Thursday, 31 August 2017

Situations affects our thoughts :)

हमारे विचार हमारी परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। एक उच्च पद पर बैठे मनुष्य के विचार , एक निम्न पद पर बैठे मनुष्य से भिन्न हो सकते हैं। उदहारण के लिए अंधेरी रात में एक ओटो रिक्शा सड़क पर जा रहा है, वहीं एक अंधेरी सुनसान सड़क पर एक मनुष्य किसी वाहन का इंतज़ार कर रहा है, लाख कोशिश करने के बाद भी कोई वाहन उसे घर तक जाने को नही मिल रहा , वहीं एक दूसरा मनुष्य ऑटो रिक्शा के ठीक पीछे अपने वाहन में सफर कर रहा है। ऑटो रिक्शा का चालक जब सड़क पर खड़े मनुष्य को देखता है तो वह एक दम से चलते चलते ब्रेक लगाता है। जिससे होता ये है कि ऑटो के ठीक पीछे गाड़ी में आता मनुष्य उससे बाल बाल टकराने से बचता है, जिससे निसंदेह उसके मन में ऑटो वाले के लिए बुरे विचार और मुख से अपशब्द निकलते हैं वहीं जो मनुष्य कब से किसी वाहन का इंतज़ार कर रहा था, ऑटो के रुकने से उसके मन मे ऑटो वाले के लिए अच्छे विचार और मुख से धन्यबाद जैसे अच्छे शब्द निकलते हैं। इस तरह अमीर गरीब दोनो के विचारों में अंतर है। यही कारण है कि समाज मे हर कोई एक जैसा नही, एक दूसरे की परिस्थिति समझ कर उसके विचारों का सम्मान करना चाहिए ।
~$andy poet

Monday, 21 August 2017

आज ईश्वर ने धरती को जलमग्न क्यों किया ?? :)

