है, देखा नहीं पाण्डेय जी कितने आराम से मारुति में जाते हैं ... वहीँ गाडी से आराम से सफ़र कर पाण्डेय जी घर पहुंचते हैं, और गेट पर हॉर्न बजाते हैं ,बेटा हितेश दरवाजा खोलता है और गाडी पार्क कर घर में प्रवेश करते हैं , पत्नी शर्मीली है , मेरा मतलब नाम शर्मीली है ,वेसे तो बहुत खूंखार है ..भागते हुये शर्मीली आती है और तपाक से बोल उठती है “ पाण्डेय जी खबर सुनाते हैं आपको , त्रिलोकीनाथ का छोटा भाई अनिरुध आज साइकिल से जा रहा था और एक ट्रक वाले ने उसे ........
पाण्डेय जी ,” मालूम है , भेजा ना चाटो भाग्यबान खाना लगाओ..”
“पतिदेव क्रोधित काहे होते हैं, लगाते हैं .. हाथ मुह धो लीजिये “शर्मीली बात काटते हए बोली.. रात हो गई सब के सब आराम से चैन की नींद सो गये पर प्रीतम लाल बिहारी कुछ परेशान थे , बगल में सोयी पारवती पूछती है , “ क्या हुआ जी आज बहुत खामोश से लग रहे हैं ??” “ कुछ नहीं पारवती सोच रहे थे की ज़िन्दगी का कोई भरोषा नहीं है , कब खत्म हो जाए ,” पार्वती , प्रीतम के मुह पे हाथ रखते हुये बोल उठती है ,” केसी बातें कर रहे हैं बिहारी जी ,मरे हमारे दुश्मन, सो जाईये सुबह ऑफिस नहीं जाना है का “
चारो तरफ अँधेरा और अम्मा के खर्राटो की आवाज ओर भी खौफ़नाक, रात के 12 बज चुके हैं और प्रीतम लाल बिहारी भी आखिर सो ही गये, एकाएक सामने वाले घर से कुछ आवाजें आने लगती हैं ,
“ पारवती ...अरी ओ सुनती हो क्या .. उठो .. पाण्डेय जी के घर से कुछ आवाजें आ रही हैं , पर कुम्भकरण की नींद सोयी हुई थी पारवती तो ...
चप्पल पहन कर प्रीतम खुद ही जा पहुँचता है अकेले पाण्डेय के घर.. पाण्डेय के घर की बत्ती जल रही थी , दरवाजा खटकाया तो बेटा खोलता है , ,” क्या हुआ बेटा सब ठीक तो है ,
हितेश ,” अंकल अच्छा हुआ आप आ गये देखिये ना पापा को क्या हो गया , नींद में थे और एक दम से उठे और स्टडी टेबल पर बैठ कर कागजों पर लिखते जा रहे हैं .. हमारी बात सुन ही नहीं रहे ..”
शर्मीली भागती हुई आती है , “ देखिये ना बिहारी जी आधी रात को पाण्डेय जी को क्या शौंक चढ़ा है लिखने का , सुन ही नहीं रहे हमारी बात ...बिहारी अन्दर गया पाण्डेय लगातार कागज़ पर लिखता जा रहा था .. वो ये सब देख कर चौंक गया .. उसने डरते हुये , पाण्डेय को छुआ ,” पाण्डेय भाऊ , ठीक तो हो ना क्या हुआ , तनिक बताओ तो .. “ मगर पाण्डेय भाऊ तो देखते ही देखते पांच पेज लिख गये ... बिहारी जी बोले इन्हे लिखने दीजिये अन्दर बंद कर दीजिये आप सब बाहर सो जाईये सुबह ही अब बात हो पाएगी भाऊ से , लगता है बहुत परेशान हैं आज ... परिवार उन्हे अकेला छोड़ कर बाहर सो जाता है और कमरे को कुंडी लगा देते हैं .. बिहारी उन्हे दिलाशा देते हुये घर जा कर सो जाता है , सुबह होती है तीनो पडोसी फिर वहीँ ट्रैफिक लाइट्स पर मिलते हैं , पाण्डेय जी पान थूकते हुए वोही अंदाज़ में , “ क्या हुआ बिहारी बीवी से सुताई.... चौबे जी बात काटते हुये बोल उठे ,” अरे बिहारी को छोड़िये आप बताइये आपको क्या हुआ था कल रात ??? पाण्डेय जी,” कुछ भी तो नहीं, हमे क्या होगा हर कोई हमसे सुबह से यही पूछे जा रहा है “ अरे भाई कल रात हम आराम की नींद सोये , हमे कुछ नहीं हुआ था..
