Friday, 6 October 2017

वो प्यार ही क्या।


जिसमे दिल डगमगाने लगे वो भला इंतज़ार ही क्या,
जिसमे जो चाहा वो हासिल हो जाए वो प्यार ही क्या।
चाँद ना हो आसमा पे,वो काली अंधेरी रात ही क्या,
पूर्णिमा का चांद हो,दिल मे याद हो,तो बात ही क्या।
ना देखा महबूब की आंखों में,वो मुलाकात ही क्या,
ना नज़रो से दिल को भेद डाला, वो घात ही क्या।
ना दिल लिया ना दिया कभी,वो जीना ही क्या ,
ना दिखे जाम में महबूब अपना,वो पीना ही क्या।
होंठो पे आ के भी कह ना पाए, ऐसा इज़हार ही क्या,
सीने से ना लगाया उसे, ऐसा दिखावटी दीदार ही क्या।
सालो साल उसकी याद में झूमा नही,ऐसा नशा ही क्या,
खुद से नफरत ना हो ,ऐसी इश्क़ की दशा ही क्या।
भूल ना पाए महबूब तुझको,ऐसी इश्क़ की हार ही क्या,
जिसमे जो चाहा वो हासिल हो जाए,वो कमबख्त प्यार ही क्या।
$andy's

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