ईश्वर सबसे महान है , और ये बात अक्सर हम इंसान भूल जाते हैं और खुद को महान समझने लगते है,हम ईश्वर की पैदाइश हैं। उसने हमें बनाया है, उसने ही हमारे कबीलों को हर तरफ दुनिया मे फैलाया है , उसने ही हमे ये धरती रहने को दी है, उसके एक इशारे से वो तूफान ले आता है, उसके एक इशारे से प्रचंड बारिश होती है देश तबाह हो जाते हैं । उसका क्रोध प्रकोप जब इंसानो पर पड़ा है इंसानो ने उसकी ताकत को महसूस किया है वो चाहे आग के गोले बरसाए , चाहे हिम युग ले आये, प्लेग जैसी भयानक बीमारी फैलाए , या पूरी की पूरी पृथ्वी को जलमग्न कर के उसका नाश कर दे, उसकी दृष्टि में जब इंसान उसके कहने अनुसार नही चलता तो प्रलय आती है , आज का दिन भी कुछ ऐसा ही था जब मुझे एहसास हुआ कि किस तरह हम ईश्वर को दिन प्रतिदिन अनदेखा किए जा रहे थे , लोग अपने कामो में इतने व्यस्त थे कि उनके पास ईश्वर से बाते करने की फुरसत ही नही, या यूं कह ले कि वो खुद को ईश्वर से आगे ले जाना चाहते हैं । ऐसी इंसानियत देखने को मिल रही थी कि कोई किसी से मतलब नही रखता, घोड़े गधो की तरह दिन रात भाग दौड़ , दफ्तर से घर और घर से दफ्तर । ईश्वर की दृष्टि में समाज ऐसा ना था वो चाहता था कि सब लोग प्रेम से एक दूसरे का हाल चाल पूछते दुनिया मे जीवन व्यतीत करें । उसके लिए ईश्वर धरती पर चमत्कार करता है प्रलय लाता है ताकि हम इंसानो को एक दूसरे की एहमियत का एहसास हो सके। जब आज बाढ़ आई तो सब इंसान एक दूसरे के स्नेही हो गए ,अनजान लोग अनजान लोगों से हस कर बातें कर रहे थे , ज्युकर आज सब रास्ते मे फंस गए थे, गाड़िया ईश्वर ने सबकी बन्द कर दी थी, पानी आधे शरीर तक था पर लोग खुश थे , क्योंकि वो ऐसी बकवास ज़िन्दगी ज़ी कर ऊब चुके थे उन्हें कुछ पल ऐसे चाहिए थे जैसे उन्होंने बचपन मे बिताये थे, ईश्वर ने सबको आज वैसे ही पल दिए ताकि सब लोग दफ्तर की थकान से दूर कुछ पल मजा कर सके समझ सकें कि दफ्तर की दुनिया प्रोजेक्ट्स ही सब कुछ नही होती , इससे बाहर भी दुनिया है, जिसमे बहुत सकून है । ईश्वर ने तो धरती को सिर्फ एक ही बार जल मगन किया था जब उसने धरती के चंद अच्छे इंसानो को छोड़ बाकी पूरी दुनिया को पानी मे जलमग्न कर दिया था बाइबिल के उत्पति अद्याय में उसने साफ साफ लिखा है
तब मेरी जो वाचा तुम्हारे और सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के साथ बान्धी है; उसको मैं स्मरण करूंगा, तब ऐसा जलप्रलय फिर न होगा जिस से सब प्राणियों का विनाश हो।
जिससे साफ जाहिर होता है ईश्वर हमे डरा सकता है मगर हमे खत्म कभी नही करेगा दुबारा। वो सिर्फ हमे एक साथ देखना चाहता है। और खुश देखना चाहता है। ऐसा हो क्यों ना हम हर रोज लोगो की मदद इसी तरह करे जब हम प्रलय आने पर करते है तो जीवन कितना आनंदमय हो जाएगा। कितना अच्छा रहे अगर हर रोज हम उस बचपन वाली खुशी को ज़ाहिर होने दें, किसी से बिना हिचकाए बात करे और "लोग क्या कहेंगे "वाला ख्याल मन से निकाल कर मस्त हो कर ज़िन्दगी के हर पल का मज़ा ले। ईश्वर धरती को अब कभी जलमग्न नही करेगा पर आज जो उसने अपना प्रकोप दिखाया है । हर महंगी से महंगी गाड़ी को उसने डुबाया है हर अमीर को नंगे पैर कीचड़ में चलवाया है, लोगो को हसाया है, तो कही रुलाया है ये सब इसीलिए हुआ कि ईश्वर बताना चाहता है कि मैं आज भी विद्यमान हूं। मैं आज भी तुम्हारा पिता हूं, जिसने तुम्हे जन्म दिया है। ये प्रलय करना मेरा दाये हाथ का खेल है। ये दुनिया मेरे अनुसार चलती है ना कि तुम इंसानो के अनुसार। देखा ना किस तरह मैंने तुम्हें नंगे पैर चलने पर विवश किया, ऐसा नही की मैं तुमसे नफरत करता हूं, कारण बस यही था कि मैं तुम्हारा पिता हूं और तुम्हे दंड देना खुशी देना ये मेरा कर्तव्य और धर्म है।
$andy poet

Thursday, 10 August 2017

Holy Bible ( Matthew 13)

Holy Bible

Matthew 13

Parable of the Farmer Scattering Seed
13 Later that same day Jesus left the house and sat beside the lake. 2 A large crowd soon gathered around him, so he got into a boat. Then he sat there and taught as the people stood on the shore. 3 He told many stories in the form of parables, such as this one:

“Listen! A farmer went out to plant some seeds. 4 As he scattered them across his field, some seeds fell on a footpath, and the birds came and ate them. 5 Other seeds fell on shallow soil with underlying rock. The seeds sprouted quickly because the soil was shallow. 6 But the plants soon wilted under the hot sun, and since they didn’t have deep roots, they died. 7 Other seeds fell among thorns that grew up and choked out the tender plants. 8 Still other seeds fell on fertile soil, and they produced a crop that was thirty, sixty, and even a hundred times as much as had been planted! 9 Anyone with ears to hear should listen and understand.”

“Now listen to the explanation of the parable about the farmer planting seeds: 19 The seed that fell on the footpath represents those who hear the message about the Kingdom and don’t understand it. Then the evil one comes and snatches away the seed that was planted in their hearts. 20 The seed on the rocky soil represents those who hear the message and immediately receive it with joy. 21 But since they don’t have deep roots, they don’t last long. They fall away as soon as they have problems or are persecuted for believing God’s word. 22 The seed that fell among the thorns represents those who hear God’s word, but all too quickly the message is crowded out by the worries of this life and the lure of wealth, so no fruit is produced. 23 The seed that fell on good soil represents those who truly hear and understand God’s word and produce a harvest of thirty, sixty, or even a hundred times as much as had been planted!”