बिहारी और चौबे जी हैरान ... ऑफिस का वही थकान भरा दिन , शाम को बीवी की कहा सुनी.. और फिर रात ढल आई ... अबकी बार 12 बजे तक सब ठीक था .. बिहारी जी खिड़की से बाहर देखते रहे आज कुछ नहीं हुआ .. कुम्भकरण बीवी सो चुकी थी .. अम्मा की खर्राटे की आवाज़ ..और देखते ही देखते सुबह हो गयी .. बिहारी जी उठते हैं बीवी को उठाते हैं .. और चाय बनाते हैं ... और एकाएक उनकी नज़र स्टडी टेबल पर गयी , देख कर चौंक जाते हैं , पारवती सुस्ताते हुये बोली ,” बिहारी जी ई का कल रात आप पढ़ाई कर रहे थे का ... क्या गंदगी मचा रखी है स्टडी टेबल पर ... टेबल पर ढेरो कागज़ पडे थे , लिखे हुये जिनमे नीले रंग के पेन से हिंदी भाषा में लिखा गया था , लिखाई देखी तो बिहारी जी चौंक गये , ये तो उनकी ही लिखाई थी .. अब तो बात परेशानी की थी .. वोही लाल बत्ती पर .. पाण्डेय जी व्यंग्य कसते हैं .. और इस बार चौबे जी बिहारी का चेहरा देख कर ही हस देते हैं ... बिहारी का चेहरा मुरझाया सा .. पुराने हेलमेट में मानो गोभी का फूल रखा गया हो ..जो काला पड़ चुका हो ... अगली रात यही घटना चौबे जी के साथ घटती है , .. वोही रात 12 बजे के बाद ना जाने क्या हो जाता था की , वो तीनो खुद ब खुद उठ कर लिखने लग जाते थे ,हर तीन दिन के अंतराल पर ये घटना तीनो में से किसी एक के साथ घटती, घर वाले परेशान हो गये थे तीनो के , मानो उन्हे लिखने का दौरा पड़ता हो हर रात .. घर वाले चुप थे उन्हे नहीं मालुम था की ये घटना और किसी के साथ भी घटती है , उन्हे लगा के घर के बडे मर्द हैं , हो सकता है , कुछ ऑफिस का काम करते होंगे रात को ... पर काम एक दिन का होता है दो दिन का .. एक महिना हो गया .. कागजों के ढेर लग गये.. एक दिन पारवती शर्मीली , और रेशमा तीनो ने घर के मर्दों का राज़ एक दूसरे से खोल ही डाला ..
रेशमा चौंकते हुये बोली ,” क्या कहा पाण्डेय जी और प्रीतम जी दोनों भी ... ??? “
शर्मीली अपनी नोकझोक भरे अंदाज़ में बोली , “ दीदी लगता है किसी ने हमारे मर्दों पे टूना टोटका कर दिया है “ पारवती ,” नहीं नहीं मुझे इन तीनो की मानशिक हालत ठीक नहीं लगती ,आदमी तभी लिखता है जब वो किसी से दिल की बात ना कह पाए , वो कलम को अपना साथी मानने लगता है फिर ..हमे किसी मनोविज्ञानिक को बुलाना चाहिए ...
वहीँ कोने में बेठी मुरझाई हुई अम्मा बीच में बोल उठती है ,” साया है साया काला साया किसी आत्मा का .. मेरी बात मानो .. तांत्रिक बाबा को बुला लाओ सबकी अकाल ठिकाने आ जाएगी “
पारवती नए ख्यालो की थी ,” अम्मा तुम तो चुप ही करो “
शर्मीली ,” कभी तुमने पढने की कोशिश की वो लिखते क्या हैं ???
रेशमा एकदम से बोली ,” अरे सारे कागज़ बंद अलमारी में रख कर जाते हैं पढेंगे केसे ..???
तीनो मर्द एक बार फिर ट्रैफिक लाइट्स पर मिलते हैं ,”
बिहारी जी,” चौबे जी वंदना की निकुम्भ से शादी हो गयी आगे, पर आगे क्या हुआ मालूम है ???
पाण्डेय जी,” अरे क्या बात कर रहे हो ?? वंदना की शादी हो गयी निकुम्भ से ??? कब केसे ??
