अध्याय 13 का श्लोक 7
(भगवान उवाच)
अमानित्वम्, अदम्भित्वम्, अहिंसा, क्षान्तिः, आर्जवम्,
आचार्योपासनम्, शौचम्, स्थैर्यम्, आत्मविनिग्रहः
अनुवाद: (अमानित्वम्) अभिमानका अभाव (अदम्भित्वम्) दम्भाचरणका अभाव (अहिंसा) किसी भी प्राणीको किसी प्रकार भी न सताना (क्षान्तिः) क्षमाभाव (आर्जवम्) सरलता (आचार्योपासनम्) श्रद्धाभक्तिसहित गुरुकी सेवा (शौचम्) बाहर-भीतरकी शुद्धि (स्थैर्यम्) अन्तःकरणकी स्थिरता और (आत्मविनिग्रहः) आत्मशोध।
अध्याय 13 का श्लोक 8
(भगवान उवाच)
इन्द्रियार्थेषु, वैराग्यम्, अनहंकारः, एव, च,
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्
अनुवाद: (इन्द्रियार्थेषु) इन्द्रियों के आनन्दके भोगोंमें (वैराग्यम्) आसक्तिका अभाव (च) और (अनहंकारः,एव) अहंकारका भी अभाव (जन्ममृत्युजरा व्याधिदुःख, दोषानुदर्शनम्) जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदिमें दुःख और दोषोंका बार-बार विचार करना।
अध्याय 13 का श्लोक 9
(भगवान उवाच)
असक्तिः, अनभिष्वङ्गः, पुत्रादारगृहादिषु,
नित्यम्, च, समचित्तत्वम्, इष्टानिष्टोपपत्तिषु
अनुवाद: (पुत्रादारगृहादिषु) पुत्रा-स्त्राी-घर और धन आदिमें (असक्तिः) आसक्तिका अभाव (अनभिष्वङ्गः) ममताका न होना (च) तथा (इष्टानिष्टोपपत्तिषु) उपास्य देव-इष्ट या अन्य अनउपास्य देव की प्राप्ति या अप्राप्ति में अर्थात् इष्टवादिता को भूलकर (नित्यम्) सदा ही (समचित्तत्वम्) चितका सम रहना।
अध्याय 13 का श्लोक 10
(भगवान उवाच)
मयि, च, अनन्ययोगेन, भक्तिः, अव्यभिचारिणी,
विविक्तदेशसेवित्वम्, अरतिः, जनसंसदि
अनुवाद: (मयि) मुझे (अनन्ययोगेन) अनन्य भक्ति के द्वारा (अव्यभिचारिणी) केवल एक इष्ट पर आधारित (भक्तिः) भक्ति (च) तथा (विविक्तदेशसेवित्वम्) एकान्त और शुद्ध देशमें रहनेका स्वभाव और (जनसंसदि) विकारी मनुष्योंके समुदायमें (अरतिः) प्रेमका न होना।
अध्याय 13 का श्लोक 11
(भगवान उवाच)
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वम्, तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्,
एतत्, ज्ञानम्, इति, प्रोक्तम्, अज्ञानम्, यत्, अतः, अन्यथा
अनुवाद: (अध्यात्मज्ञाननित्यत्वम्) अध्यात्मज्ञानमें नित्य स्थिति और (तत्वज्ञानार्थदर्शनम्) तत्वज्ञानके हेतु देखना (एतत्) यहसब (ज्ञानम्) ज्ञान है और (यत्) जो (अतः) इससे (अन्यथा) विपरीत है (अज्ञानम्) वह अज्ञान है (इति) ऐसा (प्रोक्तम्) कहा है।
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