श्री कृष्ण के मत अनुसार ज्ञान और अज्ञान की परिभाषा


अध्याय 13 का श्लोक 7
(भगवान उवाच)

अमानित्वम्, अदम्भित्वम्, अहिंसा, क्षान्तिः, आर्जवम्,
आचार्योपासनम्, शौचम्, स्थैर्यम्, आत्मविनिग्रहः

अनुवाद: (अमानित्वम्) अभिमानका अभाव (अदम्भित्वम्) दम्भाचरणका अभाव (अहिंसा) किसी भी प्राणीको किसी प्रकार भी न सताना (क्षान्तिः) क्षमाभाव (आर्जवम्) सरलता (आचार्योपासनम्) श्रद्धाभक्तिसहित गुरुकी सेवा (शौचम्) बाहर-भीतरकी शुद्धि (स्थैर्यम्) अन्तःकरणकी स्थिरता और (आत्मविनिग्रहः) आत्मशोध।

अध्याय 13 का श्लोक 8
(भगवान उवाच)

इन्द्रियार्थेषु, वैराग्यम्, अनहंकारः, एव, च,
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्

अनुवाद: (इन्द्रियार्थेषु) इन्द्रियों के आनन्दके भोगोंमें (वैराग्यम्) आसक्तिका अभाव (च) और (अनहंकारः,एव) अहंकारका भी अभाव (जन्ममृत्युजरा व्याधिदुःख, दोषानुदर्शनम्) जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदिमें दुःख और दोषोंका बार-बार विचार करना।
अध्याय 13 का श्लोक 9
(भगवान उवाच)

असक्तिः, अनभिष्वङ्गः, पुत्रादारगृहादिषु,
नित्यम्, च, समचित्तत्वम्, इष्टानिष्टोपपत्तिषु

अनुवाद: (पुत्रादारगृहादिषु) पुत्रा-स्त्राी-घर और धन आदिमें (असक्तिः) आसक्तिका अभाव (अनभिष्वङ्गः) ममताका न होना (च) तथा (इष्टानिष्टोपपत्तिषु) उपास्य देव-इष्ट या अन्य अनउपास्य देव की प्राप्ति या अप्राप्ति में अर्थात् इष्टवादिता को भूलकर (नित्यम्) सदा ही (समचित्तत्वम्) चितका सम रहना।

अध्याय 13 का श्लोक 10
(भगवान उवाच)

मयि, च, अनन्ययोगेन, भक्तिः, अव्यभिचारिणी,
विविक्तदेशसेवित्वम्, अरतिः, जनसंसदि

अनुवाद: (मयि) मुझे (अनन्ययोगेन) अनन्य भक्ति के द्वारा (अव्यभिचारिणी) केवल एक इष्ट पर आधारित (भक्तिः) भक्ति (च) तथा (विविक्तदेशसेवित्वम्) एकान्त और शुद्ध देशमें रहनेका स्वभाव और (जनसंसदि) विकारी मनुष्योंके समुदायमें (अरतिः) प्रेमका न होना।

अध्याय 13 का श्लोक 11
(भगवान उवाच)

अध्यात्मज्ञाननित्यत्वम्, तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्,
एतत्, ज्ञानम्, इति, प्रोक्तम्, अज्ञानम्, यत्, अतः, अन्यथा

अनुवाद: (अध्यात्मज्ञाननित्यत्वम्) अध्यात्मज्ञानमें नित्य स्थिति और (तत्वज्ञानार्थदर्शनम्) तत्वज्ञानके हेतु देखना (एतत्) यहसब (ज्ञानम्) ज्ञान है और (यत्) जो (अतः) इससे (अन्यथा) विपरीत है (अज्ञानम्) वह अज्ञान है (इति) ऐसा (प्रोक्तम्) कहा है।

THE LOVE AGREEMENT

Hi friends, I want a little help from you. I have published a new book titled, "The love agreement" (एक प्रेम-समझौता).I am...

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