चौबे जी एकाएक बोल उठे ,” उसका दो महीने का लड़का भी हो चुका है पाण्डेय जी बिहारी जी ...”
पाण्डेय बिहारी एकाएक फिर चौंके ,” अरे कमाल करते हो यार बताया नहीं तुमने ... अब बता रहे हो .. वो वापिस वोही हस्सी मजाक कर रहे थे .. और मज़ाक में बात चल रही थी उस कहानी की जिसे वो तीनो मिल कर पूरा कर रहे थे , दरअसल उन तीनो को एहसास हो चुका था की जो वो हर रात को लिखते हैं अनजाने में असल में वो एक ही कहानी है .. जिसकी शुरू का हिस्सा पाण्डेय जी लिख रहे हैं .. मध्य का प्रीतम लाल बिहारी जी और आखिर का हिस्सा चौबे जी के हाथ लगा है , उन तीनो को बिलकुल भी एहसास नहीं की ये कहानी कोन उनसे लिखवा रहा है ,केसे उनके दिमाग में ये कहानी आई .. पर इतना तो मानना पड़ेगा तीनो आनंद से इस कहानी को बिना डरे लिख रहे हैं... पूरे चार महीने बाद चौबे जी ने कहानी का अंत सुनाया मगर कहानी तो लगभग 900 पेज लम्बी बन चुकी थी.. अब तीनो में घमंड आने लगा की तीनो के पास कहानी के एक तिहाई हिस्से हैं पर लेखक का नाम तो एक ही होगा .. या तो ब्रिजेश पाण्डेय ..प्रीतम लाल बिहारी .. या अखिलेश चौबे ... बड़ी समस्या हुई ..मुद्दा कचहरी तक चला गया की कहानी का लेखक कोन होगा ... आखिर तीनो के पास एक तिहाई हिस्सा था ... कोर्ट का फैसला हुआ की तीन किताबें छपवाई जाएँ वॉल्यूम 1 वॉल्यूम 2 और वॉल्यूम 3 तीनो के लेखक अलग अलग होंगे.. तीनो ने कुछ दिन तक विचार विमर्श किया और निर्णय लिया.. की कोर्ट का फैसला माना जाए ... किताब छपने को गयी प्रिंटिंग प्रेस में ना जाने रातो रात क्या कुछ हुआ .. किसी को नहीं मालुम .. किताब का पहला एडिशन छपा पूरी कहानी 900 पेज की .. और पूरी दुनिया देख कर दंग रह गयी ..लेखक का नाम देख कर .. लेखक का नाम ना तो ब्रिजेश पाण्डेय था .. ना ही प्रीतम लाल बिहारी और ना ही अखिलेश चौबे ....लेखक का नाम था ..
“अनिरुध एक आजाद अमर लेखक” अनिरुध त्रिलोकीनाथ का छोटा भाई जो सड़क दुर्घटना में मारा गया था .. एक लेखक बनने का सपना लिए ही एक नौज्बान जिसकी वक़्त से पहले ही सपने पूरे करने से पहले ही उसकी मौत हो जाती है .. अनिरुध की आत्मा भटकती रही ... पाण्डेय जी चौबे जी .. और बिहारी जी के शरीर का सहारा ले कर अपना अधूरा सपना पूरा कर गयी ....किताब का सच पूरे जहां को पता चलता है , की केसे इस किताब को लिखा गया .. हाथ बेशक पाण्डेय ,चौबे और बिहारी के थे ,लेकिन उनके अन्दर रूह अनिरुध की थी ,सोच अनिरुध की थी , और आखिर किताब पूरे विश्व में छपी, बहुत लोकप्रिय हुई ,बेस्ट ऑथर अवार्ड भी दिया गया ,तीनो लेखक किताब ले के त्रिलोकीनाथ के घर गये,किताब देखते ही उनकी आँखों से अनिरुध का नाम पड़ते ही अश्रु बह आये ... और इस तरह एक लेखक अमर हो गया . ..सपने देखिये ..और लगातार उन्हे पूरा करने का प्रयतन करते रहिये ...आपकी किस्मत आपको उन सपनो से ज़रूर मिलवाएगी ....वेशक मौत भी क्यूँ ना आ जाए ..आशा है आपको कहानी अच्छी लगी होगी .चलता हूँ जल्द ही लौटूंगा एक नयी कहानी के साथ ...कहानिया ऐसी जो आपको जीना सिखाती हैं I
आपका अपना कवी..
$andy poet
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