Tuesday, 27 May 2014

जेल से बेटे का माँ को पत्र II



जेल की चारदीवारी मे मेरा दम घुटता है माँ I
मैं झाँकू बाहर तो थोड़ा कम् घुटता है माँ II 
बाहर की आवाजें बुलाती हैं मुझे I 
यादें घर की रुलाती हैं मुझे II 
मैं कागज़ को क़लमों को अपना मानता हूँ बस I 
इस अकेलेपन मे खुद को ही पहचानता हूँ बस II 
मेरी अधूरी ख्वाइशें अब इन कागज़ों पे लिखता हूँ मैं I 
भूल चूका हूँ कि कैसी है दुनिया कैसा दिखता हूँ मैं II 
मेरे सपनों को मैं रोज सपनों मे देखता हूँ अब I 
छोटे से लौदान से कागज़ के टुकड़े बाहर फैंकता हूँ अब II 
जो होता है आखिर भले के लिए  ही होता है माँ I 
तेरा बेटा अब हर रोज तुझे देखने को रोता है माँ II 
डर लगता है जब जब थानेदार मुआयने पे निकलता है माँ I 
पर चोरी की थी जिस खाने की अब हर रोज मुझे यहाँ वो मिलता है माँ II 
$andy's 



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